Wednesday 18 October 2017

दहेज प्रताड़ना और कानून

ढाई महीने पहले सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बैंच ने जो फैसला दिया था कि दहेज प्रताड़ना मामले में तुरन्त गिरफ्तारी नहीं होगी, उस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली बैंच ने दोबारा विचार करने का फैसला किया है। अदालत ने कहा कि दहेज प्रताड़ना मामले में दिए फैसले में जो सेफगार्ड दिया गया है उससे वह सहमत नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई वाली बैंच ने कहा कि इस मामले में दो जजों की बैंच ने 27 जुलाई को जो आदेश पारित किया था जिसमें तत्काल गिरफ्तारी पर रोक संबंधी जो गाइडलाइंस बनाई हैं उससे वह सहमत नहीं हैं। हम कानून नहीं बना सकते बल्कि उसकी व्याख्या कर सकते हैं। अदालत ने कहा कि ऐसा लगता है कि 498ए के दायरे को हल्का करना महिला को इस कानून के तहत मिले अधिकार के खिलाफ जाता है। बता दें कि 27 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके गोयल और जस्टिस यूयू ललित की बैंच ने राजेश शर्मा बनाम स्टेट ऑफ यूपी के केस में गाइडलाइंस जारी किए थे और इसके तहत दहेज प्रताड़ना के केस में गिरफ्तारी से सेफगार्ड दिया गया था। कोर्ट ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले अनरेश कुमार बनाम बिहार स्टेट के मामले में व्यवस्था दी थी कि बिना किसी ठोस कारण के गिरफ्तारी न हो यानि गिरफ्तारी के लिए सेफगार्ड दिए थे। लॉ कमीशन ने भी कहा था कि मामले को समझौतावाद बनाया जाए। निर्दोष लोगों के मानवाधिकार को नजरंदाज नहीं किया जा सकता। अनचाही गिरफ्तारी और असंवेदनशील छानबीन के लिए सेफगार्ड की जरूरत बताई गई क्योंकि ये समस्याएं बदस्तूर जारी हैं। दहेज केस में पहले भी ऐतिहासिक फैसले हुए हैं। दो जुलाई 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सात साल तक की सजा के प्रावधान वाले मामले में पुलिस सिर्फ केस दर्ज होने की बिनाह पर गिरफ्तार नहीं कर सकती बल्कि उसे गिरफ्तारी के लिए पर्याप्त कारण बताना होगा। हमने देखा है कि एक तरफ दहेज प्रताड़ना को लेकर अंधाधुंध गिरफ्तारियां हो रही हैं दूसरी तरफ इससे दहेज हत्याएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। पूरे के पूरे परिवार के सदस्य अंदर कर दिए जा रहे हैं और उनकी जमानत भी आसानी से नहीं होती। पुलिस के हाथों एक ऐसा हथियार आ गया है जिसका वह दबाकर दुरुपयोग कर रही है। यह जरूरी है कि अगर दहेज प्रताड़ना की कोई शिकायत महिला करती है तब उसकी बारीकी से छानबीन होनी चाहिए, सिर्फ आरोप लगाना ही काफी नहीं है। कुछ महिलाएं इसको ब्लैकमेल का हथियार बना लेती हैं। दूसरी ओर दुख से कहना पड़ता है कि तमाम सख्ती के बावजूद दहेज प्रताड़ना, दहेज हत्याओं पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। पर क्या कानून से ही इस समस्या का समाधान संभव है? जब तक हमारा समाज अपने विचार और सोच नहीं  बदलता यह समस्या समाप्त होने वाली नहीं है।

-अनिल नरेन्द्र

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