Tuesday 8 May 2018

हमें क्यों नहीं मिलती तूफान के आने की आहट?

कुदरत का कहर क्षणभर में ही तबाही मचा देता है। मौसम के अचानक पलटने से बुधवार को राजस्थान और उत्तर प्रदेश में व्यापक तबाही मची है। 132 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से चली तूफानी हवा ने न केवल कई जानें लील लीं, साथ ही गेहूं, आम, सरसों को भी नुकसान पहुंचाया है। अब तक सवा सौ से ज्यादा लोगों के मारे जाने की खबर है। 70 से ज्यादा लोग उत्तर प्रदेश में और 40 से ज्यादा राजस्थान में लोग इसकी चपेट में आ गए। चौंकाने वाली बात यह है कि भारी तामझाम और नामी वैज्ञानिकों से अटे पड़े मौसम विभाग ने पूर्वी और पूर्वोत्तर के राज्यों में एक से चार मई तक भारी बारिश और तूफान की चेतावनी दी थी। इसमें कहीं से भी उत्तर भारत का जिक्र नहीं था, जबकि सबसे ज्यादा नुकसान राजस्थान, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, बंगाल और बिहार में नजर आया। जबकि मौसम की जानकारी देने वाली संस्था स्काईमेंट ने उत्तर भारत में तबाही का अंदेशा जताया था और चेतावनी भी जारी की थी। मौसम विभाग की ऐसी विफलता से सरकार और जनता दोनों के लिए चिन्ता का सबब है। सैकड़ों पशु मारे गए, मकान ध्वस्त हुए तथा पेड़ टूटने और बिजली के खंभे गिरने के अलावा गेहूं और आम की फसल भी बर्बाद हुई। मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक अधिक तापमान, हवा में नमी और कम दबाव का क्षेत्र बन जाने से तूफान का आना लाजिमी है और चूंकि यह सब कुछ अचानक ही होता है, ऐसे में व्यावहारिक तौर पर ऐसे बवंडर से बचने का वक्त ही नहीं मिल पाता। परेशानी की बात इसलिए भी है क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का अहम योगदान है और अगर किसानों को मौसम की ऐसी दुरूह मार झेलनी पड़ेगी तो देश की आर्थिक स्थिति भी कमजोर होगी। इस नाते मौसम की समय रहते सटीक जानकारी बेहद जरूरी है। अगर सही समय से जानकारी मिल जाए तो कई सारे नुकसान से शायद बचा जा सकता है। पिछले कुछ वर्षों से हमारे मौसम विभाग का अनुमान लगभग सही होने लगा था और ओडिशा के जबरदस्त तूफान से जानमाल की रक्षा में उसका विशेष योगदान रहा था। दरअसल सुनामी जैसे भयंकर तबाही वाले तूफान के बाद सरकार चेती थी और उसने न सिर्प उपग्रह और मशीनों पर बल्कि विशेषज्ञों पर पूंजी और बौद्धिकता का निवेश किया था। मौजूदा चूक उपवाद स्वरूप भी हो सकती है और इसका कड़वा घूट पीते हुए मौसम विभाग के अधिकारियों को चेतावनी देकर शांत हुआ जा सकता है। कई सारे देशों में मौसम के पल-पल बदलते रुख का पता नागरिकों को मुहैया करवाया जा सकता है। सवाल यह है कि हर तरह की सुविधाएं होने के बावजूद हमारे देश में ऐसा क्यों नहीं होता?

-अनिल नरेन्द्र

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