Sunday 5 November 2017

दागी नेताओं के लिए बनें फास्ट ट्रैक अदालतें

सुप्रीम कोर्ट ने राजनीति को अपराधमुक्त बनाने के लिए केंद्र सरकार से विशेष अदालतें बनाने की वकालत का स्वागत है। अदालत ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह 13 दिसम्बर तक अदालत को बताए कि देशभर में इस तरह के कितने फास्ट ट्रैक कोर्ट कब तक बनाए जाएंगे और उन पर कितने पैसे खर्च होंगे? केंद्र को छह हफ्ते में जवाब देना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने दोषी नेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाने के लिए भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर सुनवाई करते हुए सांसदों और विधायकों पर 2014 तक दर्ज 1581 मुकदमों का ब्यौरा भी तलब किया। इसके अलावा 2014 से 2017 के बीच नेताओं के खिलाफ दायर आपराधिक मामलों और उनके निपटारे के बारे में भी जानकारी मांगी है। मामले की अगली सुनवाई 13 दिसम्बर को होगी। जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने बुधवार को केंद्र और संबंधित अथारिटी को यह बताने को कहा कि 1581 आरोपित जनप्रतिनिधियों के मुकदमों का क्या हुआ? इनमें से कितने मामलों का निपटारा एक वर्ष में हुआ? मालूम हो कि 18 मार्च 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों का निपटारा एक वर्ष के भीतर करने के निर्देश दिए थे। साथ ही पीठ ने यह भी पूछा कि कितने मामलों में सजा हुई और कितने मामलों में आरोपी बरी हुए? सरकार को यह भी बताने के लिए कहा गया है कि वर्ष 2014 से 2017 के बीच कितने ऐसे नए मामले आए। सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित मुकदमों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने पाया है कि उपलब्ध आंकड़ों के तहत साल 2014 में 1581 सांसद व विधायकों के खिलाफ साढ़े 13 हजार आपराधिक मामले लंबित हैं। देश में करीब 17 हजार मामले  निचली अदालतों में हैं। हर अदालत में औसतन 4200 मामले लंबित हैं। शीर्ष अदालत के इस आदेश का स्वागत किया जाना चाहिए। अगर इस दिशा में कोई ठोस पहल होगी तो वह भारतीय लोकतंत्र के लिए बेहतर ही होगी। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने खंडपीठ को बताया कि दोषी ठहराए गए जनप्रतिनिधियों को आजीवन अयोग्य घोषित करने संबंधी चुनाव आयोग और विधि आयोग की सिफारिशों पर विचार किया जा रहा है। गौरतलब है कि भारतीय राजनीति में लंबे समय से अपराधियों का बोलबाला रहा है। तमाम मामलों में राजनेताओं को सजा भी मिली, लेकिन होता यही है कि वे ऊंची अदालत में अपील करके स्थगनादेश प्राप्त कर लेते हैं और फिर चुनाव लड़ने में कामयाब रहते हैं। इसलिए अरसे से इस पर विचार चल रहा है कि क्यों न सजायाफ्ता मुजरिमों को आजीवन चुनाव लड़ने से रोक दिया जाए? कटु सत्य तो यह है कि हमारा राजनीतिक तंत्र आज भी दागी नेताओं से भरा हुआ है, जो पूरी राजनीतिक प्रक्रिया को प्रभावित-संचालित कर रहा है। इसका एक बड़ा कारण है नेताओं के खिलाफ मामलों के निपटारे में होती देरी। उन पर मुकदमे 20-20 साल तक लंबित रहते हैं और कोई नतीजा आने से पहले ही वे अपनी पूरी सियासी पारी खेल जाते हैं। इस वजह से आज हमारा पूरा तंत्र ही एक दागी तंत्र बनकर रह गया है। देश में भ्रष्टाचार की एक बड़ी वजह है यह दागी नेता और उनके भ्रष्टाचारी तौर-तरीके। इस बीमारी से तभी मुक्त हुआ जा सकता है जब आरोपी राजनेता के खिलाफ चल रहे मुकदमे जल्द से जल्द अपने मुकाम पर पहुंचें और दोषी पाए जाने पर उसे जीवनभर चुनाव न लड़ने दिया जाए। कुछ बरसों से चुनाव आयोग की सख्ती के चलते बूथ कैप्चरिंग जैसी बुराइयों से तो निजात मिल गई है, लेकिन बाहुबलियों और अपराधियों का मनोबल आज भी पस्त नहीं हुआ। इसके लिए हमारे राजनीतिक दल भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। क्यों यह ऐसे दागियों को टिकट देते हैं? क्या सिर्फ चुनाव जीतना ही सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है? अगर दागियों को टिकट ही न दिया जाए तो भी इस ज्वलंत समस्या पर अंकुश लग सकता है। पर क्या ऐसा संभव है?

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