Saturday 12 August 2017

20-20 मैच से भी ज्यादा रोमांचक रहा गुजरात राज्यसभा चुनाव

इंडिया-पाकिस्तान के क्रिकेट मैच में भी ऐसा रोमांच नहीं होता जैसा इस बार गुजरात के राज्यसभा की तीसरी सीट पर हुआ। संसदीय राजनीति की शुरुआत 40 साल पहले 1977 में करने वाले अहमद पटेल ने अपनी जिन्दगी के सबसे कठिन चुनाव में जिस तरह जीत हासिल की उसने भाजपा और खासकर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह की चाणक्य नीति को पछाड़ दिया। गुजरात के इस राज्यसभा चुनाव में भाजपा ने जो बिसात बिछाई उससे साफ हो गया था कि यह मुकाबला महज दो पार्टियों का नहीं होने जा रहा बल्कि इसके पीछे भाजपा के चाणक्य अमित शाह और इंडियन नेशनल कांग्रेस के चाणक्य अहमद पटेल की व्यक्तिगत अदावत भी है। गुजरात में भाजपा के चाणक्य अमित शाह और कांग्रेस के चाणक्य अहमद पटेल के बीच मुकाबले में चाणक्य के सभी मंत्र, साम, दाम, दंड, भेद के चार सूत्रों का इस्तेमाल किया गया। घटनाक्रम को देखा जाए तो यह साफ है कि अहमद पटेल को हटाने के लिए भाजपा ने हर संभव कोशिश की। यहां तक कि अंतिम समय में जब मामला इलैक्शन कमीशन ऑफ इंडिया (चुनाव आयोग) पहुंचा तो भाजपा ने कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद सहित अपने आधा दर्जन केंद्रीय मंत्री चुनाव आयोग भेज दिए वे भी एक बार नहीं बल्कि तीन घंटे में तीन बार। लेकिन इसके बावजूद फैसला अहमद पटेल व कांग्रेस के पक्ष में गया। अमित शाह को अपने हाल के दिनों की सबसे बड़ी सियासी शिकस्त अपने सबसे बड़े राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी से अपने ही गृह राज्य में खानी पड़ी। गौरतलब है कि गुजरात में राज्यसभा चुनाव की तीन सीटों के लिए चुनाव होने थे। विधानसभा में जो संख्या बल है उसके हिसाब से दो सीटें भाजपा का जीतना तय था, लड़ाई तीसरी सीट पर थी। इस तीसरी सीट पर सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव और गांधी परिवार के बाद पार्टी के सबसे कद्दावर चेहरे अहमद पटेल को उतारा गया। इन प्रत्याशियों की जीत तय मानी जा रही थी। लेकिन गेम तब बिगड़ा जब शंकर सिंह वाघेला ने कांग्रेस छोड़ दी। इसके बाद पार्टी के छह विधायक बागी हो गए और भाजपा में चले गए। कांग्रेस ने संकट भांप लिया कि यह अहमद पटेल को दोबारा राज्यसभा न जाने देने की साजिश है वो आनन-फानन में अपने 44 विधायकों को लेकर कर्नाटक चली गई। मामले में दिलचस्प मोड़ तब आया जब कर्नाटक के जिस रिसोर्ट में यह विधायक रुके हुए थे उस पर आयकर विभाग ने छापा मार दिया। इस छापे की गूंज संसद तक सुनाई दी। कांग्रेस ने आरोप  लगाया कि भाजपा अहमद पटेल को हराने के लिए हर दांव चल रही है। पहले उसके विधायकों को खरीदा गया और अब आयकर विभाग के जरिये डराने की कोशिश की जा रही है। कांग्रेस को जीत के लिए अब भी एक विधायक की दरकार थी, कारण जीत का आंकड़ा 45 विधायकों का था। दिनभर की गहमागहमी के बाद अहमद पटेल ने 44 वोटों के साथ जीत हासिल कर ली। इससे पहले पार्टी के दो विधायकों द्वारा की गई क्रॉस वोटिंग को लेकर सात घंटे तक गांधीनगर से नई दिल्ली तक चले हंगामे के बाद चुनाव आयोग ने रात साढ़े 11 बजे दोनों विधायकों के वोट रद्द कर वोटों की गिनती शुरू करने का आदेश दिया था। इसके बावजूद भाजपा ने गिनती शुरू करने में अड़ंगा लगा दिया और रात्रि डेढ़ बजे के बाद वोटों की गिनती शुरू हो सकी और करीब दो बजे नतीजा आया। चुनाव आयोग के फैसले से कांग्रेस ने काउंटिंग पूर्व ही लड़ाई जीत ली। इसके साथ ही कांग्रेसी खेमा अहमद पटेल की जीत के प्रति पूरी तरह से पहले ही आश्वस्त हो गया था। पार्टी को जीत के आंकड़े 43.5 से कहीं ज्यादा वोट मिले। कांग्रेस को बड़ी राहत देते हुए चुनाव आयोग ने उसके दो विधायकों के डाले गए वोटों को मतपत्रों की गोपनीयता का उल्लंघन करने के मामले में देर रात खारिज कर दिया। आयोग ने निर्वाचन अधिकारी से कांग्रेस विधायक भोलाभाई गोहिल और राघवजी भाई पटेल के मतपत्रों को अलग करके मतगणना करने को कहा। आयोग के आदेश के अनुसार मतदान प्रक्रिया का वीडियो फुटेज देखने के बाद पता चला कि दोनों विधायकों ने मतदान की गोपनीयता का उल्लंघन किया था। नियम यह है कि राज्यसभा चुनाव में मतदान का बैलेट पेपर पार्टी के अधिकृत पोलिंग एजेंट को दिखाना होता है। इसके बाद बैलेट बॉक्स में डालते हैं। हुआ यह कि राघवजी पटेल और भोलाभाई गोहिल ने दो सैकेंड के लिए बैलेट पेपर अमित शाह की तरफ किया। कांग्रेस के पोलिंग एजेंट शक्ति सिंह गहलोत ने यह देख लिया। पार्टी ने पहले रिटर्निंग ऑफिसर और फिर चुनाव आयोग से दोनों के वोट रद्द करने की मांग की। वोटिंग का वीडियो कांग्रेस के समर्थन में था। रणदीप सुरजेवाला, पी. चिदम्बरम सहित छह नेताओं ने तीन बार आयोग को दस्तावेज सौंपे। हरियाणा और राजस्थान में ऐसे ही मामलों का हवाला दिया गया। सुप्रीम कोर्ट का इस मुद्दे पर फैसला भी दिया गया। कांग्रेस की पुख्ता दलीलों और सबूतों को भाजपा नकार नहीं सकी और चुनाव आयोग ने कांग्रेस के हक में अपना फैसला सुना दिया। इस एक फैसले से चुनाव आयोग ने अपनी विश्वसनीयता साबित कर दी है। सारा देश देख रहा था कि चुनाव आयोग किसी के दबाव में काम करेगा या फिर देश के संविधान के भीतर नियमों और कानूनों के मुताबिक? चुनाव आयोग ने भाजपा के तमाम दबाव, दलीलों को खारिज करते हुए एक झटके में अपने सारे विरोधियों का मुंह बंद कर दिया। अंतत लोकतंत्र की जीत हुई।

-अनिल नरेन्द्र

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