Thursday 30 April 2015

उम्र नहीं, मेनटेनेंस हो फिटनेस का पैमाना

केंद्र सरकार ने सोमवार को राष्ट्रीय हरित पाधिकरण का रुख कर 15 साल पुराने पेट्रोल और 10 साल पुराने डीजल वाहनों के दिल्ली-एनसीआर में चलाए जाने पर पतिबंध लगाने वाले उसके आदेश पर स्थगन की मांग की है। इसके पीछे यह आधार दिया कि यह सार्वजनिक एवं अनिवार्य सेवाओं को पभावित करेगा। सरकार ने अपनी अजी में ट्रिब्यूनल को इस संबंध में उसकी ओर से उठाए जा रहे कदमों की भी जानकारी दी और उन्हें लागू करने के लिए छह महीने का वक्त मांगा है। ग्रीन बैंच ने रिपोर्ट को एनालिसिस के लिए अपने पास रख लिया है। मामले की अगली सुनवाई 1 मई को होगी। केंद्र की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल पिंकी आनंद ने दलील देते हुए एनजीटी को बताया कि दिल्ली में पब्लिक ट्रांसपोर्ट की भारी मांग होने की वजह से बड़ी संख्या में लोग निजी गा]िड़यों का इस्तेमाल करते हैं। सरकार पब्लिक ट्रांसपोर्ट को ज्यादा अफोर्डेबल और यूजर फैंडली बनाने के लिए लगातार काम कर रही है। लेकिन इसके लिए हर साल बड़े पैमाने पर इन्वेसटमेंट की जरूरत पड़ती है। इस बीच लोगों ने गाड़ियां खरीदने में अपना काफी पैसा लगा दिया, लोन ले लिया, इस उम्मीद से कि उनकी गाड़ियां सालों साल सड़कों पर दौड़ती रहेंगी। सरकार की ओर से दलील दी गई कि कई सरकारी विभागों की ओर से लोगों को जरूरी सेवाएं दी जा रही हैं। जिनमें हास्पिटल, म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन, पोस्टल डिपार्टमेंट आदि शामिल है और इनके पास मौजूद गाड़ियों में अधिकांश 10 से 15 साल पुरानी है। पाइवेट ट्रांसपोर्ट कैरिज में भी 10 से 15 साल पुरानी गाड़ियों की अच्छी खासी संख्या है और उनकी हालत भी अच्छी है। श्री पिंकी आनंद ने बताया कि 10 साल से पुराने सिर्फ सात पतिशत वाहन है जबकि 10 साल से कम पुराने 92 पतिशत वाहन है। सरकार की ओर से दलील दी गई कि उम्र नहीं मेनटेनेंस हो फिटनेस का पैमाना। मोटर व्हीकल एक्ट 1998 के तहत गाड़ियों के लिए कोई विशेष एज लिमिट तय नहीं की गई है। गाड़ी की उम्र तभी खत्म होती है या मानी जाती है जब मेनटेनेंस के बावजूद फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं मिलता। लोगों ने लोन लेकर खरीदी है गाड़िया ताकि वे कई सालों तक चलें। पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बेहतर बनाने पर हो रहा है काम, पर चाहिए भारी इन्वेस्टमेंट। एक्सपर्ट टीम की रिसर्च के मुताबिक पुरानी गाड़ियों से फैलने वाले पाल्यूशन की मात्रा कम है। एडवोकेट बलेंद्र शेखर और राजेश रंजन की ओर से दाखिल याचिका में आईआईटी दिल्ली के पोफेसर दिनेश मोहन के 12 अपैल 2015 को छापे रिसर्च आर्टिकल और बेंचमॉकिंग व्हीकल एंड पैसेंजर ट्रेवल करेक्टस्टिबल इन दिल्ली फार ऑन रोड एकिशन एनालासिस पर आईआईटी दिल्ली के चार पतिशत पोफेस्टर्स के जॉइंट आर्टिकल का जिक किया गया है। इसके आधार पर केंद्र की ओर से कहा गया है कि एज (उम्र) के आधार पर गाड़ियों पर बैन लगाने जैसे सख्त कदमों से पॉल्युशन की समस्याओं का पूरी तरह समाधान नहीं होगा। पॉल्यूशन के कई और कारण भी हैं जिन पर ध्यान देना होगा।
-अनिल नरेन्द्र


ग्रीन पीस के बाद फोर्ड फाउंडेशन पर सरकार का शिकंजा

गृह मंत्रालय ने स्वयंसेवी संस्थाओं को धन मुहैया कराने वाली दुनिया की सबसे बड़ी एजेंसी फोर्ड फाउंडेशन पर अंकुश लगाते हुए उसे निगरानी में डाल दिया है। इससे पहले पर्यावरण के लिए काम करने वाले संगठन ग्रीन पीस का लाइसेंस रद्द करके भारत में इसके सभी खाते सील कर दिए थे। केंद्रीय गृह मंत्रालय के मुताबिक विदेशों से आर्थिक सहायता पाप्त गैर सरकारी संगठनों में से 10 हजार से ज्यादा ने 2009 से अब तक के आय-व्यय का हिसाब  नहीं दिया है। ये संगठन मनी लाड्रिंग और आतंकी गतिविधियों में लिप्त हो सकते हैं। फरवरी में मंत्रालय की खुफिया रिपोर्ट में कहा गया कि ये संस्थाएं विदेशी पैसे के बल पर ऐसा माहौल बनाने में जुटी हैं जिससे विकास की कई परियोजनाएं बाधित हो रही हैं। गृह मंत्रालय ने इसी महीने की नौ तारीख को अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवी संस्था ग्रीन पीस इंडिया को विदेशी फंडिंग पर यह कहते हुए रोक लगा दी थी कि वह भारत के आर्थिक विकास के खिलाफ काम कर रही है। गृह मंत्रालय के मुताबिक इस फैसले के बाद भारत में किसी भी एजेंसी को फोर्ड फाउंडेशन से धन लेने से पहले सरकार से अनुमति लेनी होगी। दरअसल गुजरात सरकार ने गृह मंत्रालय से शिकायत करते हुए आरोप लगाया था कि अमेरिकी संस्था फोर्ड फाउंडेशन आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रही है और सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता शीतलवाड के एनजीओ के जरिए राज्य में सांपदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश कर रही है। गृह मंत्रालय ने यह भी कहा है कि सरकारी संगठन आर्थिक मामलों के विभाग की मंजूरी के बाद ही फोर्ड से धन पाप्त कर सकते हैं। मंत्रालय के निर्देश पर रिजर्व बैंक ने सभी सरकारी और निजी बैंकों से कहा है कि फोर्ड फाउंडेशन से आने वाले धन पर नजर रखें। बैंकों से यह भी कहा गया है कि अगर किसी संस्था के पास मंत्रालय की अनुमति नहीं है तो उसके खाते में धन ट्रांसफर नहीं किया जाए। फोर्ड फाउंडेशन की फंडिंग पर खुफिया एजेंसिया कई माह से नजर रख रही है। इसी कवायद में उसके 30 करोड़ की फंडिंग पर रोक लगाई गई। फाउंडेशन जिन संस्थाओं को धन मुहैया करा रही थी उन्होंने नियम के तहत मंत्रालय को सालाना रिपोर्ट और बैलेंस शीट नहीं दी है। सरकार के फैसले के खिलाफ कुछ संगठनों ने अदालत का दरवाजा भी खटखटाया है। उनका कहना है कि सरकार बदले की भावना से काम कर रही है। उन्हीं संगठनों को निशाना बनाया जा रहा है जो सरकार की नीतियों पर सवाल उठा रहे हैं। हालांकि सरकार के अलावा देश के कई बुद्धिजीवियों ने भी इन संगठनों पर भी सवाल उठाए हैं। विदेशी चंदा हासिल कर रहे गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) पर कार्रवाई करते हुए सरकार ने तकरीबन 9000 एनजीओ का लाइसेंस विदेशी चंदा नियमन कानून (एफसीआरए) का उल्लंघन करने के संबंध में रद्द कर दिया है। एक अन्य आदेश में गृह मंत्रालय ने कहा कि साल 2009-10, 2010-11, 2011-12 के लिए वार्षिक रिटर्न नहीं दाखिल करने के लिए 10 हजार 343 एनजीओ को नोटिस जारी किए गए थे। इन एनजीओ से कहा गया है कि वह बताएं कि उन्हें कितना चंदा मिला है विदेशों से, इस चंदे का क्या स्रोत है, किस उद्देश्य से लिया गया है और कहां खर्च किया गया? यह विवाद लंबा चलेगा और कई तथ्य सामने आएंगे।

Wednesday 29 April 2015

भारी तबाही की ढेर पर बैठी है दिल्ली

भूकंप के नजरिये से दिल्ली तबाही के ढेर पर बैठी है। राजधानी में ज्यादातर मकानों को देख आशंका होती है कि अगर कोई भीषण भूकंप आ जाए तो दिल्ली का क्या होगा? जब कभी दुनिया में भूकंप आता है या दिल्ली के आसपास के क्षेत्र में भूकंप आता है तो दिल्ली की चर्चा होने लगती है और जैसे-जैसे समय निकलता जाता है सब लोग भूल जाते हैं और सब चिंताएं दूर हो जाती हैं मानों सब ठीक है। यह हमारा सौभाग्य है कि अभी तक कोई भी भूकंप 6 की तीव्रता से अधिक दिल्ली में आया नहीं, नहीं तो बहुत हानि हो सकती है। सिस्मिक जोन चार में आने के चलते दिल्ली का 70 फीसद से अधिक निर्माण भूकंप की दृष्टि से खतरनाक है। यहां कार्य लगातार जारी है। वहीं वोट बैंक की राजनीति में सरकार भी गलत निर्माण की स्वीकृति देने पर तुली है। अतिरिक्त एफआईआर (फ्लोर एशिया रेशियो) देकर निर्माण और भी खतरनाक बनाया जा रहा है। ऐसे में भूकंप की तीव्रता 6 से अधिक होने पर दिल्ली की तबाही होने से कोई नहीं रोक पाएगा। वजीराबाद से बदरपुर तक यमुना बहाव क्षेत्र में हुए निर्माण बेहद खतरनाक है। विशेषज्ञों की मानें तो जलजले का जरा-सा तेज झटका इस पूरे क्षेत्र में रहने वाले करीब 50 लाख लोगों की जान के लिए आफत बन सकता है। परेशानी का सबब यह भी है कि यमुना किनारे ऐसे लाखों मकान हैं जिनकी बीतें 10 साल से मरम्मत तक नहीं कराई जा सकी है। जाहिर तौर पर इनमें रहने वाले लाखों लोग जबरदस्त दहशत में होंगे। विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि नेपाल में जिस तरह से भूकंप आया है अगर दिल्ली में आ जाए तो दिल्ली के 70 फीसद का सफाया हो जाएगा। कारण दिल्ली शहर में 30 फीसद इमारतें ही भूकंप से सुरक्षित हैं। इन इमारतों के बाकी के मुकाबले आपदा की स्थिति में बचे रहने की ज्यादा संभावना है। मगर चिंताजनक बात यह है कि पानी की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए भूजल का दोहन खूब हो रहा है, जिससे क्षेत्र रेगिस्तान में तब्दील हो रहा है। जियोलॉजिस्ट के अनुसार भूकंप की तीव्रता का असर कठोर की अपेक्षा रेतीली जमीन पर अधिक होता है। ऐसे में अगर शहर में तेज भूकंप आता है तो अधिक बर्बाद होगी। दूसरी ओर आपदा प्रबंधन कानून बनने के 10 साल बाद भी राजधानी में किसी भी आपदा से निपटने के लिए कोई ठोस योजना नहीं  बन सकी है। दिल्ली सरकार हाई कोर्ट में भी यह बात स्वीकार कर चुकी है। चीफ जस्टिस जी. रोहिणी और जस्टिस राजीव सहाय एंडला की पीठ के हस्तक्षेप के बाद सरकार ने आपदा प्रबंधन कानून के तहत योजना बनाने का भरोसा दिया है। एक याचिका की सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा था कि कानून को बने करीब एक दशक बीत चुका है, अब क्या इसमें 100 साल लगेंगे? आपदा प्रबंधन कानून के तहत न सिर्प तत्काल राहत व बचाव बल्कि पीड़ितों के पुनर्वास के लिए भी विशेष योजना बनाने का प्रावधान है। दुख से कहना पड़ता है कि दिल्ली बारुद के ढेर पर बैठी है और किसी को इसकी चिंता नहीं नजर आती। बस उपर वाले का ही सहारा है।

-अनिल नरेन्द्र

सब कुछ थम गया नहीं थमी तो पशुपतिनाथ की आरती

नेपाल में 7.9 तीव्रता का भूकंप इतना शक्तिशाली था कि दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट को भी हिलाकर रख दिया। माउंट एवरेस्ट के आधार शिविर पर हिमस्खलन होने से 18 पर्वतारोहियों की मौत हो गई और कई अन्य लापता हैं। नेपाल पर्यटन मंत्रालय के प्रवक्ता ज्ञानेन्द्र श्रेष्ठ ने कहा कि आधार शिविर में हिमस्खलन के बाद सैकड़ों विदेशी पर्वतारोहियों और गाइडों के लापता होने की आशंका है। भूकंप के समय माउंट एवरेस्ट के आधार शिविर में करीब 400 विदेशियों समेत कम से कम 1000 पर्वतारोही थे। एवरेस्ट को काफी नुकसान पहुंचा है। यहां तक कि पर्वतारोहियों के कई बेस कैंप तबाह हो चुके हैं। भारतीय वायुसेना ने यहां से 19 शव निकाले हैं। यह सभी विदेशी पर्वतारोहियों के हैं। कुल मिलाकर भारतीय सेना ने माउंट एवरेस्ट से 61 पर्वतारोहियों को बचाया जबकि 19 शवों को बाहर निकालने में मदद की। नेपाल में आए भयंकर भूकंप से ऐतिहासिक काष्ठमंडप सहित कई प्राचीन मंदिर ध्वस्त या बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए हैं। काष्ठमंडप लकड़ियों से बना 16वीं शताब्दी का स्मारक है। इससे ही राजधानी का नाम काठमांडू रखने की प्रेरणा मिली। काठमांडू के अलावा जो अन्य प्राचीन मंदिर ध्वस्त हुए, उसमें पंचतले मंदिर, नौ मंजिला बसंतपुर दरबार, दशावतार मंदिर और कृष्णा मंदिर शामिल हैं। मदुरै से आए सीएन रामास्वामी ने कहा कि 15 लोगों के साथ पशुपतिनाथ के दर्शन करने और काठमांडू घूमने आए थे। पशुपतिनाथ मंदिर सुरक्षित है। वहां दर्शन भी हुए, भूकंप के बाद जिंदा बचे तो लगा भगवान मिल गए। पूरा शहर सन्नाटे में है। सब कुछ थम-सा गया है। कहीं सक्रियता है तो पशुपतिनाथ मंदिर के पीछे बागमती नदी के तटों पर, जहां चिताएं जल रही हैं। लोग परिजनों के अंतिम संस्कार के इंताजर में शव लिए घाट पर घंटों बैठे हैं। शाम को तेज बारिश होने लगी तो मैं (सीएन रामास्वामी) पशुपतिनाथ मंदिर पहुंच गया। देखा आरती की तैयारी हो रही है। हर आंख आंसू से भरी हुई थी। दिल में अपनों को खोने का गम था, लेकिन बाबा से कोई नाराजगी नहीं। आरती हुई। उसी विश्वास और श्रद्धा के साथ, जैसी सदियों से होती आई है। आमतौर पर काठमांडू से दिल्ली का किराया पांच हजार होने के बावजूद कंपनियां पैसेंजरों से एक टिकट का 20 हजार रुपए तक वसूल रहे हैं। भारतीय विमान में अपनी पहचान का कोई सबूत दिखाने पर निशुल्क सफर कर रहे हैं। शनिवार का भूकंप परमाणु बम से भी सैकड़ों गुना शक्तिशाली था। इससे निकली ऊर्जा हिरोशिमा में गिराए गए परमाणु बम से 504.4 गुना ज्यादा थी। भूकंप का केंद्र जमीन के अंदर ज्यादा गहराई में न होता तो यह नेपाल, भारत के साथ-साथ समूचे दक्षिण एशिया में और अधिक विनाशकारी साबित होता। ज्यादा गहराई में आए भूकंप का दायरा ज्यादा होता है किन्तु इससे नुकसान कम होता है। शनिवार को आए भूकंप का केंद्र जमीन की सतह से करीब 12 किलोमीटर नीचे होने की वजह से नुकसान अपेक्षाकृत कम हुआ।

Tuesday 28 April 2015

...और अब कमजोर मानसून से निपटने की चुनौती

यह खबर निसंदेह मायूसी पैदा करने वाली है कि इस साल भी मानसून सामान्य से कम रहेगा। जिस समय अधिकांश ग्रामीण इलाका पिछले साल की खराब मानसून और बाद में बेमौसम बारिश और ओलावृष्टि की मार से जूझ रहा है सारी उम्मीदें आगे की संभावनाओं पर टिकी थीं। पिछले साल की अपर्याप्त मानसूनी बारिश से जो दिक्कतें पैदा हुईं, वह बीते दिनों बेमौसम बारिश और ओलों की बौछार से और बढ़ गई हैं। अब मौसम विभाग ने कहा है कि इस साल भी मानसून के सामान्य से कम होने की आशंका है। मौसम विभाग का कहना है कि हो सकता है कि मानसूनी बारिश सामान्य की 93 प्रतिशत तक ही रहे। इसकी मुख्य वजह प्रशांत महासागर में अल नीनो प्रभाव की मौजूदगी बताई जा रही है। अल नीनो की वजह से प्रशांत महासागर का पानी सामान्य से ज्यादा गरम हो जाता है, जिससे मानसून के बादलों का बनना और भारत की ओर इसकी गति कमजोर हो जाती है। अगर देश में सूखे की स्थिति होती है तो यह केवल देश के किसान के लिए ही नहीं, पूरी अर्थव्यवस्था के लिए चिन्ता कारण बन रही है। यदि किसान की जेब में पैसा नहीं होगा तो एक ओर तो बाजार की चाल को मंदी की चपेट में आने से नहीं रोका जा सकता और दूसरी ओर जनता को महंगाई की मार से भी नहीं बचाया जा सकता। भारत में मौसम की परिस्थितियां इस कदर गंभीर हैं फिर भी इस ओर जितना ध्यान देने की आवश्यकता है उसका अंश मात्र भी नहीं दिया जा रहा है। यह पहली बार नहीं जब किसान बेमौसम बारिश का शिकार हुआ है। करीब करीब हर वर्ष देश के किसी न किसी हिस्से में या तो बाढ़ आती है या सूखा पड़ता है। इस बार फसलों की क्षति का दायरा बढ़ा अवश्य है लेकिन किसानों की आत्महत्या के बढ़ते मामले यही बता रहे हैं कि वह खुद को ज्यादा ही संकट में घिरा पा रहे हैं। इस संकट की एक बड़ी वजह किसानों का वह कर्ज है जो  उन्होंने ले रखा है और अब फसल की बर्बादी के चलते उनके लिए उसे चुकाना मुश्किल हो गया है। राजनीतिक दलों को यह पता होना चाहिए कि एक बड़ी संख्या में किसान अपनी जरूरतों के लिए साहूकारों, सूदखोरों से कर्ज लेते हैं। जिन किसानों ने बैंकों से कर्ज ले रखा है उनकी संख्या सीमित है। हो सकता है कि इन किसानों को बैंकों से कुछ राहत मिल जाए लेकिन साहूकारों और सूदखोरों से कर्ज लेने वाले किसानों को कहीं कोई राहत नहीं मिलने वाली। दीर्घकालिक तौर पर महज 93 प्रतिशत बारिश होने की संभावना है जो घटकर 88 प्रतिशत तक रह सकती है। केंद्रीय विज्ञान एवं तकनीक मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने भारतीय मौसम वैज्ञानिकों का आंकलन पेश करते हुए देश के कुछ हिस्सों में सूखा पड़ने की आशंका जताई है। भारत जैसे देश में जहां खेती का बड़ा हिस्सा मौसमी बारिश पर निर्भर है, ऐसी भविष्यवाणियों का असर सहज समझा जा सकता है। दरअसल मानसून भविष्यवाणियों के साथ खासकर भारत में यह समस्या है कि ठीक-ठीक से यह मालूम नहीं होता कि कम बारिश का असर किस इलाके में ज्यादा होगा और जो वर्षा होगी वह कब होगी। नतीजतन किसान समय रहते आपात स्थिति से मुकाबले के लिए तैयार नहीं हो पाते।

-अनिल नरेन्द्र

पार्टी की छवि बदलने राहुल बाबा केदार की शरण में

लगभग दो महीने अज्ञातवास में रहने के बाद अपनी इमेज बदलने, छवि बदलने के लिए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी 11 किलोमीटर की अत्यंत कठिन पैदल यात्रा करके बाबा केदारनाथ के दर्शन करने पहुंचे। राहुल ने गौरीपुंड से केदारनाथ के लिए पैदल यात्रा की तो उनके चेहरे पर जबरदस्त उत्साह नजर आया। तीन साल पहले मैं भी केदारनाथ गया था। मुझे मालूम है कि यह यात्रा कितनी कठिन है। मैं राहुल गांधी को बाबा केदार की शरण में आने के लिए बधाई देता हूं। कारण जो भी रहा हो पर इस यात्रा का हम स्वागत करते हैं। राहुल ने गौरीपुंड से केदारनाथ के लिए जब पैदल यात्रा शुरू की तो उनके चेहरे पर जबरदस्त उत्साह नजर आया। उनकी तेज चाल देखकर ऐसा लगा मानों इन पहाड़ी दुर्गम रास्तों पर वह रोज चलने के आदी हैं। 2013 की आपदा से अब केदार यात्रा संभव हुई है। पहले के मुकाबले इस बार यात्रा भी कुछ आसान हुई है। यात्रियों को इस बार 22 किलोमीटर की बजाय 16 किलोमीटर ही पैदल चलना पड़ेगा। शुक्रवार सुबह 11 किलोमीटर की पैदल दूरी कर राहुल कपाट खुलने के मौके पर केदारनाथ पहुंचे। कांग्रेस उपाध्यक्ष गुरुवार को दोपहर विशेष विमान से जौलीग्राट हवाई अड्डे देहरादून पहुंचे। वहां उनका स्वागत मुख्यमंत्री हरीश रावत ने किया। राहुल ने 11 किलोमीटर का पैदल सफर सवा चार घंटे में तय कर लिया। इससे यह भी साबित होता है कि वह कितने फिट हैं। उनकी सुरक्षा में लगे एसपीजी जवानों को भी उनके बराबर चलने में पसीने छूट गए। राहुल ने बातचीत में बताया कि इतना स्टैमिना तो है मुझ में। आखिर रोज पांच-छह किलोमीटर दौड़ता हूं। जीन्स और टी-शर्ट पहने राहुल ने पैदल मार्ग पर काम कर रहे श्रमिकों का उत्साह बढ़ाया तो स्थानीय छोटे-छोटे दुकानदारों से भी बातचीत की। उन्होंने व्यापारियों से उनके व्यवसाय व सरकार द्वारा दी गई यात्रा की सुविधाओं पर फीडबैक भी लिया। राहुल व मुख्यमंत्री ने छोटे खच्चर वालों व स्थानीय लोगों से भी मुलाकात की। लिनचोली की खड़ी चढ़ाई पर तेजी से कदम बढ़ा रहे राहुल जोश से लबरेज दिखे। राहुल की केदारनाथ यात्रा को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म हो गया है। कांग्रेस हलकों में यह चर्चा खास तेज है कि अल्पसंख्यक वर्ग पर ज्यादा मेहरबान होने की छवि को बदलने के लिए कांग्रेस उपाध्यक्ष बाबा केदार के दरवाजे पर पहुंचे हैं। पार्टी नेताओं का कहना है कि राहुल गांधी के नेतृत्व में अब कांग्रेस बहुसंख्यक विरोधी छवि सुधारने की दिशा में आगे बढ़ रही है। लोकसभा चुनाव की हार के बाद से ही यह विचार सामने आए हैं कि पार्टी अल्पसंख्यक की पैरोकार बन गई है। जबकि बहुसंख्यक विरोधी छवि से पार्टी को नुकसान हो रहा है। एके एंटोनी समेत तमाम वरिष्ठ नेता पार्टी की आंतरिक बैठकों में यह सवाल खड़ा कर चुके हैं।  जून 2013 में आपदा के बाद मुख्यमंत्री हरीश रावत के प्रयासों से चार धाम यात्रा फिर आरंभ हुई है। हम श्री हरीश रावत को बधाई देना चाहते हैं। कारण चाहे कुछ भी रहे हों हम राहुल गांधी के बाबा केदार की शरण में आने का स्वागत करते हैं और उम्मीद करते हैं कि भोलेनाथ उनका सही मार्गदर्शन करते रहेंगे। जय बाबा केदार की। हर-हर महादेव।

Sunday 26 April 2015

जघन्य अपराधों में 16 वर्ष के किशोर को वयस्क माना जाए

निर्भया बलात्कार कांड के बाद यह मांग लगातार उठती रही है कि जघन्य अपराधों को अंजाम देने वाले किशोरों के साथ उनकी उम्र के आधार पर कोई नरमी न बरती जाए। अब केंद्र सरकार ने इस निर्णय के जरिये इस ओर महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है कि जुर्म की गंभीरता के आधार पर तय किया जाएगा कि आरोपी किशोर पर मुकदमा जुवेनाइल जस्टिस कोर्ट में चलेगा या सामान्य अदालत में। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने किशोर न्याय कानून में इस महत्वपूर्ण संशोधन को मंजूरी दे दी है जिसके मुताबिक हत्या और बलात्कार जैसे जघन्य अपराध के मामले में 16 से 18 वर्ष तक के किशोर अपराधियों के खिलाफ वयस्क अपराधों जैसा मुकदमा चलाने का प्रावधान है। दिसम्बर 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया कांड के बाद से इस कानून के प्रावधानों को लेकर बहस चल रही है। दरअसल इस बर्बर अपराध में एक 17 वर्षीय किशोर भी शामिल था, जिसे किशोर सुधार गृह भेजा गया। हालांकि बलात्कार के मामले में सख्त कानून बनाने के वास्ते गठित किया गया जस्टिस जेएस वर्मा आयोग किशोर अपराध के मामले में उम्र सीमा घटाने के पक्ष में नहीं था। दिवंगत जस्टिस वर्मा का कहना था कि हमारे सामाजिक ढांचे की वजह से इसका सामान्यकरण नहीं किया जा सकता। लेकिन देश में व्यापक रूप से इसके पक्ष और विरोध में दो मत रहे हैं। यहां तक कि संसद की स्थायी समिति तक ने किशोर अपराधों की उम्र घटाने की मांग को खारिज कर दिया था। वास्तव में इस मुद्दे को बदलती परिस्थितियों में देखने की भी जरूरत है, जहां किशोरों की पहुंच इसके साथ ही अपराधों के सधानों तक भी बढ़ी है पर जमीनी हकीकत बताती है कि 2013 वर्ष में 2074 किशोरों ने रेप किया और इनमें 2054 रेप 16-18 वर्ष की आयु के बीच के किशोरों ने किए थे। मौजूदा कानून के अनुसार 18 वर्ष से कम के व्यक्ति को सामान्य कानूनों के तहत सजा नहीं दी जा सकती और न ही उसे जेल में रखा जा सकता है। किशोर न्याय कानून में अधिकतम सजा तीन वर्ष है और यह अवधि किशोर को बाल सुधार गृह में बितानी पड़ती है। केंद्रीय कैबिनेट द्वारा मंजूर प्रस्तावित अधिनियम के मुताबिक जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड ही यह तय करेगा कि किसी किशोर द्वारा अपराध एक नाबालिग के तौर पर अंजाम दिया गया या वयस्क के तौर पर। बोर्ड में मनोचिकित्सक और समाज विशेषज्ञ की मौजूदगी यकीनन इस बाबत आश्वस्त करने में सहायक होगी कि किसी किशोर को नाइंसाफी का शिकार न होना पड़े। इस तरह सरकार ने जुवेनाइल उम्र सीमा में कमी न करते हुए यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि किशोरों द्वारा अंजाम दिए जाने वाले जघन्य अपराधों के कहर पर लगाम लगाई जा सके। सुप्रीम कोर्ट भी जिस तरह छह अप्रैल को अपराधों में किशोरों की बढ़ती संलिप्तता से उत्पन्न स्थिति को लेकर कानूनी प्रावधानों में बदलाव की अपेक्षा की थी, प्रस्तावित अधिनियम उसे पूरा करने का इरादा दिखाता है। निर्भया कांड में हमने देखा कि इस जघन्य अपराध का मास्टर माइंड महज इसलिए बच गया क्योंकि वह कुछ ही महीनों से नाबालिग साबित हो गया। जब वह अपराध मझे हुए अपराधियों की तरह करता है तो सजा भी उसे उसी अपराध की तरह मिलनी चाहिए। हम सरकार के इस कदम का स्वागत करते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

बिहार में काल बैसाखी तूफान से भारी तबाही

बिहार में मंगलवार रात आया तूफान तो बेशक गुजर गया लेकिन अपने पीछे दर्द, आंसू और पीड़ा के कई मंजर छोड़ गया। पूर्णिया, मधेपुरा, कटिहार जिले में तूफान ने व्यापक तबाही फैलाई और 65 लोगों की मौत हो गई जबकि ढाई हजार से ज्यादा लोग घायल हो गए। रात 10 बजे से आधे घंटे तक चक्रवात ने वह तबाही मचाई कि कहीं दरख्तों के टूटने और गिरने की आवाज तो कहीं जान बचाने के लिए जद्दोजहद करते लोगों की चीत्कार। कहीं घरों के टीन के छप्पर पेड़ों की टहनियों में फंसे नजर आए तो कहीं फूस और बांस की टाट से बने गरीबों के आशियाने धराशायी दिखते हैं। पूर्णिया जिले के उत्तर पश्चिम से शुरू हुए तूफान की रफ्तार 200 किलोमीटर प्रति घंटा बताई जा रही है। तूफान पहले तेज हवा से शुरू हुआ और फिर मूसलाधार बारिश के साथ तेज रफ्तार पकड़ता गया। कहीं-कहीं ओले भी पड़े। उसी रफ्तार से यह पूरब कोना होते हुए बंगाल की खाड़ी की ओर चला गया। इससे बायसी अनुमंडल का डगरूमा प्रखंड सर्वाधिक प्रभावित हुआ। इस बीच पूर्णिया पूर्व के अलावा धमदाहा, भवानीपुर बडहरा और सपौली प्रखंडों में भी मुसीबत का पहाड़ टूटा। चक्रवात की चपेट में आकर 500 मवेशी भी मारे गए। मधुबनी जिले के उत्तर पश्चिमी हिस्से में 1800 से ज्यादा कच्चे-पक्के मकान व झोंपड़ियां ध्वस्त हो गईं। आंकलन के मुताबिक पूर्णिया में तूफान के कारण 1.40 लाख हेक्टेयर फसल बर्बाद हो गई है, जिससे करीब 15 अरब रुपए के नुकसान का अनुमान है। जिले में 5255 हेक्टेयर में केले की खेती बुरी तरह प्रभावित हुई है। इसी तरह 52715 हेक्टेयर में लगी मक्के की खेती बर्बाद हो गई। सब्जी, आम एवं लीची की फसलों को भी नुकसान पहुंचा है। कृषि विभाग का कहना है कि 30 करोड़ रुपए का गेहूं, 20 करोड़ का मक्का, एक करोड़ का सूरजमुखी व एक करोड़ रुपए की मसूर की फसल बर्बाद हुई है। राज्य सरकार की ओर से राहत कार्य तेज कर दिया गया है। बेघर हुए लोगों को अनाज-कपड़े और बर्तन के लिए तत्काल 5800 रुपए दिए जा रहे हैं। प्रति परिवार एक क्विंटल अनाज और बेघर लोगों को पालीथिन की चादरें दी जा रही हैं। आपदा प्रबंधन विभाग के प्रधान सचिव ने बताया कि तूफान में एक हजार पशुओं की मरने की खबर है। करीब 10 जिलों में इसका प्रभाव दिखा। बिहार में आंधी-तूफान से हुई भारी तबाही को लेकर केंद्र सरकार भी सक्रिय हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बात कर नुकसान की जानकारी ली और केंद्र से हर संभव मदद की पेशकश की। अचानक आए तेज तूफान और बारिश से पश्चिम बंगाल व झारखंड के कुछ इलाके भी प्रभावित हुए हैं। लोकसभा में बृहस्पतिवार को सदस्यों ने तूफान में भारी नुकसान पर गहरी चिन्ता व्यक्त करते हुए इसे राष्ट्रीय आपदा घोषित करने और बिहार के लिए विशेष आर्थिक पैकेज की मांग की है।

Saturday 25 April 2015

Pakistan gets dual advantage

I am talking about my neighbour Pakistan. China has given Pakistan such a gift bigger than US. The gift was presented by Chinese President XI Chinfing while arriving on his two day visit on Monday. During this 51 bilateral agreements including China-Pak Economic Corridor (CPEC) and Energy projects costing 46 billion dollars were signed between two countries. China-Pakistan has started million dollar pipeline crossing slave Kashmir putting aside the objections of India. Railway network and net of roads will be laid in slave Kashmir under this 46 billion dollar (approx. Rs 2,89,500 crores) project connecting Pakistan's Gwadar port to Xin Ziang state of China. Chinese President announced this agreement within starting hours of arriving Pakistan on Monday. Solar Wind Mills, dams etc. will also be constructed under this project with the help of China. On completion of these projects China will have direct access to Gulf of Arabia and Gulf of Hormuz. This way is near to the oil dispatching ways from West Asia. India mostly imports oil from West Asia. China will be able to use Gwadar as naval centre also. The 46 billion dollar rail network connecting Kashgar in China to Gwadar port situated in Arabian Sea of Pakistan is called China-Pakistan Corridor that crosses POK. Approx. 3 thousand kilometre long road (slip road) rail and pipeline network will be laid under this plan. This agreement of China is much more than total US investments in past years (approx. 31 billion dollars). Significantly it is the first visit of any Chinese President in last nine years. India fears that China can use Gwadar port as naval base in future. Moreover China will have access to Hormuz and Gulf of Arabia wherefrom it can reach nearer to oil dispatch ways of West Asia. These are the ways India imports most of its oil. The way Chinese president XI Chinfing has signed 51 agreements in his first visit, it appears that Pakistan has double advantage.  If US is there to help in open, China is also here. In this context, Pakistan’s foreign policy will be called as success. Leaving aside the basic infrastructure, this corridor alone is sufficient for making India worry. China is bent on setting up nuclear plants of Pakistan and supplying Uranium without consent of supplying countries in lieu of this. Besides talks are also on for supply of military items. In words it will be used against terrorism but will be used on the front of India. China is busy on covering India from all four sides. Let’s see what our Prime Minister Narendra Modi achieves in his proposed China visit next month?

-        Anil Narendra

 

अगर सलमान दोषी पाए गए तो हो सकती है 10 साल की सजा

13 साल पुराने हिट एंड रन केस में गैर इरादतन हत्या के मामले में फंसे आरोपी फिल्म एक्टर सलमान खान के भविष्य का फैसला छह मई को होगा। मुंबई में सेशंस जज डीडब्ल्यू देशपांडे ने फैसले की तारीख की घोषणा की इस दौरान सलमान कोर्ट में नहीं थे, उन्हें फैसले के दिन कोर्ट में मौजूद रहने को कहा गया है। आयोजन और बचाव पक्ष ने गत सोमवार को इस मामले में अपनी दलीलें पूरी कर लीं। दोष साबित होने पर सलमान को 10 साल तक की जेल हो सकती है। उपनगर बांद्रा में बेकरी की दुकान में कार चढ़ाने के 13 साल पुराने मामले में सलमान आरोपी हैं। 42 वर्षीय सलमान पर आरोप है कि उन्होंने 28 सितम्बर 2002 को उपनगर बांद्रा में सड़क के किनारे बनी एक बेकरी में अपनी टोयटा लैंड कूजर कार चढ़ा दी थी। घटना में वहां बाहर सो रहा एक व्यक्ति मारा गया था। चार अन्य घायल हुए थे। अभियोजन पक्ष का आरोप है कि सलमान ने शराब पी रखी थी। बिना लाइसेंस गाड़ी चला रहे थे। हालांकि सलमान का दावा है कि हादसे के वक्त सलमान नहीं बल्कि उनके ड्राइवर अशोक सिंह गाड़ी चला रहे थे। बचाव पक्ष के गवाह के तौर पर पेश सिंह ने भी यह बात कबूल की। हालांकि अभियोजन का आरोप है कि सलमान शराब पीकर गाड़ी चला रहे थे, वहीं सलमान की दलील है कि वह पानी पी रहे थे, शराब नहीं। अभियोजन की दलील है कि कार में तीन  लोगöसलमान, उनके पुलिस अंगरक्षक रवीन्द्र पाटिल और गायक दोस्त कमाल खान सवार थे। अभिनेता ने कहा कि चौथा व्यक्ति अशोक सिंह भी गाड़ी में था। एक अदालत ने वर्ष 2013 में गैर इरादतन हत्या के मामले में खान के खिलाफ नए सिरे से हुई सुनवाई में आरोप तय किए थे। अभियोजन ने अपना मामला साबित करने के लिए 27 गवाहों से पूछताछ की। अभियोजन के अनुसार खान के लापरवाही से वाहन चलाने से नूरूल्ला महबूब शरीफ की मौत हो गई जबकि कलीम मोहम्मद पठान, मुन्ना मलाई खान, अब्दुल्ला रउफ शेख और मुस्लिम शेख घायल हो गए थे। हालांकि खान ने दावा किया था कि उनका चालक अशोक सिंह गाड़ी चला रहा था। अभियोजन का यह भी आरोप है कि खान लाइसेंस के बगैर ही गाड़ी चला रहे थे। अभियोजन ने आरटीओ दस्तावेज पेश करके यह साबित किया कि अभिनेता ने हादसे से दो साल बाद 2004 में लाइसेंस हासिल किया। हालांकि सलमान का कहना था कि उनके द्वारा हासिल यह पहला लाइसेंस नहीं था। अब सलमान का भविष्य जज महोदय के हाथ में है। चूंकि मामला कोर्ट में है इसलिए फिलहाल किसी प्रकार की टिप्पणी नहीं की जा सकती।
-अनिल नरेन्द्र


गजेंद्र सिंह के फंदे में फंसती आम आदमी पार्टी

राजस्थान के किसान गजेंद्र सिंह की आत्महत्या का मुद्दा बृहस्पतिवार को सड़क से लेकर संसद तक गरम रहा। ऐसा लगता है कि यह मामला आम आदमी पार्टी के गले की फांस बन गया है। केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस ने किसान गजेंद्र सिंह आत्महत्या केस में जो एफआईआर दर्ज की है उसमें आम आदमी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर आत्महत्या के लिए गजेंद्र सिंह को उकसाने का आरोप लगाया है। संसद मार्ग थाने में दर्ज एफआईआर में मौके पर मौजूद रहे इंस्पेक्टर एसएस यादव के हवाले से लिखा गया है कि आप के नेता भाषण दे रहे थे और लोग ताली बजा रहे थे। एक आदमी पेड़ पर हाथ में झाड़ू लिए चढ़ा हुआ था। मैंने ताली बजा रहे कार्यकर्ताओं से उसे न उकसाने को कहा, न तो स्टेज पर बैठे आप के नेताओं और न ही कार्यकर्ताओं ने सहयोग किया। पुलिस उन लोगों को उस आदमी को सुरक्षित उतारने में सहयोग देने, जगह खाली करने और इमरजेंसी वाहन को वहां तक आने देने को कहती रही। वह लोग सहयोग न करके कहते रहे कि पुलिस आम आदमी पार्टी के खिलाफ है। पुलिस ने आत्महत्या के लिए उकसाने (धारा 306), सरकारी काम में बाधा डालने (धारा 186) और एक इरादे से काम करने (धारा 34) के मामले दर्ज किए हैं। किसान गजेंद्र सिंह के परिजनों ने मौके से मिले सुसाइड नोट पर सवाल उठाए हैं। गजेंद्र के चाचा गोपाल सिंह और उनकी बहन ने गुरुवार को कहा कि इसमें गजेंद्र की लिखावट नहीं लग रही है। गोपाल ने भी आम आदमी पार्टी के नेताओं पर गजेंद्र को आत्महत्या से नहीं रोकने का आरोप लगाया है। लोकसभा में चर्चा के दौरान गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने दिल्ली पुलिस का रुख दोहराया और रैली में आए लोगों पर ताली बजाकर गजेंद्र को खुदकुशी के लिए उकसाने का आरोप लगाया। राजनाथ सिंह ने इन आरोपों का खंडन किया कि गजेंद्र को बचाने के लिए पुलिस ने कुछ नहीं किया। गजेंद्र के भाई विजेंद्र ने कहा कि गजेंद्र मनीष सिसोदिया से मिलने जा रहे थे। गजेंद्र की मनीष सिसोदिया से फोन पर बात हुई थी। यह नहीं बताया कि सिसौदिया ने फोन करके बुलाया था या नहीं? उधर आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता संजय सिंह ने प्रेस कांफ्रेंस कर कहा कि गृहमंत्री झूठ बोल रहे हैं और गुमराह करने वाला बयान दे रहे हैं। यह पुलिस का इस्तेमाल करके आप को निशाना बनाने की केंद्र की साजिश है। कुमार विश्वास ने भी ऐसी ही बातें कहीं। गजेंद्र के परिजनों ने इसके लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को भी जिम्मेदार ठहराया है। उनका कहना है कि एक किसान फांसी लगा रहा था और केजरीवाल भाषण देने में व्यस्त थे। अगर उनका अपना बेटा उनके सामने फांसी लगाता क्या तब भी वह भाषण देते रहते? हमें लगता है कि गजेंद्र आत्महत्या करने के इरादे से नहीं आया था। वह दिल्ली में शादी में साफा बांधने की बात भी हो रही है। गजेंद्र किसान के साथ-साथ एक व्यवसायी भी था। उसका साफा बांधने का धंधा था और उनकी अपनी एक वेबसाइट भी थी। साफा बांधने के हुनर के लिए उन्हें राष्ट्रीय सम्मान भी मिला था। गजेंद्र 32 तरह से साफे बांधने में माहिर थे। 125 वर्पशाप लगा चुके थे। एक मिनट में सात पगड़ी बांधने का रिकार्ड भी उनके नाम था। गजेंद्र के बचपन के दोस्त शक्ति सिंह ने बताया कि वह 25 साल से पगड़ी बांधते आ रहे थे। जैसलमेर के मरू मेले में गजेंद्र ने रौबदार मूंछें और पहनावे के लिए मरूश्री पुरस्कार भी जीता था। वह जयपुर के पूर्व महाराजा भवानी सिंह के सुरक्षा अधिकारी भी रहे हैं। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के लिए भी साफा बांध चुके थे। फिल्म यह फासले, वीर और गुलाल के कलाकारों की पगड़ियां भी बांधी थीं। उनके पिता के पास 17 बीघा जमीन है। बेशक ओले-बारिश की वजह से 50 फीसदी फसल बर्बाद हो गई पर वह आत्महत्या करने वालों में से नहीं थे। अखबारों में जो फोटो छपी हैं और टीवी में जो मौके वारदात के चित्र दिखाए गए हैं उनसे साफ है कि वह आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता थे, जो झाड़ू (आप का चुनाव चिन्ह) लेकर पेड़ पर चढ़े थे। कहानी कुछ और थी। नीचे उतरते समय हो सकता है कि उनका हाथ फिसल गया और वह टहनी को पकड़ नहीं पाए, परिणामस्वरूप वह स्वयं के बनाए फंदे से लटक गए और बाद में नीचे आ गिरे। चूंकि मामले की बारीकी से जांच हो रही है। उम्मीद की जाती है कि कहानी क्या थी इसका पता चल जाए।

Friday 24 April 2015

101st BIRTH ANNIVARSARY OF LATE SHRI K NARENDRA

आम आदमी पार्टी में छिड़ी आर-पार की जंग

आखिरकार दिल्ली की सत्ताधारी आम आदमी पार्टी (आप) ने बगावत करने वाले अपने नेताओंöप्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, आनंद कुमार और अजीत झा को सोमवार को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। वैसे इनके निष्कासन की खबर तो पिछले कई दिनों से आ रही थी पर अगर इस फैसले के ऐलान में अपेक्षाकृत देरी हुई है तो सिर्प इसलिए कि आप नेतृत्व यह दिखाना चाहता था कि इन नेताओं का निष्कासन प्रतिशोध की भावना से की गई मनमानी कार्रवाई नहीं बल्कि पार्टी की अनुशासनात्मक प्रक्रियाओं का पालन करते हुए लिया गया फैसला है। आंतरिक घमासान आखिरकार अपने अंजाम तक पहुंच ही गया। उधर आप के बागी नेता योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने सोमवार को अरविंद केजरीवाल तथा पार्टी के दो बड़े पदाधिकारियों पर हमला बोलते हुए अनुशासन समिति के कारण बताओ नोटिस का जवाब देते हुए आरोप लगाया कि पार्टी अपने ही संविधान का उल्लंघन कर रही है। योगेंद्र यादव ने तो केजरीवाल के दौर की तुलना रूसी तानाशाह स्टालिन से कर डाली। यादव ने कहा कि अपने मन के फैसले लेना और बदला लेने जैसी कार्रवाई स्टालिन के शासन से मेल खाती है। हालांकि निष्कासित चारों नेताओं के खिलाफ कार्रवाई का आधार विगत दिनों स्वराज बैठक के आयोजन और उसमें कार्यकर्ताओं से नई पार्टी बनाने पर राय मांगी जाने को बताया जा रहा है लेकिन आम आदमी पार्टी से जिस तरह पिछले एक-डेढ़ महीने में थोक में नेताओं के निष्कासन हुए हैं उन्हें देखते हुए कहा जा सकता है कि योगेंद्र-प्रशांत आदि के खिलाफ कार्रवाई के लिए बताया गया आधार एक बहाना मात्र है। कटु सत्य तो यह है कि केजरीवाल हिटलरी अंदाज से काम कर रहे हैं जो अपने खिलाफ किसी प्रकार की खुली आलोचना बर्दाश्त करने को तैयार नहीं हैं। जो उनके खिलाफ आवाज उठाएगा उसका वही हश्र होगा जो प्रशांत-यादव का हुआ है। बाकी  जो भी आरोप लगाए जाते हैं वह बागी नेता की छवि बिगाड़ने और उसे अलग-थलग करने के लिए होते हैं। अन्यथा क्या वजह रही कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक जीत के बाद पार्टी दिग्गजों को बिना उनके स्पष्टीकरण के इंतजार किए निकाल बाहर कर दिया गया। बहरहाल निष्कासन के बाद दोनों पक्षों में जिस तरह से एक-दूसरे के खिलाफ आरोप-प्रत्यारोप शुरू हुए हैं वह दोनों की मुश्किलें बढ़ाने वाले हैं। प्रशांत भूषण ने आशीष खेतान पर पेड न्यूज छापने और पार्टी पर उन्हें बढ़ावा देने का आरोप लगाया तो खेतान ने पलट कर भूषण से ही पूछ लिया कि उनके परिवार ने 500-700 करोड़ की सम्पत्ति आखिर कैसे इकट्ठी की? इतना साफ हो चुका है कि अरविंद केजरीवाल अब पार्टी पर अपना पूरा कब्जा चाहते हैं। सरकार पर तो उनका कब्जा हो ही चुका है अब वह पार्टी पर भी अपना पूरा अधिकार चाहते हैं और ऐसे किसी भी व्यक्ति को बर्दाश्त नहीं करेंगे जो पार्टी में उन्हें चुनौती देना चाहता है। आप पार्टी की अंदरुनी खींचतान से जनता को कुछ लेना-देना नहीं है। वह तो यह चाहते हैं कि आप पार्टी की सरकार अपने वादों पर खरी उतरे जिसमें अब संदेह होने लगा है। खुद केजरीवाल कह रहे हैं कि अब आधे वादे ही पूरे होंगे।

-अनिल नरेन्द्र

गजेंद्र की आत्महत्या ने दिखा दिया कि किसान कितना हताश है

धरने और प्रदर्शनों के लिए देशभर में विख्यात जंतर-मंतर पर आम आदमी पार्टी (आप) की किसान रैली बुधवार को काला अध्याय लिख गई। ओलावृष्टि और बरसात से बर्बाद हुआ एक किसान रैली में मंच से महज कुछ कदम के फासले पर नीम के पेड़ पर फांसी पर लटक गया और मंच पर बैठे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल समेत अन्य पार्टी के तमाम नेता उसे देखते रहे। दुखद यह है कि किसान की आत्महत्या के बाद भी रैली जारी रही, नेता भाषण देते रहे। केजरीवाल भी भाषण के दौरान किसानों से वादे करते रहे लेकिन उसे बचाने के लिए खुद अपना कदम आगे नहीं बढ़ाया। राजस्थान के दौसा का गजेंद्र सिंह कल्याणवत (41 वर्ष) किसान रैली में शामिल होने आया था। हजारों निगाहों के आगे एक बेबस आम आदमी ने पेड़ पर फंदे से लटक जिंदगी को अलविदा कह दिया और उसकी निप्राण आंखें सामने चल रही राजनीतिक रैली को निहारती रहीं। जहां आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल इस हादसे की जिम्मेदारी भी दिल्ली पुलिस और मोदी सरकार पर मढ़ते गरज रहे थे। राजस्थान के दौसा जिले का आभागा गजेंद्र सिंह भी खेतों में अपनी डूबी किस्मत का गम समेटे दिल्ली आया था लेकिन वापस लौटा उनका निर्जीव शरीर जिससे लिपट कर उसके तीन मासूम बच्चों की आंखों का बांध टूट गया होगा। सार्वजनिक स्थल पर ऐसी घटना चौंकाने वाली है। देशभर के किसानों के संकट के नाम पर बुलाई गई इस रैली में शायद एक अभागे किसान के लिए किसी के पास वक्त नहीं था। गजेंद्र बाकायदा अपने अंत की घोषणा करता हुआ भीड़ के बीच नीम के पेड़ पर चढ़ा और सिर की पगड़ी का फंदा डालकर लटक भी गया लेकिन मौजूद आम आदमी पार्टी की रैली के मिजाज पर इसका कोई असर नहीं दिखा। एक बड़ा सवाल यह है कि गजेंद्र की आत्महत्या के बाद भी आम आदमी पार्टी के नेताओं का भाषण जारी क्यों रहा? यह तो गैर जिम्मेदारी और संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। इस अभागे शख्स की मौत के बाद आम आदमी पार्टी के नेताओं ने जिस तरह के बेतुके बयान दिए उससे तो यही लगा कि वह भी दूसरी सियासी पार्टियों की तरह सियासी हथकंडे अपनाने लगी है। तमाम लोगों के सामने आत्महत्या की घटना जितनी विचलित करने वाली है उतनी ही शर्मसार करने वाली भी। क्योंकि उसके बहाने राजनीतिक दल एक-दूसरे को खलनायक साबित करने के गंदे खेल में जुट गए हैं। किसानों की खराब हालत के लिए किसी न किसी स्तर पर सभी दल जिम्मेदार हैं। आज जरूरत किसानों को यह  बताने की नहीं कि उनकी हालत खराब है बल्कि उन्हें यह भरोसा दिलाने की है कि वह धैर्य रखें, उनकी हरसंभव सहायता की जाएगी। निसंदेह यह तब होगा जब यह सियासी दल तू-तूöमैं-मैं करने की बजाय मिल बैठकर उन उपायों के बारे में सोचें जिनसे किसानों को फौरी और साथ ही दीर्घकालिक सहायता मिल सके। गजेंद्र सिंह ने अपनी कुर्बानी देकर सारी दुनिया को दिखा दिया कि आज भारत का किसान कितना हताश है। जरूरत इस बात की है कि केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को किसान समस्या पर आपात चर्चा कर तत्काल रास्ता निकालने की है।

Thursday 23 April 2015

बात-बात पर आपा खोते दिल्ली के वाहन चालक

भागदौड़ भरी जिंदगी में राजधानी के लोग छोटी-छोटी बातों पर आपा खो रहे हैं। कोई कार-स्कूटी से टकरा जाने पर सरेआम बच्चों के सामने पिता की हत्या कर दी जाती है तो कोई पार्किंग विवाद पर जान लेने पर आमादा हो जाते हैं। कुछ लोग बाइक में खरोंच लगने पर दूसरे वाहन वाले को मार-मार कर अधमरा कर देते हैं वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो कार के छू जाने पर आम इंसान को अपनी गाड़ी से कुचलकर मारने का पयास करते हैं। जी हां, ये है राजधानी की स्थिति। भारत में सड़कों पर दुर्घटना की वजह से हर चार मिनट में एक व्यक्ति की जान चली जाती है। रोड रेज के साथ-साथ सड़क दुर्घटनाओं में भी वृद्धि होती जा रही है। सड़क दुर्घटनाओं में से काफी लोगों को बचाया जा सकता है, बशर्तें सरकार गुड समेरिटन कानून को मूर्तरूप दे दे। पहले बात रोड रेज की। देश की राजधानी दिल्ली में रोड रेज की घटनाएं आम हो गई हैं। आलम यह है कि मामूली बात को लेकर हो रही रोड रेज की घटनाओं में पुलिसकमी से लेकर आमजन भी इसके शिकार हो रहे हैं। ऐसी भी बात नहीं है कि इस तरह की घटनाओं में गर्म मिजाज आम लोग ही रोड रेज के शिकार होते हैं। पिछले दिनों दिल्ली पुलिस के एक एसीपी रैंक के अधिकारी अमित कुमार के चालक ने एक बच्चे को लोधी रोड-निजामुद्दीन इलाके में गलत ढंग से वाहन चलाने से उनके समक्ष रोका तो बच्चे सहित उनके माता-पिता ने मारपीट की घटना को अंजाम दे दिया। इन लोगों ने जरा सा भी नहीं सोचा कि एक पुलिस अधिकारी के समक्ष लॉ एंड आर्डर को अपने हाथ में ले रहे हैं। वास्तव में अब हालात बिगड़ चुके हैं। लोग अपने व्यवहार पर नियंत्रण नहीं रखने की वजह से खुद को तो कठिनाई में डालते ही हैं, निर्देष लोगों की जान से भी खेल रहे हैं। पूवी दिल्ली के मयूर विहार इलाके में कुछ दिन पहले एक महिला पत्रकार और उसके सहयोगी की रोड रेज में जमकर पिटाई कर दी। नाइट शिफ्ट खत्म करने के बाद चंचल अपने नोएडा स्थित ऑफिस सहयोगी दिलीप पांडे के साथ अपनी कार से लक्ष्मीनगर स्थित घर पर जा रही थीं। जैसे ही नोएडा से निकलकर उनकी कार दिल्ली की सीमा में पहुंची, पीछे से रेत से लदे डंपर ने तेजी से उनकी कार को ओवरटेक किया इससे उनकी कार दुर्घटनाग्रस्त होते-होते बाल-बाल बच गई। इसके बाद जैसे ही उनकी कार थोड़ी आगे बढ़ी तो रांग साइड से एक सफेद रंग की स्कॉर्पियो आई और उनकी कार के आगे खड़ी हो गई। स्कॉर्पियो से उतर कर युवक आया और उनसे झगड़ा करने लगा तभी रेत लदे ट्रक का ड्राइवर भी वहां पहुंच गया और दोनों ने मिलकर चंचल और दिलीप के साथ मारपीट करनी शुरू कर दी। पिटाई की वजह से दिलीप को काफी चोटें आईं। मानव व्यवहार विज्ञान से जुड़े विशेषज्ञ बढ़ते रोड रेज के कुछ कारण बताते हैं। बढ़ती रोड रेज के पीछे एक कारण है ड्राइविंग व्हील के पीछे बैठे ड्राइवरों का बढ़ता टेंशन। दुनिया भर में हुए सर्वे से पता चला है कि भारतीय ड्राइवर ऑस्ट्रेलिया, चीन, थाइलैंड और फिलीपिंस जैसे देशों के मुकाबले ड्राइव में ज्यादा वक्त बिताते हैं। इतना वक्त सड़क पर गुजारने से न केवल टेंशन बढ़ने से रोड रेज का माहौल तैयार करता है बल्कि सड़कों की बुरी हालत इसे और बढ़ा देती है। कहा जाता है कि भारतीय ड्राइव करते वक्त मोबाइल पर बात करते, सेल्फी लेते या नेट सर्फिंग करने में अव्वल हैं। इस तरह के रिजल्ट एशिया-पेसिफिक रीजन में कार बनाने वाली कंपनी फोर्ड के एक सर्वे में सामने आए हैं। लगातार ड्राइविंग के अलावा स्ट्रैस को बढ़ाने में ट्रैफिक जाम, मौसम, सड़कों के हालात नेविगेशन शोर और ड्राइवर की थकान भी जिम्मेदार है। यह सारा माहौल गुस्से और जुनून की एक ऐसी रेसिपी तैयार करता है जो इंसान को कुछ भी करने पर आमादा कर देता है। रोड रेज से बचने के लिए कुछ सुझाव अपने लेन में चलें और धैर्य बनाए रखें। लेवल कांसिंग का ध्यान रखो, अपनी बारी का इंतजार करें। अपना एक मिनट बचाने के लिए बाकियों के घंटे बर्बाद न करें। रोड सेफ्टी और रोड एजुकेशन को व रोड सैंस को अपनाया जाए। चौबीस घंटे में जब समय मिले डी स्ट्रेस होने के लिए अच्छे से एक घंटे सैर-सपाटा, व्यायाम, योग, पणायाम व ध्यान में से रूचि के अनुरूप कुछ न कुछ जरूर करें। व्यावहारिक जीवन में जरूरी सामान्य नियमों को समझें और उनका सम्मान करें। हर समय सजग रहें और हर घटना को सकारात्मक सोच के साथ लें। चाहे गलती सामने वाले की हो पर धैर्य का परिचय दें और विवादों में फंसने से बचें। विपरीत परिस्थितियों में तंगदिल होने का उदाहरण पेश न करें। दूसरों से जो आप अपेक्षा करते हैं उसे व्यवहार में पहले खुद अमल में लाएं। आपको रिसपांस अच्छा व वाजिब मिलेगा। जब तक वाहन चालक चाहे वह कार हो या बाइक हो, चाहे बस या ट्रक हो अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रखते रोड रेज पर काबू पाना मुश्किल है।

-अनिल नरेंद्र

पाकिस्तान के तो दोनों हाथों में लड्डू हैं

मैं बात कर रहा हूं अपने पड़ोसी पाकिस्तान की। चीन ने तो पाकिस्तान को अमेरिका से भी बड़ा तोहफा दिया है। यह तोहफा चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने सोमवार को दो दिवसीय दौरे पर पहुंचने पर दिया। इस दौरान दोनें देशों के बीच 46 अरब डालर के चीन-पाक आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) और ऊर्जा परियोजनाओं समेत 51 द्विपक्षीय समझौतों पर दस्तखत किए गए। भारत की आपत्तियों को दरकिनार करते हुए गुलाम कश्मीर से गुजरने वाली अरबों डालर की पाइप लाइन की चीन-पाकिस्तान ने शुरुआत कर दी है। चीन के शिनजियांग पांत को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से जोड़ने वाली 46 अरब डालर (करीब 2,89,500 करोड़ रुपए) की इस परियोजना के तहत गुलाम कश्मीर में रेल नेटवर्प व सड़कों का जाल बिछाया जाएगा। सोमवार को पाकिस्तान पहुंचे चीनी राष्ट्रपति ने शुरुआती कुछ घंटों में ही इस समझौते की घोषणा कर दी। इस परियोजना के तहत सौर पवन चक्कियां, बांध आदि का निर्माण भी चीन की मदद से किया जाएगा। परियोजनाओं के पूरे होने पर चीन को अरब खाड़ी व होर्मूज की खाड़ी से सीधा पवेश मिलेगा। यह मार्ग पश्चिम एशिया से तेल भेजने के रास्तों के करीब है। भारत ज्यादातर तेल पश्चिम एशिया से आयात करता है। चीन ग्वादर का इस्तेमाल नौसैनिक केन्द्र के तौर पर भी कर सकेगा। चीन के काशगर से  पाक के अरब सागर में स्थित ग्वादर बंदरगाह तक जोड़े जाने वाले 46 अरब डालर के रेल नेटवर्प को चीन-पाकिस्तान कारिडोर कहा जाता है जो पीओके से होकर गुजरेगा। योजना के तहत करीब 3 हजार किलोमीटर लंबा सड़क (स्लिक रोड) रेल और पाइपलाइन नेटवर्प बिछाया जाएगा। चीन का यह करार पाकिस्तान में बीते सालों में किए गए कुल अमेरिकी निवेश (करीब 31 अरब डालर) से कहीं ज्यादा है। उल्लेखनीय है कि चीनी राष्ट्रपति का यह पिछले नौ सालों में पहले किसी राष्ट्रपति का दौरा है। भारत की आशंका है कि भविष्य में चीन ग्वादर बदंरगाह को नौसैनिक ठिकानों के रूप में इस्तेमाल कर सकता है। साथ ही चीन के लिए होर्मूज और अरब की खाड़ी के दरवाजे खुल जाएंगे जहां से वह पश्चिम एशिया के तेल भेजने के रास्तों के बेहद करीब पहुंच सकता है। ये वे रास्तें हैं जहां से भारत अपना अधिकांश तेल आयात करता है। चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने अपने पहले दौरे में जिस तरह से 51 समझौते किए हैं, उनसे जाहिर होता है कि पाकिस्तान के दोनों हाथों में लड्डू हैं। उधर अमेरिका खुलकर मदद कर रहा है, इधर चीन। इस लिहाज से पाकिस्तान की विदेश नीति सफल मानी जाएगी। आधारभूत संरचना को छोड़ भी दें तो अकेले यही गलियारा भारत के लिए चिंता करने के लिए काफी है। चीन इसकी एवज में पाक के परमाणु ईंधन संयंत्र बिठाने और उसके लिए आपूर्ति देशों की बगैर सहमति के यूरेनियम देने पर अड़ा हुआ है। इसके साथ सैन्य सामान की आपूर्ति की भी बात हो रही है। इसका इस्तेमाल कहने के लिए आतंकवाद के विरुद्ध होना है किन्तु होगा यह भारत के मोर्चे पर। चीन भारत को चारों ओर से घेरने में लगा है। देखें अगले महीने हमारे पधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपनी पस्तावित चीन यात्रा में क्या हासिल करेंगे?

Wednesday 22 April 2015

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नए महासचिव सीताराम येचुरी

रविवार को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने सर्वसम्मति से श्री सीताराम येचुरी को पार्टी का महासचिव चुन लिया। गठबंधन की व्यावहारिक राजनीति में अच्छी पकड़ रखने वाले सीताराम येचुरी को पार्टी की 21वीं कांग्रेस के अंतिम दिन रविवार को 91 सदस्यीय केंद्रीय समिति और 16 सदस्यीय पोलित ब्यूरो के चुनाव के साथ-साथ पार्टी महासचिव चुना गया। 62 वर्षीय सीताराम येचुरी ने 2005 से महासचिव रहे प्रकाश करात का स्थान लिया है। येचुरी के निर्वाचन के बाद प्रकाश करात ने मीडिया को इस बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि पार्टी ने निर्विरोध महासचिव चुनने की परम्परा को बरकरार रखा। येचुरी ने ऐसे वक्त पार्टी की कमान संभाली है जब पार्टी के सितारे गर्दिश में हैं। एक तरह से पार्टी अपने अस्तित्व और राजनीतिक योग्यता बनाने के लिए संघर्ष कर रही है। प्रकाश करात के नेतृत्व में पार्टी का काफी पतन हुआ। पश्चिम बंगाल जैसे राज्य में जहां पार्टी और स्वर्गीय ज्योति बसु ने 33 साल तक सरकार चलाई ममता बनर्जी के हाथों मुंह की खानी पड़ी मार्क्सवादी पार्टी को। सीताराम येचुरी एक सुलझे व्यक्ति हैं, जिनका भारतीय समाज और राजनीति सम्मान करती है और उनकी समझ के कायल उनके विरोधी भी हैं। वह प्रकाश करात की तरह रूढ़िवादी सोच के नहीं हैं। संघर्ष को लेकर उनका लम्बा इतिहास है। उनके रवैये में लचीलापन होना भी उनकी खूबी है। दिल्ली से सीताराम येचुरी का करीबी रिश्ता रहा है। वह जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष भी रहे और आज भी उनका जेएनयू में बहुत सम्मान है। बेशक प्रकाश करात के मुकाबले येचुरी ज्यादा व्यावहारिक माने जाते हैं पर उन्होंने पार्टी की कमान ऐसे समय में संभाली है जब माकपा सहित सभी वामदल हाशिये पर नजर आते हैं। इसलिए उन्हें दोतरफा चुनौती का सामना करना पड़ेगा। एक तो चुनावी राजनीति में पार्टी को जीत दिलाना और दूसरा युवाओं को भी पार्टी से जोड़ना। पिछले एक दशक में प्रकाश करात ने पार्टी की लुटिया डुबो दी। 2005 में माकपा के लोकसभा में 43 सदस्य थे जो घटकर महज नौ रह गए हैं। वामदलों की तीन राज्यों में सरकार थी, लेकिन अब सिर्प त्रिपुरा में। वह भी त्रिपुरा के मुख्यमंत्री की बदौलत। सीताराम येचुरी के उद्योगपतियों सहित समाज के हर तबके के साथ बेहतर संबंध हैं। पार्टी नेताओं के साथ अच्छे ताल्लुकात, खासतौर पर पश्चिम बंगाल के नेताओं के साथ। 12 अगस्त 1952 में मद्रास में जन्मे येचुरी ने हैदराबाद से स्कूली पढ़ाई की। दिल्ली के प्रेसिडेंट एस्टेट स्कूल में स्कूली शिक्षा पूरी की, सीबीएसई परीक्षा में टॉपर रहे। दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज में अर्थशास्त्र से स्नातक किया, विषय में रहे अव्वल। जेएनयू से स्नातकोत्तर किया, लेकिन आपातकाल की वजह से पीएचडी नहीं कर पाए। बेहद मिलनसार स्वभाव के येचुरी के प्रशंसक राजधानी में बड़ी संख्या में हैं। उनको माकपा का महासचिव चुने जाने पर डीयू और जेएनयू के शिक्षक ही नहीं, छात्र भी जोरदार बधाई दे रहे हैं। 2016 में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव हैं। सीताराम येचुरी की पहली चुनौती होगी यहां पार्टी को दोबारा सत्ता में लाना। चुनौतीपूर्ण और कठिन समय में सीताराम येचुरी ने कमान संभाली है। उनके महासचिव चुने जाने पर हम अपनी बधाई देना चाहते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

मोदी जी विदेशों में भारत की छवि न गिराएं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा विदेश यात्रा के दौरान विश्व बिरादरी को यह आश्वासन देना कि वह पिछली सरकारों द्वारा छोड़ी गई गंदगी की सफाई करने में जुटे हैं और इसे साफ करके ही रहेंगे, कांग्रेस को बहुत नागवार गुजरा है। अपनी विदेश यात्रा के दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर किए, अपने लोकप्रिय भाषणों से देश का गौरव बढ़ाया और उत्सवधर्मी माहौल में अनिवासी भारतीयों को संबोधित कर उनकी छाती चौड़ी की। अफसोस कि इतने अच्छे कामों के अलावा इस यात्रा के दौरान उन्होंने एक छोटा-सा ऐसा काम भी कर दिया है जिससे देश का कोई फायदा तो नहीं ही होने वाला, उल्टे कुछ नुकसान और विवाद पैदा जरूर हो गया है। मसलन एक जगह उन्होंने यह कहा कि पहले लोग भारत को स्कैम इंडिया के रूप में जानते थे, लेकिन आगे से वह इसे स्किल्ड इंडिया के रूप में जानेंगे। अपनी आलोचना से नाराज कांग्रेस ने पलटवार किया है। मोदी पर भड़की कांग्रेस ने ऐलान किया है कि अब जिस देश के दौरे पर मोदी जाएंगे, उनके पीछे पार्टी अपने प्रवक्ता या वरिष्ठ नेता भी भेजेगी जिससे उनका कड़ा जवाब उसी धरती पर दिया जा सके। यदि इस तरह की परम्परा शुरू होती है तो इससे देश की प्रतिष्ठा धूमिल होगी। मोदी ने फ्रांस, जर्मनी और कनाडा के अपने हालिया दौरे में वहां रह रहे भारतीय प्रवासियों की सभा में अपने भाषणों के दौरान कुछ ऐसे कटाक्ष किए, जो पूर्ववर्ती संप्रग सरकार के खिलाफ थे। पूर्व कैबिनेट मंत्री आनंद शर्मा का कहना है कि प्रधानमंत्री ने विदेश दौरों के दौरान अप्रवासी भारतीयों के समक्ष कांग्रेस अथवा पूर्व संप्रग सरकार पर कीचड़ उछालने का काम करके पद की गरिमा, मर्यादा व देश का सम्मान घटाया है। ऐसा करने वाले वह पहले प्रधानमंत्री हैं। अमूमन चुनाव के समय इस तरह के आरोप-प्रत्यारोप लगाए जाते हैं पर विदेशों में किसी सार्वजनिक मंच पर इस तरह के बयान ठीक नहीं होते। आनंद शर्मा ने यह भी आरोप लगाया कि मोदी अपनी यात्राओं में सत्य नहीं बोलते। उन्होंने मोदी के उस दावे को भी नकार दिया जिसमें उन्होंने कहा कि पिछले 42 साल से भारत का कोई प्रधानमंत्री कनाडा नहीं आया। शर्मा ने कहा कि इस बात के सबूत हैं कि पांच साल पहले ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह वहां गए थे। वर्ष 2010 में सिंह कनाडा के पीएम स्टीफन हार्पर के निमंत्रण पर गए थे। उस दौरान दोनों देशों के पीएम की ओर से संयुक्त बयान भी जारी किया गया था। हमारा मानना भी यह है कि विदेशों में भारत की छवि को बढ़ाने की जरूरत है, घटाने की नहीं। हमें अपनी कमजोरियां या गलतियां विदेशों में प्रचारित नहीं करनी चाहिए। इतने सारे विदेशी राजनेता भारत का दौरा करते हैं, क्या एक बार भी हमने उन्हें देश की पिछली सरकारों के बारे में कुछ कहते हुए सुना है? अमेरिका में जॉर्ज डब्ल्यू बुश जितना अलोकप्रिय नेता कोई और नहीं हुआ। उनका तो पहला चुनाव ही फर्जी बताया गया था। इसके बावजूद बराक ओबामा ने जॉर्ज बुश के बारे में कोई आपत्तिजनक बयान नहीं दिया। विदेशी जमीन पर मोदी जी यह क्यों भूल जाते हैं कि वह वहां भाजपा नेता की हैसियत से नहीं देश के प्रधानमंत्री की हैसियत से गए हैं और उन्हें पद की गरिमा का ध्यान रखना चाहिए।

Tuesday 21 April 2015

सेंट स्टीफंस कॉलेज में छात्र बनाम प्रिंसिपल लड़ाई

पिछले कुछ दिनों से दिल्ली का प्रतिष्ठित कॉलेज सेंट स्टीफंस चर्चा का विषय बना हुआ है। मेरे और हजारों सेंट स्टीफंस कॉलेज में पढ़े लोगों के लिए यह अत्यंत दुख का विषय है अगर हमारा कॉलेज किसी शानदार उपलब्धि के लिए चर्चा में रहता तो भी बात थी पर यहां तो प्रिंसिपल बनाम छात्र लड़ाई के कारण कॉलेज चर्चा में है। दिल्ली हाई कोर्ट ने सेंट स्टीफंस कॉलेज के प्राचार्य वालसन थंपु को झटका देते हुए ऑनलाइन पत्रिका सेंट स्टीफंस वीकली के सहसंस्थापक, संपादक और दर्शन शास्त्र बीए तृतीय वर्ष के छात्र देबांश मेहता के निलंबन आदेश पर रोक लगा दी। इतना ही नहीं, अदालत ने मेहता को राय साहब बनारसी दास मैमोरियल पुरस्कार से वंचित करने के मामले में भी उनकी उपेक्षा, यह पुरस्कार किसी अन्य को देने से भी मना कर दिया। गौरतलब है कि 15 अप्रैल को सेंट स्टीफंस के प्राचार्य द्वारा नियुक्त एक सदस्यीय जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर 23 अप्रैल तक मेहता को निलंबित कर दिया गया था। कमेटी ने उसे अनुशासन के उल्लंघन का दोषी ठहराया है। न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने मेहता द्वारा अपने निलंबन को चुनौती देने वाली याचिका के आधार पर दिल्ली विश्वविद्यालय, प्राचार्य थंपु व प्रोफेसर संजय राव को नोटिस जारी कर 21 मई तक जवाब अदालत में दाखिल करने का निर्देश दिया। याचिका में कहा गया है कि हमारे कॉलेज के अधिकारी जिस तरीके से इस मामले से निपटे हैं वह दर्शाता है कि हमारी अभिव्यक्ति की आजादी को दबाया जा रहा है। सुनवाई के दौरान देवांश मेहता की तरफ से कोर्ट को बताया गया कि कालेज ने देवांश को सिर्प इस वजह से निलंबित कर दिया क्योंकि देवांश ने कालेज से जुड़ी हुई एक मैगजीन निकाली थी। उस मैगजीन के लिए कालेज के प्रिंसिपल वालसन थंपु का इंटरव्यू भी किया था। थंपु ने कहा था कि इंटरव्यू दिखाकर छापना। लिहाजा उनको छापने से पहले इंटरव्यू की कॉपी भी भेजी गई लेकिन कई घंटे बाद भी उनका उस पर कोई जवाब नहीं आया। जिसके बाद वह इंटरव्यू जस का तस छप गया। थंपु को यह बात नागवार गुजरी और उन्होंने देवांश के खिलाफ एक सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में देवांश को दोषी करार दिया। देवांश ने इसके खिलाफ अपनी बात मीडिया में रखी जिसके बाद कालेज ने देवांश के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई का हवाला देते हुए उसे कालेज से 23 अप्रैल तक निलंबित कर दिया। मामले की सुनवाई के दौरान यूनिवर्सिटी के वकील ने दलील देते हुए कहा कि इस मामले में देवांश दोषी हैं। उनको कोई राहत नहीं दी जानी चाहिए क्योंकि उन्होंने कालेज का अनुशासन तोड़ा है। अदालत ने इस दलील को खारिज कर दिया। देवांश के समर्थन में गत शुक्रवार को कई छात्र संगठनों ने सेंट स्टीफंस कालेज के बाहर प्रदर्शन किया। इस दौरान छात्रों ने कालेज के प्रिंसिपल और कालेज प्रशासन पर मनमानी करने का आरोप लगाते हुए जमकर नारेबाजी की। काफी संख्या में पहुंचे छात्र-छात्राओं ने काफी देर तक बैनर, पोस्टर लेकर प्रदर्शन किया। देवांश अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की लड़ाई जारी रखना चाहते हैं। वह मानते हैं कि कोर्ट से मिली राहत के  बाद अब मामला लगभग सुलझ गया है। उधर प्रिंसिपल थंपु ने कहा कि वह कोर्ट के आदेश का पालन करेंगे। हम एक्स सेंट स्टीफंसनिमों के लिए यह लड़ाई दुखद हैं।

-अनिल नरेन्द्र

अपनों के साथ-साथ अब स्मृति ईरानी विपक्ष के निशाने पर

मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी एक बार फिर सुर्खियों में हैं। अपनी कार्यशैली को लेकर भाजपा और सरकार के भीतर से विरोध झेल रहीं स्मृति ईरानी के खिलाफ अब विपक्ष भी खुलकर सामने आ गया है। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह न मिलने के बाद स्मृति ईरानी को दूसरा झटका अपनी पार्टी से ही लगा है। लगातार 10 महीने की कोशिश के बावजूद अब उनके पसंद के विशेष कार्याधिकारी (ओएसडी) को सरकार ने मंजूरी नहीं दी है। इसके साथ ही 10 महीने से अनौपचारिक तौर पर इस पद पर काम कर रहे संजय काचरू को मंत्रालय आने से भी मना कर दिया गया है। लगभग 10 महीने पहले भी ईरानी की ओर से यह अनुरोध भेजा गया था, लेकिन तब भी इससे इंकार कर दिया गया था। इस नियुक्ति को राजग सरकार की सबसे युवा कैबिनेट मंत्री बनीं स्मृति ईरानी की अहमियत के साथ जोड़कर इसलिए देखा जा रहा है क्योंकि पिछली बार काचरू की नियुक्ति की इजाजत न मिलने के बावजूद उन्होंने काचरू को अपने कार्यालय में बनाए रखा था। सरकार और भाजपा के अंदर ही इस पर सवाल उठ रहे थे। अब तक इन सब सवालों के बीच इतने महीनों तक काचरू मंत्रालय में अनौपचारिक रूप से बने रहे। मगर इस बार सरकार में उच्च स्तर पर यह कह दिया गया है कि काचरू को मंत्रालय से दूर रखा जाए। पसंदीदा संजय काचरू के मामले में पीएमओ के सख्त आदेश से विपक्षी सांसदों का हौसला बढ़ गया है। स्मृति ईरानी की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए चार राज्यसभा सांसदों जदयू के केसी त्यागी, कांग्रेस के राजीव शुक्ला, भाकपा के डी. राजा और एनसीपी के डीपी त्रिपाठी ने संयुक्त रूप से एक पत्र लिखा है। पत्र में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से स्मृति ईरानी के मंत्रालय में हस्तक्षेप की मांग करते हुए कहा गया है कि जनता के हितों की हमेशा रक्षा होनी चाहिए। नालंदा और तक्षशिला सरीखे देश के पौराणिक शिक्षण संस्थानों का हवाला देते हुए इन सांसदों ने कहा है कि देश का विकास और उसकी सम्पन्नता शिक्षा प्रणाली पर ही निर्भर करती है। इस मामले पर केसी त्यागी का कहना है कि दिल्ली विश्वविद्यालय के उपकुलपति का मामला हो या आईआईएम के निदेशक की नियुक्ति का, हर जगह गड़बड़झाला हो रहा है। आईआईटी निदेशकों की नियुक्ति में भी लोगों को नीचा देखना पड़ रहा है। सूत्रों के अनुसार स्मृति ईरानी की कार्यशैली के कारण मानव संसाधन विकास मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी भी दहशत में रहते हैं। इस माह के कार्यकाल में उनके विभाग से संयुक्त सचिव स्तर के सात अधिकारी, प्रचार-प्रसार महकमे के दो और उनके निजी स्टाफ से एक अधिकारी अपना तबादला करवा चुके हैं। उधर स्मृति ईरानी की शिक्षा का मामला भी अदालत में पहुंच गया है। दायर याचिका में उन पर चुनाव के दौरान दायर हलफनामे में अपनी शिक्षा के बारे में गलत जानकारी देने का आरोप लगाया गया है। पटियाला हाउस स्थित मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट आकाश जैन के समक्ष याचिका पर संक्षिप्त सुनवाई हुई। अदालत ने शिकायत को देखने के बाद कहा कि यह मामला हाई-प्रोफाइल है, मामले में केस फाइल का अध्ययन करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि वह फाइल अध्ययन के बाद ही मामले की विस्तृत सुनवाई करेंगे। इस मामले में अब 25 अप्रैल को सुनवाई होगी। यह याचिका अहमीर खान नामक व्यक्ति ने दायर की है। शिकायतकर्ता का आरोप है कि स्मृति ईरानी ने जो लोकसभा चुनाव के दौरान हलफनामा दायर किया था उसमें उन्होंने अपनी शिक्षा के बारे में गलत जानकारी दी है।

Sunday 19 April 2015

क्या राहुल गांधी पार्टी को इस संकट के दौर से उभार सकते हैं?

आत्मचिन्तन करने छुट्टी पर गए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी 56 दिन बाद गुरुवार को लौट आए। संसद के बजट सत्र से पहले ही कांग्रेस उपाध्यक्ष छुट्टी लेकर विदेश चले गए थे। सुबह 11.15 बजे राहुल बैंकाक से थाई एयरवेज की फ्लाइट लेकर दिल्ली पहुंचे। एयरपोर्ट से वह सीधे सरकारी आवास पहुंचे जहां कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी पहले ही मौजूद थीं। हालांकि इस दौरान उन्होंने मीडिया से कोई बातचीत नहीं की। लम्बे समय से राहुल समर्थक बेसब्री से इंतजार कर रहे थे उनके लौटने का, कमान संभालने का। लेकिन दूसरी तरफ कांग्रेस में ऐसे नेताओं की तादाद लगातार बढ़ती दिख रही है जिनमें से कुछ इशारों में, तो कुछ खुलकर राहुल की क्षमताओं पर सवाल उठा रहे हैं। इस फेहरिस्त में ताजा नाम दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का जुड़ गया है। शीला जी ने राहुल गांधी के नेतृत्व क्षमता पर सवालिया निशान लगाते हुए कहा कि सोनिया गांधी को ही पार्टी का नेतृत्व जारी रखना चाहिए। हाल ही में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने भी इस तरह के आरोप लगाए थे। यह दोनों ही गांधी परिवार के बेहद करीबी माने जाते हैं। शीला दीक्षित ने सोनिया की तारीफ करते हुए कहा कि वह जिम्मेदारियों से नहीं भागतीं। पार्टी अपनी सत्ता में दोबारा वापसी के लिए उन्हीं पर निर्भर कर सकती है। शीला के बेटे पूर्व सांसद संदीप दीक्षित ने भी कुछ दिन पहले राहुल के खिलाफ बयान दिया था। संदीप दीक्षित ने कहा था कि राहुल काबिल हैं लेकिन सोनिया बैस्ट हैं। शीला के शब्द भले ही शालीन हों किन्तु उनका भाव उतना ही तल्ख है जितना राजस्थान, कर्नाटक और गुजरात के उन कांग्रेसियों का था, जो लोकसभा चुनाव की करारी शिकस्त के  बाद राहुल के नेतृत्व पर सवाल उठाकर पार्टी से बाहर का रास्ता देख चुके हैं। शीला की  बात का भी लब्बोलुआब यही है कि लोकतंत्र में नेतृत्व की कसौटी चुनाव में पार्टी को विजय दिलाना ही है। इस मोर्चे पर राहुल का योगदान किसी से छिपा नहीं है। लोकसभा चुनाव में ऐतिहासिक हार के सदमे से  जूझ रही पार्टी के लिए यह ऐसा अवसर था जब वह संसद से लेकर सड़क तक मोदी सरकार को घेर सकती थी। मगर राहुल के अचानक परिदृश्य से गायब हो जाने के कारण पार्टी की सारी योजना पर पानी फिर गया। उनकी कमी पूरी करने के लिए सोनिया गांधी को मैदान में कूदना पड़ा। उन्होंने भूमि अधिग्रहण बिल पर विपक्ष को एकजुट किया। उत्तर भारत में रबी की फसल पर वज्रपात के रूप में बरसी तूफानी बारिश और ओलावृष्टि से पीड़ित राज्यों का दौरा कर पीड़ितों को सांत्वना देने का काम भी सोनिया को ही करना पड़ा। अनेक वरिष्ठ कांग्रेसियों का वर्ग सोनिया को पार्टी अध्यक्ष बनाए रखने का पक्षधर है। उनके अनुसार पार्टी इतिहास के कठिन दौर से गुजर रही है। ऐसे में सोनिया जैसी सुलझी नेता ही पार्टी को संकट से उभार सकती हैं। राहुल में अनुभव की कमी एवं पलायन की प्रवृत्ति है, इसलिए उनके हाथों में पार्टी की बागडोर देना ठीक नहीं होगा। फिलहाल राहुल के समर्थकों की उम्मीद 19 अप्रैल को होने वाले पार्टी के कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति पर टिकी है। मोदी को राहुल टक्कर दे पाएंगे इसमें संदेह है।

-अनिल नरेन्द्र

जम्मू-कश्मीर में भाजपा का प्रयोग फेल होता नजर आ रहा है

दुख से कहना पड़ता है कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व ने जम्मू-कश्मीर में मुफ्ती मोहम्मद सईद की पार्टी पीडीपी के साथ सरकार बनाकर आत्मघाती कदम उठाया है। पीडीपी की सरकार के आने से अलगाववादियों के हौंसले बढ़ गए हैं। देश ने यह कल्पना सपने में भी नहीं की होगी कि एक दिन जम्मू-कश्मीर की सरकार में भाजपा भागीदारी करेगी और उसके जमाने में श्रीनगर में खुलेआम पाकिस्तान जिन्दाबाद के साथ वहां का झंडा फहराया जाएगा। हालांकि इसके संकेत तभी मिल गए थे जब मुख्यमंत्री बनने के बाद मुफ्ती मोहम्मद सईद ने पहला काम पाकिस्तान, आतंकियों और अलगाववादियों की शान में कसीदे पढ़ने और पूरे देश की फिक्र को नजरअंदाज करते हुए आतंकी मसर्रत आलम को सींखचों से मुक्त करने का काम किया था। कब्र में पांव लटकाए खड़े हुर्रियत नेता गिलानी को उत्तराधिकारी की सख्त जरूरत थी और मुफ्ती ने मसर्रत का उपहार सौंप कर यह कसर पूरी कर दी। पूरी दुनिया में संभवत भारत अकेला ऐसा देश होगा जो खुलेआम राष्ट्र विरोधी हरकतें करने वालों और भारत के खिलाफ आतंकवाद का समर्थन व पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाने वाले नेताओं की  जमात को न केवल सुरक्षा प्रदान करता है बल्कि उन्हें पांच सितारा सहूलियतें भी उपलब्ध कराता है। हुर्रियत कांफ्रेंस में शामिल संगठनों के नेताओं को भारत सरकार पिछले दो दशक से भी अधिक समय से वह सारी सहूलियतें देती है जो किसी भी राष्ट्रीय स्तर के देशभक्त नेता को सुलभ कराई जाती हैं। इन अलगाववादियों के मुफ्ती के आने के बाद हौंसले आसमान छू रहे हैं। इन पाकिस्तानी पिट्ठुओं को मुफ्ती के दोहरे चेहरे का बखूबी अंदाजा हैöअभी पिछले दिनों दुख्तराने नाम के अलगाववादी समूह ने मुट्ठीभर औरतों को जमा कर इसी प्रकार श्रीनगर को पाकिस्तानी झंडे से नापाक किया था। मुफ्ती अपने एजेंडे पर चल रहे हैं। सवाल तो यह है कि भाजपा क्या कर रही है? वह सरकार में हिस्सेदार तो है पर लगता है कि उससे कुछ भी नहीं पूछा जाता और मुफ्ती बिना सलाह मशविरा किए एक के बाद एक कदम उठाते जा रहे हैं जिससे इन पाकिस्तानी पिट्ठुओं के हौंसले बढ़ते जा रहे हैं। जम्मू क्षेत्र में भाजपा नम्बर वन पार्टी है पर दुख से कहना पड़ता है कि सबसे ज्यादा नजरअंदाज जम्मू क्षेत्र को किया जा रहा है। भाजपा को भी जम्मू क्षेत्र की कोई फिक्र नहीं। वहां की जनता ने इस उम्मीद से भाजपा को जिताया था कि वह क्षेत्र के विकास व तरक्की पर ध्यान देगी पर पीडीपी के पिछलग्गू बनकर भाजपा नेतृत्व अपने समर्थकों के पांव पर कुल्हाड़ी मार रही है। आज जिस तरीके से जम्मू-कश्मीर में गठबंधन सरकार चल रही है उससे तो भाजपा के तमाम समर्थक बहुत हताश हैं। क्या मोदी-शाह जोड़ी ने यह गठबंधन सरकार इसलिए बनाई थी कि सुनियोजित साजिश के तहत भीड़ जुटाकर दुनिया के सामने भारत के संविधान और संप्रभुता की धज्जियां उड़ाई जाएं? भाजपा और मोदी सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए कि उसके राजनीतिक प्रयोग जम्मू-कश्मीर की उन उपलब्धियों को न छीनना शुरू कर दें जो हमारे जवानों ने खून बहाकर हासिल की हैं। केंद्र सरकार की भूमिका भी केवल नाखुशी का इजहार करने से खत्म नहीं होती इन्हें अमल में आता हुआ देखना होगा।

Saturday 18 April 2015

महज आधे घंटे में कट जाती हैं चोरी की गाड़ियां

हाल के समय में वाहनों की चोरी बढ़ गई है। यही नहीं बल्कि कार चोर हाइटैक हो गए हैं। वह केवल पुरानी गाड़ियां नहीं चुराते हैं, अब उनके निशाने पर वह गाड़ियां भी हैं जो महंगी हैं और लोगों के बीच सबसे ज्यादा लोकप्रिय हैं। इनमें एसयूवी (स्पेशल यूटिलिटी व्हीकल) और एमयूवी (मल्टी यूटिलिटी व्हीकल) सबसे ज्यादा हैं। हालांकि चोर उन वाहनों को चुराने से बचते हैं जो कि सैंट्रलाइज लॉक्ड सिस्टम से लैस हैं। पुलिस सूत्रों के मुताबिक वाहन चोर गाड़ी चुराने के बाद महज आधे घंटे में काट देते हैं और उसका एक-एक पुर्जा बेच देते हैं। असम से कांग्रेस के विधायक रूमी नाथ की गिरफ्तारी मामले में ऑटो चोर अनिल चौहान का नाम आया है और उसे पुलिस ने गिरफ्तार किया है। वाहन चोरों का व्यापार मांग और आपूर्ति के सिद्धांत पर काम करता है। जिस गाड़ी की सबसे ज्यादा मांग होती है उसी को सबसे ज्यादा चोरी किया जाता है। दिल्ली पुलिस के पिछले दो वर्षों में वाहन चोरी की घटना का विश्लेषण किया जाए तो पता चलता है कि 2013 में जहां 13895 वाहन चोरी हुए थे वहीं वर्ष 2014 में यह आंकड़ा बढ़कर 22223 हो गया था। पुलिस की वार्षिक कांफ्रेंस में भी बताया गया था कि वाहन चोरी का हिस्सा दिल्ली में कुल हुए अपराधों का 15 प्रतिशत है। इसकी एक वजह पार्किंग की कमी, सड़क किनारे गाड़ी खड़ी होना भी है। पुलिस सूत्रों की मानें तो पिछले एक साल में वाहन चोर फॉर्च्यूनर, होंडा सिटी, स्कार्पियो, वेनी आदि गाड़ियों की तलाश करते हैं। इस तरह की गाड़ी नहीं मिलने पर ही वह छोटी गाड़ियों पर हाथ डालने का प्रयास करते हैं। इनमें भी सेंट्रो, आई-10 और वैगनआर गाड़ी को वाहन चोर पहले निशाना बनाते हैं। पुलिस के मुताबिक दिल्ली में वाहन चोर मायापुरी में जाकर वाहन बेच रहे थे। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में यूपी के मेरठ के कुछ इलाकों और जामा मस्जिद और पूर्वोत्तर के कई राज्यों में भी कारें बेचने का धंधा बढ़ा है। पूर्वोत्तर राज्यों में दिल्ली से गाड़ियां चोरी होकर जाती हैं, इनके कागजात भी बन जाते हैं और यहीं से इन्हें अन्य राज्यों के साथ-साथ पड़ोसी देश नेपाल और बांग्लादेश में बेचा जाता है। चौंकाने वाली बात यह है कि अगर राजधानी से कोई वाहन चोरी हो जाए तो पुलिस के पास ऐसा कोई तंत्र नहीं है कि चोरी हुए वाहन के बारे में पड़ोसी राज्यों को सूचित कर सके। अकसर वाहन चोर गाड़ी चुराकर निकलते हैं, वह कई राज्यों में सफर करते हुए वाहन को कबाड़ बाजार में जाकर बेच देते हैं। हैरानी की बात यह है कि राज्यों की सीमा पर भी इस तरह का कोई तंत्र काम नहीं करता कि अगर कोई चोरी का वाहन जा रहा है तो उसे पकड़ा जा सके। कई बार तो ऐसा होता है कि वाहन चोरी के मामले में पुलिस एफआईआर भी देरी से लिखती है। अगर एफआईआर को दूसरे राज्यों की पुलिस से समन्वय बैठाकर उनके कम्प्यूटर या मोबाइल से जोड़कर अलग सिस्टम लाया जाए तो चोरी की वारदातों पर लगाम लग सकती है। सफेद कार वालों के लिए चेतावनीöकार चोरी की सबसे ज्यादा वारदातें सफेद कारों की होती हैं।

-अनिल नरेन्द्र

अंतत प्रज्ञा ठाकुर से इंसाफ, जमानत का रास्ता साफ

अंतत मालेगांव ब्लास्ट मामले में गिरफ्तार साध्वी प्रज्ञा ठाकुर समेत अन्य को थोड़ी राहत मिलने की संभावना है। देश की सर्वोच्च अदालत ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और कर्नल श्रीकांत पुरोहित समेत कुल 11 लोगों की बेल अर्जी पर निचली अदालत से एक महीने के अंदर फैसला करने का बुधवार को निर्देश दिया। पिछले साढ़े छह साल से जेल में बंद अभियुक्तों की जमानत अर्जी बॉम्बे हाई कोर्ट ने खारिज कर दी थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि मौजूदा साक्ष्यों के आधार पर इनके खिलाफ मकोका (महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ आर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट) के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। न्यायमूर्ति एफएमआई खलीफुल्ला और न्यायमूर्ति शिव कीर्ती सिंह की पीठ ने यह भी कहा कि आरोपियों की जमानत अर्जियों से निपटने के दौरान मकोका के कड़े प्रावधानों पर विचार नहीं किया जाए। आरोपियों ने जमानत देने से इंकार करने के बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। उन्होंने यह भी अनुरोध किया था कि कठोर मकोका कानून के तहत आरोप निर्धारण बहाल रखने के लिए हाई कोर्ट का फैसला निरस्त किया जाए। उच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि मालेगांव बम विस्फोट कांड में प्रज्ञा और 10 अन्य आरोपियों को मकोका के तहत सुनवाई का सामना करना होगा। उच्च न्यायालय ने विशेष अदालत के उस फैसले को भी खारिज कर दिया था जिसने इस विशेष कानून के तहत आरोप निरस्त कर दिए थे। मालेगांव इलाके में 29 सितम्बर 2008 को बम धमाका हुआ था। इसमें सात लोग मारे गए थे। प्रमुख साजिशकर्ताओं के रूप में साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, लेफ्टिनेंट कर्नल एस. पुरोहित और स्वामी दयानंद पांडे आरोपी बनाए गए। जुलाई 2014 में स्पेशल मकोका कोर्ट ने कहा कि एंटी टेरर स्क्वॉड ने गलत तरीके से प्रज्ञा, पुरोहित व नौ अन्य पर मकोका लगाया। 4000 पेज की चार्जशीट में कहा गया कि मालेगांव को धमाके  के लिए इसलिए चुना गया क्योंकि यह मुस्लिम बहुल था। हमले में इस्तेमाल की गई मोटर साइकिल प्रज्ञा की थी। हाई कोर्ट ने स्पेशल कोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए मकोका लगाए जाने को सही ठहराया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि साध्वी प्रज्ञा सहित अन्य आरोपियों के खिलाफ जो साक्ष्य पेश किए गए हैं। उसमें पहली नजर में मकोका का मामला बनता नहीं दिखता। सुप्रीम कोर्ट का मानना है कि मौजूदा साक्ष्यों के आधार पर इनके खिलाफ मकोका के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। इसके लिए अभियुक्तों का एक से अधिक संगठित अपराधों में हाथ साबित होना जरूरी है, लेकिन न तो महाराष्ट्र के एंटी टेररिज्म स्क्वॉड (एटीएस) और न ही नेशनल इनवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) सिर्प एक अभियुक्त राकेश फावड़े को छोड़कर अन्य किसी के मामले में ऐसा कुछ साबित कर पाई है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि मुकदमे की सुनवाई कर रही विशेष अदालत इन हालातों में फावड़े को छोड़कर बाकी सभी को जमानत पर रिहा कर सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने अंतत साध्वी प्रज्ञा व कर्नल पुरोहित से इंसाफ किया है। अब इनकी जमानत का रास्ता साफ हो गया है और राहत इस बात की भी है कि जो केस चलेगा वह मकोका के तहत नहीं होगा।

Friday 17 April 2015

Was Netaji murdered, his family spied upon?

If we go through the history we find that governmentshave  always been involved in espionage. Intelligence system in India exists from the ancient period. India has at present an Intelligence system and structure, which has been developed by the British as they needed to keep an eye on the nationalists especially after 1857. After independence the control of these intelligence agencies was vested with the Central Government. Allegations were made time and again that government is involved in the espionage to keep vigil on its opponents. Now it's the turn of espionage of Netaji Subhash Chandra Bose. AnujDhar, author of the book 'India's biggest Cover up' written on the death of Netaji has alleged through a letter that the then Prime Minister JawaharLal Nehru himself was monitoring and guiding the espionage of Netaji. He has acquired this letter from two files recently made public. According to the letter Nehru had written to then foreign secretary SubimalDutt on 25th November 1957 seeking information about the Japan tour of Amiya Bose, the nephew of Netaji Subhash Chandra Bose. He wrote in the letter: I am sending some pictures of my tour of Renkozi Temple at Tokyo.  I've come to know after the tour that Amiya Bose, the son of Sharat Chandra Bose (brother of Netaji) had visited Tokyo. So I direct you to write to our diplomats at Tokyo and get the information as to  whydid Amiya gone there? Had he contacted the embassy or visited the Renkozi temple? Responding to the letter, then Indian Ambassador to Japan CS Jhasaid there is no information regarding any suspicious activity of Amiya Bose in Japan. But still  controversy surrounds the end of Netaji. Allegations and counter allegations are on while Jagram, the gunner of Netaji has raised another controversy. Veteran freedom fighter Jagram, the personal gunner of Netaji Subhash Chandra Bose, the hero of the freedom struggle has made a sensational  disclosure that Netaji had not died in air crash,as was commonly believed, he was allegedly  murdered. He says thatif  he died in air crash, how could Colonel Habib-ur-Rahman survive? He accompanied Netaji day and night like a shadow. Colonel had migrated to Pakistan after the independence. It's feared that Netaji had been hung in Russia. It would have done by Russian dictator Stalin at the instance of Nehru. 93 year old Jagram told that four years after the bombing of Hiroshima and Nagasaki four leaders were declared war criminals. These included Tojo of Japan, Mussolini of Italy, Hitler of Germany and Netaji Subhash Chandra Bose of India. Tojo jumped from the roof and died. Mussolini was captured and killed and Hitler committed suicide by shooting himself. Only Netaji had survived. He was sent to Russia by Japan. Jagram, the gunner of Netaji for 13 months says that Pt. Nehru had no role in the nation's freedom as compared to Netaji. Not only Gandhiji, but the other big dictators and rulers of the world looked like dwarfs before Netaji. The news of spying on his relatives confirmed that to what extent Nehru was afraid of Netaji. Nehru always felt if Netaji appeared on the scene he would be completely over shadowed and  no one will pay any attention to  him. Now Congress spokesperson Randeep Singh Surjewala has said that the allegations of espionage of Netaji Subhash Chandra Bose by the  former Prime Minister JawaharLal Nehru are malicious. The existing government is propagatinghalf truths to defame the great leader who made  the country strong and great.It would be in the country’s interest if the truth about Netaji’s end period is revealed.The classified files with the Government of India regarding Netaji must be declassified and the controversy settled once for all.

- Anil Narendra

पीएम तो जोड़ने का काम कर रहे हैं और यह नेता तोड़ने का

शिवसेना सांसद और पार्टी मुखपत्र सामना के कार्यकारी सम्पादक संजय राउत ने मांग की है कि मुस्लिम समाज से वोट का अधिकार छीन  लिया जाए। उनकी राय में मुस्लिम समाज को एक वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है जो इस समुदाय के हितों के लिहाज से ठीक नहीं है। इसलिए उनके मुताबिक तुष्टिकरण की इस राजनीति को खत्म करना है तो इस समुदाय को वोट देने के अधिकार से वंचित कर दिया जाना चाहिए। बेशक यह ठीक है कि अल्पसंख्यकों को एक वोट बैंक की तरह इस्तेमाल किया जाता है और इस तुष्टीकरण की नीति पर लगाम लगनी चाहिए पर किसी समुदाय का मतदान अधिकार छीनने की बात कहना सरासर गलत है। संजय राउत को पूरा हक है कि वह अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों की चाहे जितनी तीखी आलोचना करें पर वोट का अधिकार छीनने की बात कर उन्होंने बड़ी मुसीबत मोल ले ली है। यह बात अपनी जगह सही है कि जिन ओवैसी बंधुओं से शिवसेना की राजनीतिक प्रतिस्पर्धा की पृष्ठभूमि में राउत का यह बयान आया है, सांप्रदायिक राजनीति करना उनकी पहचान रही है। राउत की इस बात से कुछ हद तक सहमत हुआ जा सकता है कि वोट बैंक की राजनीति किसी भी समूह के लिए हितकर नहीं होती। लेकिन देश में शायद ही कोई समूह होता हो जिसे बड़े या छोटे पैमाने पर वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा रहा हो। अगर कुछ पार्टियां मुस्लिम समाज को अपना वोट बैंक मानती हैं तो कुछ अन्य पार्टियां गर्व से हिन्दू वोट बैंक बनाने का प्रयास करती हैं और चुनाव के मौके पर इस बैंक का सारा खजाना अपने नाम पर लेने का कोई मौका नहीं छोड़तीं। पिछले कुछ दिनों से भाजपा और हिन्दुत्व के कथित ठेकेदारों की ओर से विवादित बयानों की होड़-सी लग गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश की तरक्की के लिए कौमों को जोड़ने के प्रयास में लगे हुए हैं वहीं भाजपा सांसद सच्चिदानंद हरि साक्षी सरीखे के नेता अनाप-शनाप बयान देकर पीएम की मुसीबतें बढ़ा रहे हैं। विवादित बयानों को लेकर अकसर सुर्खियों में रहने वाले साक्षी महाराज ने रविवार को कहा कि हम चार बच्चे पैदा करने की बात करते हैं तो हंगामा खड़ा हो जाता है। लेकिन चार बीवी और 40 बच्चे पैदा करने वालों से आग क्यों नहीं लगती? जनसंख्या वृद्धि देश को खाने के लिए मुंह बाए खड़ी है। इसलिए अब देश में परिवार नियोजन को लेकर भी एक विधान लागू करना चाहिए और उसका जो पालन न करे उसे मताधिकार के अधिकार से वंचित कर देना चाहिए, यह कहना कि सारे मुसलमान चार शादियां करते हैं और उनके दर्जनों बच्चे होते हैं सही नहीं है। अधिकतर मुस्लिम एक ही शादी करते हैं और अपनी औलादों की अच्छी परवरिश की खातिर एक-दो बच्चे ही पैदा करते हैं। हां देहाती इलाके में अनपढ़ आज भी बड़े परिवार बनाते हैं उनको सीमित करने की जरूरत है पर जोर-जबरदस्ती से नहीं, शिक्षित करके, उन्हें छोटे परिवारों के लाभ समझा कर करना चाहिए। तीखी आलोचना के बाद शिवसेना संजय राउत के बयान से पल्ला झाड़ती दिख रही है तो खुद राउत भी सफाई देने की मुद्रा में नजर आ रहे हैं। हालांकि ऐसे लोगों की कमी नहीं जो शिकायत करते हैं कि मीडिया और बुद्धिजीवी एक खास वर्ग को जरा भी चुभने वाले बयान आने पर हंगामा मचाते हैं लेकिन बहुसंख्यक विरोधी या राष्ट्र विरोधी बयान आने पर उनके मुंह पर ताला लग जाता है। इसका एक ताजा प्रमाण है कि कांग्रेस के एक नेता ने इंडियन मुजाहिद्दीन को आतंकी गिरोह मानने से इंकार कर दिया। लेकिन इस बयान पर न तो कांग्रेस, न मीडिया और न ही बुद्धिजीवी वर्ग में कोई हलचल दिखाई दी। लोकतंत्र की सबसे बड़ी खूबी यह है कि हर व्यक्ति को अपनी बात कहने का हक है पर उन्हें यह समझना होगा कि जिस वोटिंग राइट पर बेतुके बयान दे रहे हैं, वह देश के नागरिकों का मूलभूत संवैधानिक अधिकार है जिसका कोई उल्लंघन नहीं कर सकता।

-अनिल नरेन्द्र

तीन दिन में चार नक्सली हमले क्या दर्शाते हैं?

छत्तीसगढ़ के बस्तर के तीन जिलों में तीन दिन के भीतर तकरीबन तीन सौ किलोमीटर के दायरे में हुए चार नक्सली हमले हमारे सुरक्षा और खुफिया बलों की तुलना में नक्सलियों की मजबूत रणनीति को ही रेखांकित करते हैं। जिस बेखौफ अंदाज में नक्सली इन हमलों को अंजाम दे रहे हैं उससे एंटी-नक्सल ऑपरेशन की रणनीति पर गंभीर सवाल उठा रहे हैं। हर हमले के बाद हम सबक लेने और पुरानी गलतियों को दोहराने की बात तो करते हैं लेकिन उनसे सीखते कुछ नहीं हैं, उन्हें न दोहराने की बात तो दूर रही। हैरत की बात यह है कि सुरक्षा बलों ने कुछ दिन पूर्व ही बस्तर में सशस्त्र मॉक ड्रिल भी की थी, इसके बावजूद यह हमले रोके नहीं जा सके। नियमित अंतराल पर नक्सली ऐसी वारदातों को अंजाम देने में लगातार कामयाब हो रहे हैं जिससे सुरक्षा बलों को भारी नुकसान झेलना पड़ता है और नक्सली अपना खौफ कायम रखने में कामयाब रहते हैं। खास  बात यह भी है कि ताजा हमलों ने उन कई बहानों के लिए गुंजाइश नहीं छोड़ी है जो ऐसी वारदातों के बाद अकसर दिए जाते हैं। यह हमले यही बयान कर रहे हैं कि नक्सलियों ने फिर से ताकत जुटा ली है और वह नए सिरे से दुस्साहस का परिचय देने को तैयार हैं। उनके दुस्साहस का पता इससे चलता है कि पहले हमले में शहीद जवानों के शव हासिल करने में 24 घंटे से अधिक का समय लग गया। जब सीआरपीएफ पर ऐसे हमले होते हैं तो एक प्रचलित बहाना रहता है कि चूंकि इस बल के जवानों को स्थानीय हालात की जानकारी कम थी, लिहाजा नक्सली उन पर भारी पड़ गए। लेकिन ताजा नक्सली वारदातों में शिकार स्थानीय बल भी हुए हैं और बीएसएफ भी। ऐसा ही एक प्रचलित बहाना यह भी रहा है कि केंद्र और राज्य स्तर पर तालमेल में कमी का फायदा उठाकर नक्सली अपने मंसूबों में कामयाब हो रहे हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ में वर्षों से भाजपा की सरकार है और अब पिछले लगभग 11 महीनों से केंद्रीय सत्ता की बागडोर भी इसी पार्टी के हाथ में है। ऐसे में केंद्र-राज्य के बीच तालमेल की कमी का  बहाना अब नही चल सकता। यदि अब भी तालमेल में कोई अभाव है तो इसके लिए राज्य सरकार और केंद्र सरकार अन्य किसी को दोष नहीं दे सकतीं। यह निराशाजनक है कि एक बार फिर यह बात सामने आ रही है कि छत्तीसगढ़ में अर्द्धसैनिक बलों की पर्याप्त मौजूदगी के बावजूद उनका सही तरह से इस्तेमाल नहीं हो रहा है। यदि पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों के जवान इसी तरह नक्सलियों के हाथों शहीद होते रहे तो उनके मनोबल को बनाए रखना कठिन हो जाएगा। अब जरूरत है कि रणनीति, समन्वय और संसाधनों के स्तर पर ऐसी पुख्ता तैयारी की जाए जिसके जरिये इस लाल आतंक की कमर तोड़ी जा सके। यह साफ हो चुका है कि नक्सली हमलों का सिलसिला थमने का यह नतीजा निकालना बड़ी गलती है कि नक्सली अब कमजोर पड़ गए हैं और उनकी मारक क्षमता कम हो गई है। दरअसल जब वह सक्रिय नहीं होते और ऑपरेशन शिथिल हो जाता है तो वह हथियार और रसद जुटाकर नए सिरे से हमले करने की तैयारी कर रहे होते हैं। जरूरत इसकी है कि नक्सलियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई के लिए माहौल बनाया जाए, क्योंकि मुठभेड़ में नक्सलियों को ढेर किए जाने पर तो खूब सवाल उठते हैं लेकिन हमारे जवानों के शहीद होने पर महज औपचारिक स्वर ही सुनाई पड़ते हैं।