Sunday 3 December 2017

यूपी निकाय चुनावों में भाजपा की आंधी

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार अपनी पहली परीक्षा में फर्स्ट क्लास में पास हुई है। गत 19 मार्च को मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद योगी के कार्यकाल का पहला चुनाव था निकाय चुनाव और इस चुनाव में भाजपा की बड़ी जीत हुई है। नगर निगमों के लिए मतदान ईवीएम से हुआ और नगर पालिकाओं के लिए पारंपरिक मतपत्रों का उपयोग किया गया। जीएसटी, नोटबंदी और महंगाई के शोर के बीच नाराज बताए जा रहे उत्तर प्रदेश के शहरी मतदाताओं ने भाजपा के दोनों हाथों में जीत का लड्डू थमा दिया। लोकसभा, विधानसभा के बाद नगरीय निकायों के चुनाव में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन कर जीत की हैट्रिक लगाई है। पार्टी ने 16 में से 14 नगर निगमों पर कब्जा जमाया है जबकि 2 नगर निगम बीएसपी के खाते में गए हैं। पहली बार निगम बने अध्योध्या, मथुरा, सहारनपुर, फिरोजाबाद में भी कमल खिला है। सत्तारूढ़ भाजपा नगर पालिकाओं और नगर पंचायतों में भी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। चुनावों के दौरान जहां भाजपा ने पूरे प्रदेश में परचम लहराया वहीं दिग्गजों के गढ़ में ही पार्टी को शर्मनाक हार भी देखनी पड़ी। यहां तक कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अपने वार्ड में पार्टी को जीत दिलाने में असफल रहे। गोरखपुर में सीएम योगी के वार्ड पुराना गोरखपुर में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा है। यहां एक निर्दलीय प्रत्याशी शमीम ने जीत दर्ज की है। योगी ने भी यहां मतदान किया था। इसके अलावा गोरखनाथ मंदिर के आसपास के चार वार्ड का चुनाव भी भाजपा नहीं जीत सकी, निकाय चुनावों में सबसे शर्मनाक हार झेलनी पड़ी कांग्रेस पार्टी को वह भी अपने गढ़ में। कांग्रेस ने अमेठी और मुसाफिर खाना नगर पंचायत में अपना प्रत्याशी नहीं उतारा था। पहली बार नगर पालिका परिषद बनी गौरीगंज में गीता सरोज उसकी प्रत्याशी थीं। प्रतिष्ठापरक चुनाव में गीता सरोज चार नंबर पर पहुंच गई। लोकसभा, विधानसभा में बेहतर प्रदर्शन करने वाली बीएसपी के लिए यह निकाय चुनाव ऑक्सीजन की तरह है। विधानसभा में फेल रहा दलित-मुस्लिम समीकरण यहां कामयाब रहा। यह सकारात्मक परिणाम 2019 के आम चुनाव से पहले पार्टी को ताकत देंगे। मुस्लिम बहुल सीटों पर बीएसपी की बढ़त से समाजवादी पार्टी के परंपरागत वोटर खिसकते दिख रहे हैं। शिव पाल समर्थित  कुछ प्रत्याशी जैसे भारी पड़े, उससे अखिलेश की चुनौती बढ़ गई है। नगर पालिकाओं में दूसरी बड़ी पार्टी बताकर वह पीठ थपथपा सकती है। भाजपा इस जीत को गुजरात चुनाव में भुनाने का प्रयास करेगी। कांग्रेस बैकफुट पर होगी क्योंकि वह अपना गढ़ भी नहीं बचा सकी।

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