Sunday 12 November 2017

फिल्म पद्मावती पर बवाल

आज के युग में कोई संदेह नहीं कि सिनेमा समाज का दर्पण है। हमारे सामने कई ऐसी फिल्में हैं जिनमें हमारे समाज की संरचना को बहुत ही सूक्ष्म तरीके से दर्शाया गया है और सिनेमा जाने वालों ने उसकी तारीफ भी की है। उदाहरण के तौर पर आमिर खान की दंगल को ले लीजिए। इसमें और सलमान खान की सुल्तान फिल्म में हरियाणा की सामाजिक संरचना को बहुत ही सूक्ष्म रूप से बड़े पर्दे पर उतारा गया, वहीं पिंक जैसी फिल्में महिलाओं के प्रति हो रहे सामाजिक भेदभाव का मार्मिक अंकन किया गया। यदि हम बात करें संजय लीला भंसाली की तो उन्होंने हम  दिल दे चुके सनम, देवदास, ब्लैक, बाजीराव मस्तानी जैसी सफल फिल्मों का निर्देशन किया है। लेकिन उनकी ताजा फिल्म पद्मावती विवादों में फंस गई है। दिसम्बर को रिलीज होने जा रही फिल्म पद्मावती को लेकर राजस्थान के पूर्व राजघराने एक साथ विरोध में उतर आए हैं। पूर्व राजघरानों का कहना है कि फिल्म में रानी पद्मावती को गलत तरीके से पेश किया गया है। उधर राजपूत करणी सेना ने सिनेमा हॉल मालिकों को पत्र लिखकर पद्मावती को प्रदर्शित नहीं करने का आग्रह किया है। राजस्थान के फिल्म डिस्ट्रीब्यूर्ट्स ने तय किया है कि जब तक विवाद सुलझ नहीं जाता तब तक पद्मावती का प्रदर्शन नहीं होगा। जयपुर राजघराने की दिया कुमार का कहना है कि हम रानी पद्मावती के शौर्य और बलिदान की कहानियों के साथ बड़े हुए हैं। जहां हजारों महिलाओं के साथ अस्मिता को बचाने के लिए जौहर किया था उसे कैसे ड्रीम सीक्वेंस का नाम देकर प्रेम कथा बता सकते हैं। फिल्म में ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किए जाने के आरोपों के बाद अब फिल्म को बैन करने की मांग को लेकर सोशल मीडिया में भी मुहिम चलाई जा रही है। इसमें फेसबुक पर प्रोफाइल फ्रेम मैं विरोध करता हूं, को लोग बढ़चढ़ कर अपनी फोटो के साथ फेसबुक पर लगा रहे हैं। फिल्म के विरोध में राजपूत समाज के सड़क पर विरोध के बाद अब डिजिटल विरोध शुरू हो गया है। इसके अलावा व्हाट्सएप पर भी फिल्म के विरोध में कई ग्रुप बनाए गए हैं। विभिन्न समुदायों के विरोध के चलते संजय लीला भंसाली और उनकी टीम पर दबाव बढ़ता जा रहा है। गत सप्ताह चित्तौड़गढ़ में इस फिल्म के विरोध में बाजार बंद रखे गए थे। इसमें विभिन्न सामाजिक और व्यावसायिक संस्थाओं ने पद्मावती के विरोध के समर्थन में प्रदर्शन किया। भंसाली की फिल्म का विरोध उनके हक में भी जा सकता है। इस विरोध के कारण फिल्म चर्चा में आ गई है और फिल्म की दबाकर पब्लिसिटी हो रही है। जो आमतौर पर फिल्म न भी देखता हो वह अब उत्सुकता से इसे देखने जाएगा। अगर वाकई ही फिल्म में इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है तो यह निंदनीय है।

-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment