Tuesday 6 March 2018

साईं बाबा ने तोड़ी धर्मों के बीच की दीवारें

इतिहासकारों की मानें तो साईं खुद कौन थे, किस धर्म में पैदा हुए थे, इसकी कोई ठोस जानकारी नहीं मिलती है। साईं पर लिखे गए कुछ पुराने ग्रंथों के आधार पर माना जाता है कि शिरडी के साईं बाबा का जन्म 1838 से 1842 के बीच हुआ था। वह एक फकीर की जिन्दगी जिया करते थे। साईं नाम उन्हें तब मिला जब वह कम उम्र में ही शिरडी आ गए। शिरडी में ही वह एक पुरानी मस्जिद में रहने लगे थे। मस्जिद में रहने की वजह से बहुत से लोग उन्हें मुसलमान मानते थे, लेकिन खुद साईं ने मस्जिद को `द्वारका माई' नाम दिया था। इस वजह से बहुत से लोग उन्हें हिन्दू धर्म का मानते थे। जाहिर है साईं ने कभी खुद को किसी एक धर्म से नहीं बांधा। साईं के भक्तों में कौन किस मजहब के हैं यह कोई नहीं जानता है। लेकिन साईं बाबा को मानने वाले हर धर्म के हैं। ये भक्त अपनी-अपनी श्रद्धा के मुताबिक साईं की भक्ति करते हैं। साईं बाबा के भक्तों में शिरडी के मंदिर के दर्शन की खास वजह भी है। साईं 16 साल की उम्र में शिरडी आए थे और 15 अक्तूबर 1918 को चिर-समाधि में लीन होने तक यहीं रहे। उनके देह त्यागने के महज चार साल बाद 1922 में इस पवित्र मंदिर को साईं की समाधि के ऊपर बनाया गया। भक्तों का मकसद सिर्फ एक था कि इस मंदिर के जरिये साईं के उपदेशों और शिक्षाओं का बेहतर तरीके से प्रचार-प्रसार होगा। आज दुनियाभर से लोग इस मंदिर में दर्शन करने के लिए सालभर पहुंचते हैं। ताजा आंकड़े बताते हैं कि सालाना दो करोड़ से ज्यादा भक्त शिरडी के साईं मंदिर में आते हैं। इन भक्तों के चढ़ावे की वजह से ही साईं धाम की गिनती देश के कुछ सबसे अमीर मंदिरों में होती है। उनके मंदिर अब शिरडी में ही नहीं बल्कि देश के हर कोने और हर गली में मिल जाएंगे। साईं के भक्त उनके चमत्कारों की कहानियां सुनाते हैं। कोई साईं को देखने का दावा करता है तो कोई साईं की शरण में आने के बाद अपने जीवन में आए सकारात्मक बदलावों की दास्तां सुनाता है। साईं का कहना हैöसबका मालिक एक। वे खुद कहते हैं कि उनका मालिक और आपका मालिक एक ही है। बेशक साईं जैसे योगी ईश्वर से एकाकार हो जाते हैं। यही वजह है कि भक्त उन्हें ईश्वर की तरह पूजते हैं। साईं के भक्त सच्चे मन से साईं की शरण में जाते हैं और अपने जीवन में  बेहतरी महसूस करते हैं। उनके लिए हर समस्या का समाधान साईं के पास है। देशभर में साईं बाबा के मंदिरों की बढ़ती संख्या भक्तों के बढ़ते भरोसे की तरफ इशारा करती है।

-अनिल नरेन्द्र

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