Tuesday 15 August 2017

जाते-जाते बेवजह विवाद खड़ा कर गए हामिद अंसारी

उपराष्ट्रपति कार्यकाल पूरा करने के मौके पर मोहम्मद हामिद अंसारी विवाद खड़ा कर गए। राज्यसभा टीवी को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि देश के मुसलमानों में असहजता और असुरक्षा की भावना है और स्वीकार्यता का माहौल है। उपराष्ट्रपति के तौर पर हामिद अंसारी का बृहस्पतिवार को आखिरी दिन था। यानि कि देश के संवैधानिक पद पर उन्होंने यह बात कही। हामिद अंसारी की बात पर विवाद खड़ा होने और इससे असहमति जताया जाना स्वाभाविक है। इसलिए और भी क्योंकि उन्होंने इतनी बड़ी बात अपना पद छोड़ते वक्त कही। जाते-जाते हामिद अंसारी ऐसा काम कर गए जिससे न केवल उपराष्ट्रपति पद को ठेस लगाई बल्कि मुस्लिम समुदाय का भी बट्टा कर गए। यह सवाल उठना स्वाभाविक ही है कि यदि वह मुस्लिम समाज को कथित तौर पर असुरक्षित देख रहे थे तो ऐसा कहने के लिए किस बात इंतजार कर रहे थे? क्या अपने 10 साल के कार्यकाल की समाप्ति का? यह भी प्रश्न पूछा जा सकता है कि आखिर वह इस नतीजे पर कब और कैसे पहुंचे कि मुस्लिम भारत में डर के साये में जी रहे हैं? बेहतर यह नहीं होता कि वह समय रहते और सन्दर्भ सहित अपनी बात कहतेöठीक वैसे ही जैसे पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने समय-समय पर कही। यदि वह ऐसा करते तो शायद सरकार भी उनकी बात पर गौर करती और समाज भी उनके आंकलन को सही परिप्रेक्ष्य में देखता। मजे की  बात यह है कि पिछले 10 सालों में जब वे उपराष्ट्रपति पद पर कायम थे तो न तो उन्हें मुसलमानों की याद आई और न ही किसी अन्य अल्पसंख्यक वर्ग की। 10 साल मजे में मक्खन, मलाई, हलवे, विदेशी दौरे करते रहे तो उन्हें मुसलमानों की याद नहीं आई। जब गद्दी चली गई तो वे एक धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति से सांप्रदायिक व्यक्ति बन गए या फिर किसी टीवी एंकर ने कहा कि पद छोड़ते वक्त वह एक मुसलमान बन गए। वास्तविकता तो यह है कि अंसारी साहिब को पद की ऐसी लत लग गई थी कि उन्होंने सरकार के उच्च नेताओं को कहलवा भेजा था कि मानसिक और शारीरिक रूप से उनका स्वास्थ्य बहुत बढ़िया है और वे अपनी तीसरी पारी भारत की नैया को बतौर राष्ट्रपति खेने की इच्छा रखते हैं। हामिद अंसारी को ऐसा हरगिज भी नहीं करना चाहिए था क्योंकि भारत में मुसलमानों के विरुद्ध ऐसा कोई हाहाकार मचा हुआ नहीं है। क्या उन्हें मालूम नहीं कि मुसलमान सिर्फ अल्लाह के अलावा और किसी से नहीं डरता। हामिद अंसारी ने यह रेखांकित करने के लिए कि मुसलमान भय के साये में हैं, गौरक्षकों के उत्पाद का हवाला दिया और साथ ही कहा कि अलग-अलग लोगों से ऐसा सुना है। क्या कुछ लोगों से सुनी बातें यह तय करने का आधार बन जाती हैं कि 18-20 करोड़ की विशाल आबादी वाला मुस्लिम समाज डरा हुआ है? इससे इंकार नहीं कि बेलगाम गौरक्षकों के उत्पात के कई मामले सामने आए हैं लेकिन इन चन्द घटनाओं के आधार पर इस नतीजे पर पहुंचना तिल का ताड़ बनाना है कि मुस्लिम डरे हैं। श्री हामिद अंसारी ने पदमुक्त की बेला में भारत की सामाजिक परिस्थितियों पर जो टिप्पणी की है उसे लेकर एक वर्ग भारी विरोध कर रहा है कि श्री अंसारी मुसलमानों के भय के माहौल में या असुरक्षा में रहने का जिक्र करके मोदी सरकार की नीतियों की कटु आलोचना तब कर रहे हैं जब वह पद छोड़ने वाले थे। पिछले 10 साल से वह इसी व्यवस्था के अंग बने हुए थे और सब कुछ अपनी आंखों के सामने देख रहे थे मगर इसके साथ यह भी बताना जरूरी है कि केंद्र में सत्तारूढ़ होने के बाद मोदी सरकार के कार्यकाल में पूरे देश में सांप्रदायिक दंगों में कमी आई है।
-अनिल नरेन्द्र

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