Wednesday 13 December 2017

यरुशलम पर ट्रंप का विवादित फैसला

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तमाम विरोधों को नजरंदाज करते हुए गत बुधवार देर रात यरुशलम को इजरायल की राजधानी घोषित करके बर्र के छत्ते में हाथ डाल दिया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका अपना दूतावास तेल अवीव से इस पवित्र शहर में ले जाएगा। इस घोषणा से मध्य पूर्व में नए सिरे से तनाव बढ़ गया है। यरुशलम में अमेरिकी दूतावास स्थानांतरित करने के राष्ट्रपति ट्रंप के फैसले ने मुस्लिम जगत को हिलाकर रख दिया है। अभी तक कोई भी मुस्लिम देश अमेरिका के फैसले के साथ खड़ा नहीं हुआ है। राष्ट्रपति ट्रंप यरुशलम को इजरायल की राजधानी मान सकते हैं, ऐसा करने वाले वो पहले वैश्विक नेता भी होंगे। मध्य पूर्व के अरब नेताओं का कहना है कि ऐसा करना मुसलमानों को उकसाना होगा और इससे मध्य पूर्व के हालात बिगड़ जाएंगे। यरुशलम इजरायल-अरब तनाव में सबसे विवादित मुद्दा भी है। ये शहर इस्लाम, यहूदी और ईसाई धर्मों में बेहद अहम स्थान रखता है। पैगम्बर इब्राहिम को अपने इतिहास से जोड़ने वाले ये तीनों ही धर्म यरुशलम को अपना पवित्र स्थान मानते हैं। यही वजह है कि सदियों से मुसलमानों, यहूदियों और ईसाइयों के दिल में इस शहर का नाम बसता रहा है। हिब्रू भाषा में यरुशलम और अरबी में अल-कुंदस के नाम से जाने वाले ये शहर दुनिया के सबसे प्राचीन शहरों में से एक है। इस शहर को कई बार कब्जाया गया है। ध्वस्त किया गया है और फिर से बसाया गया है। यही वजह है कि यहां की मिट्टी की हर परत में इतिहास की एक परत छिपी हुई है। अरब मुल्कों के लिए यह शहर इसलिए पवित्र है क्योंकि यहां अल अक्सा मस्जिद स्थित है। यह एक पठार पर स्थित है जिसे मुस्लिम हरम अल शरीफ या पवित्र स्थान कहते हैं। मस्जिद अल अक्सा इस्लाम का तीसरा सबसे पवित्र स्थल है और इसका प्रबंधन एक इस्लामिक ट्रस्ट करती है जिसे वक्फ कहते हैं। मुसलमानों का विश्वास है कि पैगम्बर मोहम्मद ने मक्का से यहां तक एक रात में यात्रा की थी और यहां पैगम्बरों की आत्माओं के साथ चर्चा की थी। यहीं से कुछ कदम दूर ही डोम ऑफ द राक्स का पवित्र स्थल है। यहीं पवित्र पत्थर भी है। मान्यता है कि पैगम्बर मोहम्मद ने यहीं से जन्नत की यात्रा की थी। यहूदी इलाके में ही कोटेल या पश्चिमी दीवार है। ये वॉल ऑफ दा माउंट का बचा हिस्सा है। माना जाता है कि यह कभी यहूदियों का पवित्र मंदिर इसी स्थान पर था। इस पवित्र स्थल के भीतर ही द होली ऑफ द होलीज है। यह यहूदियों का सबसे पवित्र स्थान है। ईसाई इलाके में द चर्च ऑफ द होली रोपलंकर है। ये दुनियाभर के ईसाइयों की आस्था का केंद्र है। ये जिस स्थान पर स्थित है वो ईसा मसीह की कहानी का केंद्रबिंदु है। यहीं ईसा की मौत हुई थी, उसे सूली पर चढ़ाया गया था और यहीं से वो अवतरित हुए थे। ट्रंप के फैसले को लेकर दुनियाभर से जो प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, वे काफी तीखी हैं। कुछ देर के लिए अगर पश्चिमी एशिया के देशों को छोड़ भी दें तो फ्रांस जैसे नाटो में उसके सहयोगी देश ने भी इस मंशा का खुला विरोध किया है। बाकी दुनिया भी इसे लेकर काफी असहज दिख रही है। यह लगभग तय माना जा रहा है कि अगर ऐसा होता है तो पश्चिम एशिया एक बार फिर बड़ी अशांति की ओर बढ़ने लगेगा। बेशक इससे इजरायल और यहूदी विश्व को किसी तरह की मानसिक संतुष्टि मिले, लेकिन इससे इजरायल की मुश्किलें भी बढ़ेंगी ही। फलस्तीन उग्रवाद का तेवर तीखा होना तय ही है, कई क्षेत्रीय समीकरण भी बदल जाएंगे। इस फैसले का अरब लीग में शामिल 57 देशों ने विरोध किया है। वह इस मुद्दे पर बैठक करेंगे। तुर्की, सीरिया, मिस्र, सऊदी अरब, जॉर्डन, ईरान समेत 10 से अधिक खाड़ी देशों ने अमेरिका को चेतावनी भी दे डाली है। मध्य पूर्व में नए सिरे से तनाव बढ़ सकता है। डोनाल्ड ट्रंप ने अपने घोषणा पत्र में यह वादा किया था। अब देखना यह है कि क्या अमेरिका अपने फैसले पर अडिग रहता है और अरब देशों को शांत कर सकता है या नहीं?

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