Sunday 13 March 2016

मई-जून में हो सकते हैं 13 वार्डों के उपचुनाव

दिल्ली में एमसीडी के उपचुनाव तय हो गए हैं। हालांकि इन चुनावों का इतना असर राजधानी की सियासत पर सीधा तो नहीं पड़ता पर फिर भी दिल्ली की जनता के मूड का थोड़ा अनुमान तो लगाया ही जा सकता है। एमसीडी में मुद्दे अलग होते हैं और उम्मीदवार की व्यक्तिगत छवि और जनसम्पर्प से बहुत फर्प पड़ता है। जहां यह आम आदमी पार्टी, कांग्रेस व भाजपा तीनों के लिए एक चुनौती है वहीं इन उपचुनावों में लड़ने को लेकर नेता थोड़ा असमंजस में हैं। वे तय नहीं कर पा रहे हैं कि वह चुनाव लड़ें या न लड़ें। 2014 और उसके बाद 2015 में हुए विधानसभा चुनाव में जीतकर विधायक बने निगम पार्षदों के वार्ड खाली होने की वजह से 13 सीटों पर उपचुनाव होने हैं। माना जा रहा है कि दिल्ली विधानसभा के बजट सत्र के बाद कभी भी चुनावों की घोषणा हो सकती है। कहा जा रहा है कि चुनाव मई मध्य या फिर अंत तक हो सकते हैं। नेताओं की कन्फ्यूजन का कारण भी करीब साफ है। अगले साल अप्रैल में फिर से एमसीडी चुनाव होने हैं। ऐसे में नेता उपचुनाव लड़ना घाटे का सौदा मान रहे हैं क्योंकि उपचुनाव जीतकर निगम पार्षद बनने वालों का कार्यकाल एक साल से भी कम होगा। करीब एक साल पहले दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी के हाथों मिली करारी हार को भाजपा भुलाए नहीं भूली होगी। हालांकि भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सतीश उपाध्याय का कहना है कि पार्टी हर तरह के चुनाव को लेकर गंभीर रहती है। बाई इलैक्शन के लिए तैयारियां चल रही हैं। रही कैंडिडेट के नामों को डिक्लेयर करने की बात तो चुनावों की तारीख आते ही इसकी घोषणा कर दी जाएगी। तीनों नगर निगम के चुनाव 2017 में होने हैं। इससे पहले इन 13 सीटों पर होने वाले बाई इलैक्शन राजनीतिक पार्टियों के लिए यह सेमीफाइनल जैसा है। इसमें आप पार्टी को सफलता मिलती है तो इससे भाजपा को खासा नुकसान होगा और अगर भाजपा स्कोर बनाती है तो आप बैकफुट पर आ सकती है। आप पार्टी ने ताल ठोंक कर उतरने का मन बना लिया है। सूत्रों की मानें तो पार्टी ने इस निगम के 13 वार्डों में होने वाले उपचुनाव में उतरने का फैसला ले लिया है। पार्टी इन उपचुनावों में किसी भी प्रकार का खतरा मोल नहीं लेना चाहती। असली डर भाजपा से ज्यादा कांग्रेस को है, क्योंकि कांग्रेस का दिल्ली में कोई वजूद नहीं बचा। बेशक कांग्रेस पिछले कुछ समय से काफी सक्रिय है पर यह वोटों में कितना तब्दील होता है इस पर प्रश्नचिन्ह है। गौरतलब है कि दिल्ली में पूर्ण बहुमत के बाद केजरीवाल सरकार उपचुनाव कराना चाहती थी। लेकिन उस दौरान बोर्ड परीक्षा होने की वजह से ऐसा न हो सका। पार्टी ने कोर्ट में भी कहा था कि चूंकि पूरे निगम के चुनाव में काफी कम समय बचा है इसलिए पार्टी ने पूरे निगम के चुनाव कराने के लिए कहा था। कोर्ट ने तीन माह के भीतर चुनाव का निर्देश दिया था।

-अनिल नरेन्द्र

No comments:

Post a Comment