Tuesday 3 April 2018

फायरिंग लाइन में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश

भारत के मुख्य न्यायाधीश श्री दीपक मिश्रा के विरुद्ध महाभियोग की सुगबुगाहट के बीच, न्यायपालिका में अनावश्यक/असंवैधानिक सरकारी हस्तक्षेप के गंभीर आरोप के भी सामने आने से इस आरोप की पुन पुष्टि हो गई कि हमारी न्यायपालिका में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय के दूसरे नम्बर के वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा को पत्र लिखकर मांग की है कि विभिन्न अदालतों में जजों की नियुक्ति में सरकार के सीधे हस्तक्षेप पर सर्वोच्च न्यायालय की पूरी कोर्ट सुनवाई करे। 21 मार्च को लिखे अपने पत्र की प्रति न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने सर्वोच्च न्यायालय के अन्य 22 न्यायाधीशों को भी अग्रसारित की है। इस बार न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने सरकार और न्यायपालिका के बीच कथित दोस्ती पर ऐतराज जताते हुए इसे लोकतंत्र के लिए खतरनाक बताया है। ढाई महीने पहले भी मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने वाले जस्टिस चेलमेश्वर ने आरोप लगाया है कि जजों की नियुक्ति संबंधी सर्वोच्च न्यायालय कोलेजियम की अनुशंसाओं को केंद्र सरकार अपनी पसंद/नापसंद के आधार पर स्वीकृत/अस्वीकृत करती आ रही है। ऐसे भी दृष्टांत हैं जब कोलेजियम द्वारा दोबारा अनुशंसित नाम को भी सरकार ने अस्वीकार कर दिया। जबकि संवैधानिक प्रावधान के अनुसार दोबारा भेजे गए नाम को सरकार द्वारा स्वीकार करना अनिवार्य है। कुछ अन्य उदाहरण देते हुए जस्टिस चेलमेश्वर ने मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक मिश्रा से मांग की है कि विषय की गंभीरता को देखते हुए सर्वोच्च न्यायालय की पूरी बैंच इस पर विचार कर फैसला करे। जाहिर है कि पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों ने प्रेस कांफ्रेंस कर मुख्य न्यायाधीश श्री मिश्रा के खिलाफ जो आरोप लगाए थे, उसकी तपिश अभी भी मौजूद है। न्यायिक स्वतंत्रता का मुद्दा उठाते हुए उन्होंने कहा कि हम सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों पर कार्यपालिका के बढ़ते अतिक्रमण के सामने अपनी निष्पक्षता और अपनी संस्थागत ईमानदारी खोने के आरोप लग रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा इस समय फायरिंग लाइन में हैं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्षी दलों द्वारा राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी पूरी हो चुकी है। माकपा सहित कुछ क्षेत्रीय दलों द्वारा तैयार प्रस्ताव के मसौदे पर कुछ दलों ने तो हस्ताक्षर भी कर दिए हैं। एनसीपी के राज्यसभा सांसद माजिद मेमन ने महाभियोग प्रस्ताव लाने की पुष्टि की है। महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए किसी भी सदन में 50 सांसदों के समर्थन की जरूरत होती है। इसे पारित कराने के लिए सदन में दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होती है। जनवरी में सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों ने प्रेस कांफ्रेंस कर चीफ जस्टिस पर रोस्टर ठीक से लागू न करने सहित कई आरोप लगाए थे। एक मामला जज बीएच लोया की रहस्यमय परिस्थिति में मौत से संबंधित याचिका का था। महाभियोग प्रस्ताव पर बीते हफ्ते कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों के नेताओं के बीच लगातार कई बैठकें हुईं। सहमति बनने के बाद कांग्रेस और एनसीपी ने महाभियोग प्रस्ताव से संबंधित मसौदे पर हस्ताक्षर कर दिए। अगर विपक्ष आगे बढ़ता है तो दीपक मिश्रा पहले मुख्य न्यायाधीश होंगे, जिनके खिलाफ ऐसा प्रस्ताव आएगा। इससे पहले दो जजों के खिलाफ राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव आ चुका है। 2011 में सबसे पहले कोलकाता हाई कोर्ट के पूर्व जज सौमित्र सैन और इसके बाद सिविल हाई कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश पीडी दिनाकरन के खिलाफ ऐसा प्रस्ताव आया था।

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