Sunday 6 March 2016

देश विरोधी गतिविधियों के गढ़ बनते कुछ शैक्षणिक संस्थान

आईआईटी बाम्बे के शिक्षकों के एक समूह ने कहा है कि उच्च शिक्षा के कुछ संस्थान ऐसी गतिविधियों की शरणस्थलियां बन गए हैं जो कि राष्ट्र हित में नहीं हैं। शिक्षकों के इस समूह ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से अपील की है कि वे छात्रों को परिसरों में विचारधाराओं के युद्ध का पीड़ित न बनने का संदेश दें। 60 सदस्यों की यह याचिका आईआईटी-बाम्बे के ही शिक्षकों के अन्य समूह की ओर से बीते दिनों एक बयान जारी करने के बाद आई है। उस समूह ने जेएनयू के आंदोलनकारियों के प्रति समर्थन जताया था और कहा था कि सरकार को `राष्ट्रवाद' का अर्थ थोपना नहीं चाहिए। राष्ट्रपति को लिखे पत्र में संस्थान के 60 सदस्यों ने दावा किया है कि जेएनयू प्रकरण राष्ट्र हित को कमजोर करता है और यह इस बात के पर्याप्त संकेत देता है कि कुछ समूह प्रमुख संस्थानों के युवा मस्तिष्कों का इस्तेमाल शांति एवं सद्भाव के स्थान पर गाली-गलोच और उग्रता वाला माहौल बनाने के लिए करने की कोशिश कर रहे हैं। पत्र में कहा गया है कि जेएनयू के अलावा कई अन्य उच्च शिक्षा संस्थान ऐसी गतिविधियों के लिए शरणस्थली माने जाते हैं, जोकि राष्ट्र हित में नहीं है। कुछ बेहद कुशाग्र युवा मस्तिष्क, खुद को शैक्षणिक संस्थाओं के लिए स्वस्थ माहौल उपलब्ध करवाने वाली गतिविधियों में लगाने की बजाय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर ऐसी गतिविधियों में शामिल कर लेते हैं जो अकादमिक माहौल बिगाड़ देती हैं। पत्र में लिखा है कि हम आपसे विनम्र अनुरोध करते हैं कि आप हमारे देश के युवा कुशाग्र मस्तिष्कों से अपील करें और कहें कि वे विचारधाराओं की लड़ाई में न तो शामिल हों और न ही उनके पीड़ित बनें। जेएनयू विवाद राष्ट्र हित को नजरंदाज करता है और यह इस तरफ संकेत देता है कि कुछ समूह कटुता और माहौल खराब करने के लिए युवाओं के जेहन में जहर घोल रहे हैं। इन संस्थानों के युवाओं से अपील करते हैं कि वे अपना समय, ऊर्जा और राष्ट्रीय संसाधन बर्बाद न करें, बल्कि गंभीर विद्वता को बढ़ावा देने का काम करें जो देश को आगे लेकर जाए। 20 फरवरी को आईआईटी बाम्बे के एक शिक्षक वर्ग ने विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में सरकार के `अत्याधिक दखल' और असहमति एवं मतभेदों के दबाने के लिए उसकी निंदा की थी। एक संयुक्त बयान में कहा थाöभारतीय होने के कई अर्थों पर सरकार तानाशाही नहीं चला सकती और वह राष्ट्रवाद के अर्थ पर जनादेश नहीं दे सकती। जेएनयू में हुई नारेबाजी निश्चित तौर पर प्रशासन या भारत सरकार के साथ मतभेदों को जाहिर करने तक सीमित नहीं थी। ये आवाजें स्पष्ट तौर पर जम्मू-कश्मीर को अलग करने की मांग कर रही थीं और इसके कारण अकादमिक क्षेत्र में भारी तनाव पैदा हो गया। अफजल गुरु (संसद हमले का दोषी) को मिली मौत की सजा को `न्यायिक हत्या' कहकर विभिन्न समूहों की ओर से लगाए गए नारे हमारी न्यायपालिका, हमारी सरकार और भारत के राष्ट्रपति के कार्यालय का अपमान करके राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के समर्थन के गुप्त उद्देश्यों को उजागर करते हैं। हम साफ शब्दों में इस अभिव्यक्ति की निंदा करते हैं। हम दृढ़ता के साथ कहते हैं कि भारत की संप्रभुता एवं अखंडता का सम्मान हर भारतीय का पहला कर्तव्य है।

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