Friday 4 March 2016

कन्हैया को सशर्त जमानत ः हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी

यह विडंबना नहीं तो और क्या है? अफजल गुरु और याकूब मेमन की न्यायिक हत्या यानि ज्यूडिशियल किलिंग की दुहाई देने वाले जेएनयू के कन्हैया कुमार को अंतत अदालत की शरण में जाना पड़ा और जमानत की अर्जी दाखिल करनी पड़ी और हमारी अदालतों की निष्पक्षता देखिए, हाई कोर्ट ने कन्हैया को जमानत भी दे दी। हालांकि यह सशर्त जमानत है। न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी ने अपने फैसले में कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि संविधान में सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है, लेकिन इस स्वतंत्रता के साथ कुछ जिम्मेदारियां भी हैं। अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी की पीठ ने कन्हैया को 10 हजार रुपए के निजी मुचलके और एक जमानती पर सशर्त जमानत दी। जमानती कन्हैया या जेएनयू का कोई प्रोफेसर या संस्थान से जुड़ा और सदस्य होना चाहिए। हाई कोर्ट के इस फैसले से दिल्ली पुलिस को झटका जरूर लगा है। अपने 23 पन्नों के फैसले में पीठ ने कहा कि पुलिस के पास ऐसा कोई वीडियो नहीं है जिससे कन्हैया देश विरोधी नारेबाजी करता नजर आया हो। पुलिस ने वीडियो के ही आधार पर यह मामला दर्ज किया था। अदालत ने अंतरिम जमानत की शर्तों में कन्हैया को एक हलफनामा भी देने को कहा जिसमें उसे लिखना होगा कि वह अदालतों की शर्तों का पालन करेगा। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कई तीखी टिप्पणियां भी कीं और नसीहतें भी दीं। ऐसी नारेबाजी करने वाले तभी तक स्वतंत्र हैं जब तक देश के सैनिक सीमा पर उनकी सुरक्षा सुनिश्चित कर रहे हैं। क्या अफजल गुरु और मकबूल भट्ट के समर्थन में नारेबाजी करने वाले एक घंटे भी दुर्गम क्षेत्र में रह सकते हैं? जो राष्ट्र विरोधी संक्रमण की दूषित मानसिकता से पीड़ित हैं ऐसे छात्रों को नियंत्रित किया जाना जरूरी है ताकि यह एक महामारी न बन जाए। जब संक्रमण एक अंग में फैलता है तो एंटी बायोटिक दवाएं भी काम नहीं करतीं। ऐसे में उपचार की दूसरी पद्धति का पालन करके ही इलाज करने की कोशिश की जानी चाहिए। कभी-कभी शल्य चिकित्सा की जाती है, लेकिन जब अंत हो जाता है तो अंग काटना  ही पड़ता है। अफजल गुरु और मकबूल भट्ट के पोस्टर पकड़े हुए छात्रों को आत्मनिरीक्षण की जरूरत है। अफजल गुरु को हमारी संसद पर हमले का दोषी पाया गया था। उसकी पुण्यतिथि पर नारेबाजी राष्ट्र विरोधी विचारों को जन्म देती है। हाई कोर्ट ने जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष होने के नाते कन्हैया कुमार की जिम्मेदारी तय की कि वह विश्वविद्यालय परिसर में होने वाले किसी भी तरह की देश विरोधी गतिविधियों पर नियंत्रित करने का हर संभव प्रयास करेंगे। अदालत ने कहा कि जेएनयू के शिक्षकों को रास्ते से भटके छात्रों को सही रास्ते पर लाना चाहिए। अदालत ने कहा कि वह इस मामले में फैसला देते हुए खुद को चौराहे पर खड़ी पाती है। याचिकाकर्ता एक बौद्धिक वर्ग से है और पीएचडी कर रहा है। जेएनयू बुद्धिजीवियों के केंद्र के रूप में माना जाता है। अदालत ने कहा कि किसी भी व्यक्ति की राजनीतिक संबद्धता या विचारधारा हो सकती है। उसे आगे बढ़ाने के लिए हर किसी के पास अधिकार है, लेकिन यह केवल संविधान के दायरे में रहते हुए होना चाहिए। कन्हैया कुमार को जमानत देने के फैसले की शुरुआत न्यायाधीश ने अभिनेता मनोज कुमार की देशभक्ति से प्रेरित फिल्म उपकार के गाने से की। उगले हीरे मोती, मेरे देश की धरती... का जिक्र करते हुए न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी की पीठ ने कहा कि गीतकार इन्दीवर का यह देशभक्ति गीत मातृभूमि के लिए अलग-अलग रंग और प्यार का प्रतिनिधित्व कर विशेषताओं का प्रतीक है। यह समय है जब इस वसंत के मौसम में प्रवृत्ति के सभी रंग के फूल खिलते हैं। इस वसंत में प्रतिष्ठित जेएनयू जो दिल्ली के दिल में स्थित है वहां क्यों शांति के रंग में भंग पड़ गया। छात्रों, संकाय सदस्यों और इस राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के प्रबंधन को इसका जवाब देने की जरूरत है।

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