Tuesday 9 January 2018

राज्यसभा में फंसा तीन तलाक विधेयक

तीन तलाक बिल फिलहाल सियासत की भेंट चढ़ गया है। दो सप्ताह के छोटे-से शीत सत्र की शुरुआत में लोकसभा में तुरन्त तीन तलाक विधेयक पारित होने से जो उम्मीद पैदा हुई थी, राज्यसभा में उसके अटक जाने से फिलहाल वह उम्मीद क्षीण हो गई है। शुरुआत की तरह शीत सत्र का अंत भी हंगामेदार रहा। केंद्र की मोदी सरकार और विपक्षी नेताओं के बीच विधेयक को लेकर रजामंदी नहीं बन पाई। विपक्ष का तर्क है कि दुनिया में कहीं भी तलाक देने पर पति को जेल भेजने का प्रावधान नहीं है। विपक्ष का सवाल है कि जब पति को जेल भेज दिया जाएगा तो पीड़ित महिला को गुजारा-भत्ता कौन देगा? और पति के जेल में होने के कारण घर की आय का जरिया क्या रहेगा और कैसे महिला और बच्चों का भरण-पोषण होगा? तीन साल की सजा पर विपक्ष सबसे ज्यादा आपत्ति कर रहा है। विपक्ष का कहना है कि यह कठोर दंड है। इसका दुरुपयोग किए जाने की आशंका ज्यादा है। ऊपरी सदन में बहुमत नहीं होने के कारण सरकार को विपक्ष के साथ की जरूरत थी। जबकि एकजुट विपक्ष इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजने की मांग पर अड़ा रहा। सरकार भी पीछे हटने के मूड में नहीं दिखी। अब इस विधेयक पर कोई फैसला बजट सत्र में होगा। इस विधेयक को लेकर अध्यादेश जारी किए जाने के आसार नहीं हैं। कांग्रेस, बीजू जनता दल और तेलुगूदेशम समेत 17 दलों की मांग थी कि विधेयक को पहले प्रवर समिति को भेजा जाए। इन दलों का तर्क था कि यह मुद्दा संवेदनशील है। लिहाजा इसमें विपक्ष की बात को समझा जाए। सरकार के पास अब सीमित विकल्प हैं। लोकसभा से पारित हो चुका है, राज्यसभा में लंबित है। संसद का मौजूदा सत्र भी खत्म हो गया है। ऐसे में सरकार के पास अध्यादेश के जरिये इसे लागू करने का विकल्प खुला हुआ है। इस तरह यह कानून अगले छह महीने के लिए लागू हो जाएगा। जनवरी के अंत में शुरू हो रहे बजट सत्र में सरकार को अध्यादेश की कॉपी ही सदन के दोनों सदनों में पेश करनी होगी। सरकार के लिए यह भी अनिवार्य नहीं रहेगा कि बजट सत्र में ही वह अध्यादेश की जगह लेने वाले कानून को संसद में पारित कराए। अध्यादेश लाना पड़ा तो इसकी छह महीने की अवधि खत्म होने तक सरकार के पास दो विकल्प होंगे। पहला सरकार राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को राजी करे कि वह संसद का संयुक्त सत्र बुलाएं। इसके जरिये सहज ही विधेयक पारित कराने में सरकार सफल रहेगी। दूसरे अगले तीन-चार महीने में राज्यसभा की करीब 68 सीटों के चुनाव हो रहे हैं। इन सीटों पर निर्वाचन प्रक्रिया पूरी होते ही राजग को राज्यसभा में बहुमत मिल जाएगा और वह वहां से विधेयक पारित कराने की स्थिति में आ जाएगी। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने कहा कि कांग्रेस भी विधेयक को पारित कराना चाहती है, लेकिन कुछ खामियों को दूर करना जरूरी है। हम भी समझते हैं कि कांग्रेस और विपक्ष द्वारा उठाए गए सवालों का संतोषजनक जवाब सरकार को देना चाहिए और विधेयक में जरूरी तब्दीली करनी चाहिए। यहां सवाल वोटों का नहीं करोड़ों मुस्लिम महिलाओं के भविष्य का है। उम्मीद करते हैं कि सरकार भी ठंडे दिमाग से विपक्ष की जायज आपत्तियों पर गौर करेगी और उनमें संशोधन करेगी।

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