Sunday 30 March 2014

उत्तर पदेश में दांव पर है कई दिग्गजों की मान-पतिष्ठा

दिल्ली का तख्त हासिल करने के लिए यूपी अत्यंत महत्वपूर्ण है। 80 सीटों वाले उत्तर पदेश में एक ओर भाजपा के पधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी वाराणसी से अपना विजय रथ दौड़ाएंगे तो कांग्रेस के पधानमंत्री पद के चेहरे राहुल गांधी अपनी खानदानी सीट अमेठी से तीसरी बार मैदान में उतरकर कांग्रेस का झंडा लहराएंगे। समाजवादी पाटी मुखिया मुलायम सिंह यादव व बहुजन समाज पाटी मुखिया मायावती बड़ी ताकत के तौर पर पहले से यहां खासे जमे हुए हैं। कांग्रेस मुखिया सोनिया गांधी रायबरेली से तो भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह लखनऊ से अपनी किस्मत आजमाएंगे। इसी जंग में आम आदमी पाटी भी जूझ रही है जिसके नेता अरविंद केजरीवाल भी वाराणसी से ताल ठोंक रहे हैं। वरुण गांधी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, योगी आदित्यनाथ जैसे हिंदुत्व के चेहरे भाजपा का परचम लेकर दंगल में उतरे हैं तो राज बब्बर, सलमान खुशीद, रीता बहुगुणा जोशी कांग्रेस के लिए मैदान में हैं। सोलहवीं लोकसभा चुनाव से पूर्व समाजवादी पाटी ने दस चुनावी सभाओं में साठ लाख से अधिक की भीड़ जुटाने का दावा किया। यही हाल भाजपा का भी रहा जिसने आठ सभाओं में चालीस लाख के करीब लोगों को जुटाया। लेकिन उस वक्त लोकसभा चुनाव की घोषणा न होने की वजह से चुनाव आयोग हरकत में नहीं आया था। अब तस्वीर अलग है। कांग्रेस के नेता  बताते हैं कि लोकसभा चुनाव के दौरान सोनिया गांधी दस स्थानों पर चुनावी सभाएं करने वाली हैं। जिन स्थानों पर सोनिया और राहुल की सभाएं होनी हैं उनमें लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, सुलतानपुर, रायबरेली, गोरखपुर पमुख हैं, कुल मिलाकर यह लगभग तीस चुनावी सभाओं को संबोधित करेंगे। वहीं समाजवादी पाटी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का चालीस से अधिक सभाओं को संबोधित करने का प्लान है। इसके अलावा यह दोनों ही नेता बीस हजार किलोमीटर से अधिक के सड़क मार्ग से यात्रा की योजना बना रहे हैं। उधर भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, सुषमा स्वराज, महंत योगीनाथ सरीखे वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं की कई सभाएं उत्तर पदेश में रखी गई हैं। वहीं बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने यूपी की सभी 80 लोकसभा सीटों पर चुनावी सभाएं करने का कार्यकम घोषित कर दिया है। भाजपा ने जैसे ही नरेंद्र मोदी की वाराणसी से चुनाव लड़ने की घोषणा की वैसे ही सोशल मीडिया पर उनकी तलाश और तेज हो गई। 15 मार्च को वाराणसी से पत्याशी घोषित होने के 24 घंटे के अंदर उनके फेसबुक पेज को 40 हजार लोगों ने लाइक किया। रविवार शाम तक पेज को एक लाख चौदह करोड़ से ज्यादा लोग लाइक कर चुके थे। ट्विटर पर भी उनके फॉलोवर की संख्या में करीब 40 हजार का इजाफा हुआ। उनके हैरटेक ``माई वोट फॉर मोदी'' पर भी एक मिनट में करीब 100 ट्विट आ रहे हैं। इसके विपरीत मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे अरविंद केजरीवाल की लोकपियता सोशल मीडिया पर तेजी से घटी है। उनके ऑफिशियल फेसबुक पेज को 10 मार्च से 16 मार्च के दौरान मात्र 61 हजार लोगों ने लाइक किया है। इससे पहले हफ्ते में यह संख्या 71 हजार से ऊपर थी। ट्विटर पर भी उनके फॉलोवरों की संख्या 15 लाख है।

-अनिल नरेंद्र

टीम एके है पाकिस्तान की मददगार, मोदी का केजरीवाल पर हमला

अभी तक आम आदमी पाटी (आप) के आरोपों के जवाब देने से बच रहे भाजपा के पीएम इन वेटिंग नरेंद्र मोदी ने आप पर जोरदार हमला बोला है। हीरानगर (जम्मू) में मोदी ने वैष्णो देवी के दर्शन के बाद एक विशाल रैली को संबोधित करते हुए कहा कि आजकल टीम एके पाकिस्तान की मुख्य हथियार बनी हुई है। पाकिस्तान की सीमा पर इस रैली में नरेंद्र मोदी ने कहा कि पाकिस्तान को टीम एके के रूप में तीन नए सिपहसालार मिल गए हैं जिनकी पाकिस्तान में खूब वाहवाही हो रही है। यह देश के दुश्मन और पाकिस्तान की एजेंट हैं। उन्होंने कहा कि पाक की तीन अनोखी ताकतों में पहली एके-47 है जो निर्दोष लोगों को लहूलुहान करती है। दूसरी भारत के रक्षा मंत्री एके एंटनी हैं जो भारतीय जवान का सिर काटने वालें को पाकिस्तानी सैनिक नहीं कहकर पाक सैनिक वदी पहने लोग बताते हैं और तीसरी है दिल्ली में 49 दिन सरकार चलाने के बाद सीएम पद से इस्तीफा देने वाले एके-49 यानी अरविंद केजरीवाल। जम्मू और उत्तर पदेश के बाद नई दिल्ली में हुई तीसरी रैली में मोदी ने फिर आम आदमी पाटी को आड़े हाथों लिया। मोदी ने कहा कि आप कांग्रेस की बी टीम है। पहले आप के जरिए तो अब दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर के जरिए कांग्रेस राजधानी को चला रही है। यमुनापार इलाके के शास्त्राr पार्क में आयोजित दिल्ली में पहली चुनावी रैली में उन्होंने कहा कि यह पहला चुनाव देखने को मिल रहा है जिसमें गठबंधन इसलिए हो रहा है कि कहीं भाजपा जीत न जाए। मोदी को रोकने के लिए दल गठबंधन कर रहे हैं। आज तक तो अरविंद केजरीवाल नरेंद्र मोदी पर तीखे हमले करते रहे पर पहली बार मोदी ने केजरीवाल पर सीधा हमला बोला। केजरीवाल ने खुद पर की गई एके 49 और पाकिस्तानी एजेंट वाली टिप्पणी को लेकर मोदी पर पलटवार करते हुए कहा कि पधानमंत्री पद के उम्मीदवार को ऐसी टिप्पणी करना शोभा नहीं देती। लेकिन मोदी ने जिस मुद्दे को लेकर केजरीवाल पर आरोप लगाए थे उसके जवाब में आम आदमी पार्टी के नेता कुछ नहीं कह पाए। उन्होंने मोदी की टिप्पणी का जवाब नहीं दिया। आप नेताओं का कहना है कि मोदी देश को बेमतल के मसलों में उलझाने की कोशिश कर रहे हैं। वे कुछ भी कह लें, एके अवाम में मशहूर हैं। मनीष सिसोदिया ने ट्विट किया कि मोदी के झूठ पर सवाल उठाने वाला हर शख्स पाकिस्तानी एजेंट कहलाएगा। पाटी पवक्ता दिलीप पांडेय ने कहा कि भाजपा के नेता केजरीवाल को पाकिस्तानी एजेंट बता रहे हैं जो पाकिस्तान जाकर जिन्ना की मजार पर माथा टेकते हैं। आप का सपोर्ट बेस लगातार गिरता जा रहा  है। आम आदमी पाटी (आप) लोकसभा चुनाव में शायद विधानसभा चुनाव जैसा करिश्मा नहीं दिखा सकेगी। देश की राजधानी से बाहर निकलकर राष्ट्रीय क्षितिज पर छाने की कोशिश में जुटी आम आदमी पाटी का दिल्ली में ही किला दरकता दिख रहा है। एबीपी-नील्सन के सर्वे के अनुसार जनवरी से मार्च तक आप के वोट पतिशत में एक तिहाई से ज्यादा ही कमी आई है लेकिन देश भर में मोदी की लहर का दावा कर रही भाजपा की बजाय आप का वोट पतिशत वापस कांग्रेस की ओर जाता दिख रहा है। विधानसभा चुनाव में आप ने कांग्रेस को हाशिए पर धकेल दिया था। भाजपा का वोट पतिशत भी जनवरी से मार्च के बीच तीन पतिशत बढ़ा है पर ज्यादा फायदा कांग्रेस को हो रहा है। कांग्रेस अपने पारंपरिक वोट बैंक को वापस खींच रही है और इस बंटवारे का फायदा भाजपा को मिल सकता है। शायद दिल्ली का मतदाता लोकसभा चुनाव में सरकार बनाने के दावेदार भाजपा और कांग्रेस के बीच के विकल्प को चुनने की वरीयता का संकेत दे रहा है।

Saturday 29 March 2014

बाहुबलियों के मामले में हमाम में सभी दल नंगे हैं

बात बहुत पुरानी नहीं है जब सुपीम कोर्ट ने देश की राजनीति को अपराधमुक्त बनाने के लिए एक अहम फैसला दिया था, तब एक बार तो ऐसा लगा था कि अब बहुत हो गया, भविष्य में राजनीति से अपराध की छाया मिटी नहीं तो राजनीति में अपराध का छाया सिमट तो जरूर ही जाएगी। तमाम बड़े सियासी दलों ने सुपीम कोर्ट के इस फैसले का स्वागत भी किया, दो सांसदें लालू पसाद यादव और रशीद मसूद की सदस्यता भी चली गई लेकिन हत्या, लूट, बलवा जैसे तमाम गंभीर आपराधिक मामलें से घिरे हुए कई बाहुबली एक बार फिर चुनाव में उतर रहे हैं। सिद्धांतों की बात करने वाले कई दल इन्हें अपने पाले में खींचने से बाज नहीं आए। सबकी नजर सीटें बढ़ाने की जुगत में हैं। वहीं कई बाहुबली ऐसे भी हैं जो बड़े दलों में मौका नहीं मिला तो वह क्षेत्रीय दलों के सहारे संसद में फिर दस्तक देना चाहते हैं। वाराणसी में बाहुबली मुख्तार अंसारी ने चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। अंसारी जेल से ही चुनाव लड़ेंगे। इलाहाबाद की फूलपुर सीट से संसद का सफर कर चुके बाहुबली अतीक अहमद बसपा राज में भागे-भागे घूम रहे थे लेकिन जैसे ही सपा राज आया वह ताल ठेंकने लगे हैं। सपा ने अतीक को अंतत श्रावस्ती से मैदान पर उतार दिया। उधर बलरामपुर से सांसद रहे रिजवान जहीर को गेंडा से बसपा का टिकट नहीं मिला तो  पाला बदलकर पीस पाटी में चले गए और श्रावस्ती से अतीक के खिलाफ ताल ठोंकने लगे। राम मंदिर आंदोलन से सूर्खियां बटोरने वाले बाहुबली ब्रजभूषण सिंह आजकल अपने पुराने घर भाजपा में ताल ठेंक रहे हैं। सपा से होते हुए फिर भाजपा में आए ब्रजभूषण के लिए उनकी पुरानी पाटी ने न तो दरवाजे खोलने में देरी की न ही टिकट देने में संकोच किया। सपा का टिकट ठुकरा कर भाजपा में आए ब्रजभूषण को राजनाथ का विश्वास हासिल है। ब्रजभूषण खुद कहते हैं कि मैं माफिया हूं, मेरे खिलाफ चालीस केस दर्ज हैं। हत्या और लूटपाट जैसे तमाम गंभीर आरोपों में जेल की यात्रा कर चुके और क्षमा याचना पर जेल से बाहर आए दबंग नेता मित्रसेन यादव फैजाबाद लोकसभा सीट से अपनी ताकत का इजहार कर रहे हैं। वह सपा की साइकिल के सहारे संसद पहुंचना चाहते हैं। कांटे को कांटे से निकालने की तर्ज पर बसपा ने मित्रसेन के विरुद्ध कांग्रेस की तत्कालीन पदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी का घर जलाने के आरोपी पूर्व एमएलसी जितेंद्र उर्फ बबलू को उतारा है। बाहुबली डीपी यादव, उनकी पत्नी, बसपा से निकाले गए धनंजय सिंह, लखनऊ  का अरूण शुक्ला उर्फ अन्ना सभी की चाहत सफेदपोश होने की है। पूर्वांचल का बाहुबली मुन्ना बजरंगी जौनपुर से तो ब्रजेश सिंह, चंदौली से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में भाग्य आजमाने की तैयारी कर रहे हैं। बसपा ने सुल्तानपुर से दबंग पवन पांडे को मैदान पर उतार कर भाजपा के वरुण गांधी को चुनौती का रास्ता पशस्त किया है। आजमगढ़ का दंगल भी काफी रोचक है। यहां से सपा पमुख मुलायम सिंह यादव के मैदान में कूदने के बाद हालात काफी बदल गए हैं। यहां से मौजूदा बाहुबली सांसद रमाकांत को मुलायम के कारण दिन में तारे दिखने लगे हैं। दबंग छवि के रमाकांत यादव भाजपा के सांसद हैं। सपा और भाजपा से वह कई बार लोकसभा पहुंच चुके हैं। इस बार फिर वह अपने बाहुबल का एहसास कराने को तैयार हैं लेकिन मुलायम से मुकाबला आसान नहीं लग रहा है। कुल मिलाकर अगर बाहुबलियों की बात करें तो इस हमाम में सब नंगे हैं।

-अनिल नरेंद्र

वक्त बताएगा कि नई दिल्ली व पूवी दिल्ली संसदीय सीट पर कौन हावी होता है

दिल्ली की सभी सातों लोकसभा सीटों के आखिरी दिन छह उम्मीदवारों ने अपने नाम वापस ले लिए, इस तरह नाम वापसी के बाद अब कुल 150 उम्मीदवार चुनाव मैदान में रह गए हैं। इनमें सबसे अधिक चांदनी चौक सीट पर (25) व सबसे कम 14 उम्मीदवार नार्थ-ईस्ट पर रह गए हैं। दूसरे चरण में दिल्ली में होने वाले मतदान के लिए अब केवल 150 उमीदवार चुनाव मैदान में हैं। नई दिल्ली संसदीय सीट सिर्फ दिल्ली के लिए ही नहीं देश के लिए हमेशा से वीवीआईपी सीट रही है। इस सीट की महत्ता इसी बात से तय हो जाती है कि अटल, आडवाणी और राजेश खन्ना जैसे दिग्गज यहां से सांसद रह चुके हैं। नई दिल्ली संसदीय सीट पर एक बार फिर देश की नजरें टिकी हुई हैं। इससे पहले कि मैं यहां से पमुख उम्मीदवारों के बारे में बताउंढ, यह बताना जरूरी है कि नई दिल्ली संसदीय सीट पर सरकारी कर्मचारी एक बड़ा फेक्टर है। लोकसभा सीट पर हार या जीत तय करने में सरकारी कर्मचारियों का  रुख सबसे बड़ा फेक्टर साबित होने वाला है। क्षेत्र में वैसे तो दिल्ली की दूसरी 6 लोकसभा सीटों की तुलना में सबसे कम वोटर हैं लेकिन उनमें सरकारी कर्मचारियों का अनुपात ज्यादा है। नई दिल्ली संसदीय सीट के कुल 14.89 लाख वोटरों में  2.5 लाख सरकारी कर्मचारी हैं। ऐसे में इनका रुख एक बड़ा फेक्टर साबित होगा। इन मतदाताओं के लिए भाजपा और आम आदमी पाटी के पत्याशी नए हैं वहीं कांग्रेस के अजय माकन यहां से लगातार दो बार सांसद रह चुके हैं। हाल के दिल्ली विधानसभा चुनाव में यहीं से अरविंद केजरीवाल ने शीला दीक्षित को पटखनी दी थी। क्षेत्र के अंदर आने वाली 10 में से 7 विधानसभा सीटों पर आप के उम्मीदवार जीते थे। उसी की हवा का लाभ उठाने के लिए इस संसदीय सीट पर आशीष खेतान को उतारा है। कांग्रेस ने यहां मौजूदा सांसद अजय माकन पर विश्वास जताया है, वहीं भाजपा ने मीनाक्षी लेखी को अपना उम्मीदवार बनाया है। पिछले दो लोकसभा चुनाव में अजय माकन ने बाजी मारी थी। इस बार वह हैट्रिक लगाने की तलाश में हैं। त्रिकोणीय मुकाबले में मेरी राय में तो अजय माकन सीट निकाल सकते हैं। अब बात करते हैं दूसरी बहुचर्चित पूवी दिल्ली लोकसभा सीट की। कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस की झोली में खेलती रही पूवी दिल्ली लोकसभा सीट पर इस बार मुकाबला त्रिकोणीय है। आम आदमी पाटी के उम्मीदवार राष्ट्रपति महात्मा गांधी के पौत्र राजमोहन गांधी के यहां से चुनाव लड़ने से देश-दुनिया की नजरें इस संसदीय सीट पर टिकी हुई हैं। मौजूदा सांसद व शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित हैट्रिक लगाने के चक्कर में हैं पर यह राह आसान नहीं। इस बार उनका मुकाबला गांधी-गिरी यानी आप के पत्याशी राजमोहन गांधी और भाजपा के महेश गिरी से है। पूवी दिल्ली किसी खास पाटी का गढ़ नहीं रहा है। 1967 में अस्तित्व में आने के बाद से अब तक हुए  12 लोकसभा चुनावों में छह बार कांग्रेस और इतनी ही बार भाजपा व भारतीय लोकदल व भारतीय जनसंघ की जीत हुई है। इस क्षेत्र में 16 लाख से ज्यादा मतदाता हैं। अब देखना यह है कि भाजपा और कांग्रेस के हाथों में रहने वाली यह सीट इस बार अपने गौरव को बचाकर रख पाती है या नहीं ? 1980 से इस सीट की खासियत यह रही है कि जो यहां से एक बार जीता उसे यहां के लोगों ने दोबारा काम करने का मौका जरूर दिया है। 1980 में कांग्रेस के एचकेएल भगत 1980 से 1991 तक यहां के सांसद रहे। इसके बाद बारी आई भाजपा की 1991 में पूवी दिल्ली के लोगों ने भाजपा के नेता बीएल शर्मा `पेम' को संसद का रास्ता दिखाया। फिर क्या था, वह भी 1991 से 97 तक दो बार संसद पहुंचे। उसके बाद भाजपा के लाल बिहारी तिवारी 1997 से 2004 तीन बार सांसद चुने गए। पूवी दिल्ली की दस विधानसभा सीटों में से सबसे ज्यादा 5 सीटें आम आदमी पाटी के पास हैं। दूसरे नंबर पर भाजपा तीन सीटों के साथ है तो कुल 70 सीटों में से 8 सीटों पर सिमट गई कांग्रेस को दो सीटें ही मिल पाईं। पूवी दिल्ली के जातीय समीकरण पर एक नजर डालें तो मुस्लिम मतदाताओं की संख्या 15 फीसदी से कुछ ज्यादा है और ओखला, कृष्णानगर, गांधीनगर और शाहदरा में इनकी उपस्थिति काफी मजबूत है। इसके बाद दूसरे नंबर पर दलितों की संख्या हैं जो लगभग 14.82 फीसदी है जबकि पंजाबी थोड़ा ही कम है यानी 14.35 फीसद। संदीप दीक्षित कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की टीम का हिस्सा है और वह कांग्रेस के पवक्ता भी हैं। क्षेत्र से जुड़े रहे हैं और काम भी किया है। भाजपा पत्याशी महेश गिरी रविशंकर की आर्ट ऑफ लिविंग के सदस्य हैं। वैसे तो राजनीति में नए हैं लेकिन क्षेत्र में वह पिछले दो साल से समाज सेवा के माध्यम से जुड़े हुए हैं। आप उम्मीदवार राज मोहन गांधी  पहले भी चुनाव में एक बार भाग्य आजमा चुके हैं। जब उन्होंने 1989 में अमेठी से राजीव गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा था और हार गए थे। राजमोहन भी अपनी नैया केजरीवाल के सहारे पार करना चाहते हैं। भाजपा की सबसे बड़ी आस मोदी की लोकपियता से है। देखें किस करवट ऊंट बैठता है? बहुजन समाज पाटी के पत्याशी शकील सैफी भी मैदान में हैं।

Friday 28 March 2014

एन श्रीनिवासन बड़े बेआबरू होकर निकले हम तेरे कूचे से

अकेले राजनेता ही ऐसे नहीं होते जो हर हाल में गंभीर से गंभीर आरोप लगने के बाद भी कुसी से चिपके रहते हैं, हमारे खेलों के मठधीश भी इसी श्रेणी में आते हैं। आप बीसीसीआई अध्यक्ष एन श्रीनिवासन का ही केस ले लीजिए। आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले में वह फंसे हुए हैं। तमाम आरोपों के बावजूद वह अपनी कुसी छोड़ने को तैयार नहीं हैं। सुपीम कोर्ट मंगलवार को मुदगल कमेटी की रिपोर्ट पर सुनवाई कर रहा था। जस्टिस एके पटनायक की बेंचों ने जिस तरह श्रीनिवासन को फटकार लगाते हुए पद छोड़ने और ऐसा न करने की स्थिति में इस संदर्भ में आदेश जारी करने की बात कही, उसके बाद तो यह चाहिए था कि वह तत्काल त्याग पत्र दे देते। कुसी से चिपके रहना और कोई घपला सामने आ जाने पर खुद से ही खुद की जांच बिठाकर खुद को निर्देष घोषित कर देना नेताओं का ही नहीं, हमारे देश की खेल संस्थाओं के आलाकमान का भी पिय युगल बन गया है। बीसीसीआई के पेसिडेंट श्रीनिवासन की निर्लज्ज जिद देखते हुए आखिरकार जस्टिस पटनायक की बेंच को कहना पड़ा कि सट्टेबाजी और स्पॉट फिक्सिंग की निष्पक्ष जांच के लिए यह जरूरी है कि वह अपने पद से फौरन हट जाएं। कोर्ट ने साफ कहा है कि श्रीनिवासन अगर अपनी मजी से ऐसा नहीं करते तो वह इसके लिए आदेश जारी करेगा। कहा तो यही जा रहा था कि श्रीनिवासन को अगर कोई हटा सकता है तो वह सिर्फ सुपीम कोर्ट ही है। भारत के किकेट पशासन पर अपनी पकड़ उन्होंने दूसरी बार निर्विरोध अध्यक्ष बनकर दिखा दी। इसके पहले उन्होंने बीसीसीआई के संविधान में संशोधन तक करवाकर अपने दूसरी बार अध्यक्ष चुने जाने तक का रास्ता साफ करवा दिया क्योंकि बीसीसीआई के संविधान के मुताबिक मौजूदा अध्यक्ष दूसरी बार चुनाव नहीं लड़ सकता था। उन्होंने बीसीसीआई की पैसे की ताकत का इस्तेमाल करके अंतर्राष्ट्रीय किकेट काउंसिल  (आईसीसी) के नियम में भी बदलाव करा दिया और आईसीसी के अगले अध्यक्ष का चुनाव भी जीत लिया। यह सब उन्होंने तब किया जब आईपीएल में सट्टेबाजी और स्पॉट फिक्सिंग के मामले में उनके दामाद और उनकी टीम ने चेन्नई सुपर किंग्स के कर्ताधर्ता गुरुनाथ मयप्पन जांच के घेरे में हैं। अब सुपीम कोर्ट ने उनकी इस बेरोक द़ैड पर लगाम लगा दी है और आईपीएल में सट्टेबाजी और स्पॉट फिक्सिंग के मामले में सुपीम कोर्ट द्वारा बनाई गई जस्टिस मुकुल मुदगल कमेटी ने फरवरी में सौंपी अपनी रिपोर्ट में बीसीसीआई पेसिडेंट और चेन्नई सुपर किंग्स के मालिक श्रीनिवासन के दामाद गुरूनाथ मयप्पन और कुछ किकेट खिलाड़ियों के नाम उजागर किए तो इस रिपोर्ट में इतनी संगीन सूचनाएं मौजूद हैं कि उनकी तह तक जाने का काम श्रीनिवासन के पद पर रहते हुए संभव ही नहीं है। बीसीसीआई  के कोड ऑफ कंडक्ट का पालन करना तो दूर, श्रीनिवासन एंड कंपनी ने बेहद मनमाने ढंग से पूरा कारोबार ही अपने हाथ में ले लिया था। गौरतलब है कि अपने दामाद की गिरफ्तारी के बाद श्रीनिवासन ने बीच में कुछ दिनों के लिए अपना पद छोड़ दिया था, लेकिन फिर खुद ही खुद को निर्देष बताते हुए बेशर्में की तरह दोबारा कुसी पर आ गए। यदि श्रीनिवासन अपने पद पर बने रहते हैं तो न केवल किकेट की सबसे बड़ी संस्था की जगहंसाईं होगी बल्कि सट्टेबाजी और स्पॉट फिक्सिंग जैसे गंभीर आरोपों को भी दबा दिया जाएगा। रही एन श्रीनिवासन की बात तो यही कहा जाएगा कि बड़े बेआबरू होकर निकले तेरे कूचे से।

-अनिल नरेंद्र 

पंजाब का सबसे रोचक मुकाबलाः अरुण जेटली बनाम कैप्टन अमरिंदर सिंह

भारतीय जनता पाटी के राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली आए तो थे अमृतसर को भाजपा का एक मजबूत और सुरक्षित मिला उम्मीदवार मानकर लेकिन कांग्रेस ने उनके सामने कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसे मजबूत उम्मीदवार को मैदान में उतारकर डगर आसान रहने नहीं दी। अगर डगर मुश्किल जेटली की हुई है तो कैप्टन अमरिंदर सिंह का भी अब भविष्य दांव पर लग गया है। पहले कैप्टन ने अमृतसर से चुनाव लड़ने से मना कर दिया था पर कांग्रेस आलाकमान (सोनिया और राहुल) के आदेश के बाद उनको मैदान में कूदना पड़ा। दरअसल अमृतसर सीट से कांग्रेस को जेटली के खिलाफ एक मजबूत और कद्दावर उम्मीदवार की तलाश थी तथा इस संबंध में हाईकमान ने कैप्टन को बठिंडा या अमृतसर से चुनाव लड़ने को कहा था लेकिन उन्होंने इससे यह कहते हुए इंकार कर दिया कि वह इन्हीं सीटों तक बंध कर रह जाएंगे तथा पटियाला से चुनाव लड़ रही अपनी पत्नी और विदेश राज्य मंत्री परनीत कौर के अलावा राज्य में पाटी के लिए चुनाव पचार नहीं कर सकेंगे। बताया जाता है कि राज्य में पाटी की स्थिति देखते हुए हाईकमान ने कैप्टन को अमृतसर सीट से चुनाव लड़ने के लिए मना लिया। कैप्टन की उम्मीदवारी की घोषणा होते ही अमृतसर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में खुशी की लहर दौड़ गई। पाटी के स्थानीय नेता जुगल किशोर शर्मा ने कहा कि कैप्टन की उम्मीदवारी की घोषणा के बाद जिला इकाई में अंदरूनी कलह भी समाप्त हो गई तथा सभी एकजुट होकर उन्हें भारी अंतर से विजयी बनाने में जुट जाएंगे। अमृतसर सीट के 1957 से 2009 तक के लोकसभा चुनाव परिणामों पर नजर डालें तो यहां कांग्रेस का ही दबदबा रहा है। वर्ष 1951, 1957, 1962, 1971, 1985, 1992, 1996, 1999 के चुनावों में यहां से आठ बार कांग्रेस विजयी रही जबकि 1998, 2004 और 2009 में यहां से भारतीय जनता पाटी तथा वर्ष 1967 और 1977 के दो अन्य चुनावों में यहां से अन्य दल विजयी रहे। अमृतसर की सियासत में अचानक बदले परिदृश्य ने एकाएक आए परिवर्तन में अरुण जेटली की राह मुश्किल बना दी है। एक तो यहां भी पदेश भाजपा में गुटबाजी चल रही क्योंकि एक ओर पदेश भाजपा अध्यक्ष कमल शर्मा स्वयं अमृतसर सीट के दावेदार थे। बादल भी स्वयं अमृतसर सीट के दावेदार थे। बादल भी चाहते थे कि कमल शर्मा इस क्षेत्र से पत्याशी हों। यही कारण है कि इस सीट पर नवजोत सिंह सिद्धू को अलग किया गया परंतु कमल शर्मा की बजाय भाजपा हाईकमान ने यहां जेटली को भेज दिया। पदेश भाजपा की गुटबाजी का पभाव अमृतसर सीट पर अवश्य पड़ेगा। यह और बात है कि जेटली जैसे राष्ट्रीय स्तर के नेता के सामने आने से कोई खुलकर विरोध नहीं कर पाए। अमृतसर संसदीय सीट पर गौर करें तो यहां हिंदू-सिखों का आंकड़ा औसत 65-35 के लगभग है। नौ में से चार शहरी विधानसभा सीटों को छोड़कर शेष पांच विधानसभा क्षेत्र ग्रामीण हैं। सिख बहुल क्षेत्रों में जेटली को अकाली मतों पर निर्भर होना पड़ेगा क्योंकि शहरों में भाजपा का आधार तो है परंतु गठबंधन सरकार की शहर विरोधी नीतियों के कारण शहरी मतदाता भाजपा से कटा हुआ है।  अजनाला विधानसभा क्षेत्र में ईसाई संपदाय के कुछ वोट हैं जो हमेशा ही कांग्रेस और अकालियों के मध्य बंटता रहा है। सिद्धू के समर्थक जेटली को टिकट देने के फैसले से नाराज हैं। इसका खामियाजा भी जेटली को भुगतना पड़ेगा। दूसरी ओर कैप्टन अमरिंदर कांग्रेसियों में लोकपिय हैं और वह राज्य के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। अमृतसर के लगभग सभी पूर्व और वर्तमान कांग्रेसी विधायक उनके खेमे में हैं। अमृतसर बार एसोसिएशन के आमंत्रण पर सोमवार को वकीलों का समर्थन मांगने बार रूम पहुंचे। अरुण जेटली को कांग्रेस समर्थक वकीलें के विरोध का सामना करना पड़ा। इतना ही नहीं उनके सामने ही उनके विरोधियों ने कांग्रेस और कैप्टन अमरिंदर सिंह जिंदाबाद के नारे लगाए। अमरिंदर सिंह ने जेटली पर उनकी मजबूर और मजबूत नेता वाली टिप्पणी को लेकर निशाना साधते हुए कहा कि मजबूत नेता पधानमंत्री बनने की अपनी गुप्त महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सीट नहीं मांगते। जवाबी हमला करते हुए अरुण जेटली ने उन्हें अमृतसर में बाहरी बताने के लिए कैप्टन पर हमला बालते हुए सवाल किया कि उनकी पाटी पमुख सोनिया गांधी किस पदेश से आती हैं? जेटली ने कहा कि पंजाब में मेरी पैतृक जड़ें होने के बाद कैप्टन साहिब ने मुझे बाहरी और छद्म पंजाबी करार दिया। कृपया वह मुझे यह बताएंगे कि श्रीमती सोनिया गांधी भारत के किस  पदेश की हैं

Thursday 27 March 2014

हरीश रावत बनाम सतपाल महाराज ः दांव पर उत्तराखंड सरकार

पौड़ी के सांसद सतपाल महाराज का कांग्रेस छोड़ना और भाजपा में शामिल होना उत्तराखंड की सियासत में खासा महत्व रखता है। सतपाल महाराज के भाजपा में शामिल होने से उत्तराखंड के सियासी समीकरण बदल गए हैं। हरीश रावत की कांग्रेस सरकार को खतरा पैदा हो गया है। सतपाल महाराज के कई आदमी कांग्रेस के विधायक हैं और समय आने पर पाला बदल सकते हैं। हालांकि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत ने रविवार को कहा कि कांग्रेस पाटी एकजुट है और न तो उनकी सरकार को कोई खतरा है और न ही पाटी की एकजुटता को। आने वाले चुनाव में भाजपा को पूरी ताकत से शिकस्त देने को पाटी तैयार है। पाटी के कुछ बड़े नेताओं का मानना है कि महाराज के कांग्रेस छोड़कर जाने से पाटी में लंबे समय से चली आ रही अंतर्कलह पर विराम लग जाएगा और गुटबाजी भी थमेगी। जब हरीश रावत से इस बाबत पूछा गया तो उन्होंने कहा, हमें अब यह देखना होगा कि चुनाव में भाजपा को किस पकार हराया जाए। महाराज के जाने के बाद पूरी पाटी के नेताओं तक कार्यकर्ताओं ने एक-जुटता का परिचय दिया है। मजेदार बात यह है कि अब तक एक-दूसरे के सियासी दुश्मन नजर आ रहे उत्तराखंड के दो सबसे पसिद्ध प़ड़ोसी हरीश रावत और पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा सतपाल महाराज के पाटी छोड़कर जाने के बाद इकट्ठे दिखाई दे रहे हैं। लंच डिप्लोमेसी के तहत बाजीपुर गेस्ट हाउस में निवास कर रहे रावत नजदीक ही रहने वाले अपने पड़ोसी बहुगुणा के घर गए जहां उनके बीच वर्तमान सियासी हालात पर लंबी चर्चा हुई। इस भोज के दौरान करीब 13 कांग्रेसी विधायक भी शामिल हुए जिनमें ज्यादातर बहुगुणा समर्थक विधायक थे। कांग्रेस के पदेश अध्यक्ष यशपाल आर्य भी  इस भोज में शामिल हुए। भोज के बाद रावत उत्साहित दिखे और उन्होंने कहा कि हम एकजुट हैं और आगे भी रहेंगे। दूसरी तरफ महाराज की पत्नी और  पदेश की पर्यटन मंत्री अमृता रावत ने भी एक सकारात्मक बयान देकर इस बात की पुष्टि की कि वह कांग्रेस छोड़कर नहीं जा रही हैं। पाटी सूत्रों के मुताबिक अमृता का यह बयान बहुत सकारात्मक है और इससे यह संदेश भी है कि पाटी में कलह का दौर थम जाएगा। महाराज के पाटी छोड़ने का मुख्य कारण हरीश रावत और उनके बीच वर्षें से  चली आ रही पतिद्वंद्वता को माना जा रहा है। 2002 में रावत के पदेश का मुख्यमंत्री न बन पाने का मुख्य कारण महाराज ही थे। महाराज के विरोध की वजह से मुख्यमंत्री की कुसी रावत के हाथ से फिसलकर नारायण दत्त तिवारी के पास चली गई थी। रावत को दूसरा झटका 2012 में लगा जब एक बार फिर उनके हाथ से कुसी छिनकर विजय बहुगुणा के पास चली गई। रावत ने कहा, हमने जो खोना था, वह खो दिया है पर हम अब अपना पूरा ध्यान पदेश के विकास और आगामी चुनाव में पांचों सीटों को जीतने में लगाएंगे। दूसरी तरह सतपाल महाराज के भाजपा में आने से भाजपा में नई ऊर्जा आ गई है। अब उनका निशाना 5 लोकसभा सीटों पर तो है ही साथ-साथ उत्तराखंड में अपनी सरकार बनाने की उम्मीदें भी जगी हैं। आने वाले दिन दोनों पक्षों के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।

-अनिल नरेन्द्र

नरेन्द्र मोदी का मिशन 272+ बनाम राजनाथ सिंह का गुप्त मिशन

लोकसभा चुनाव मेरी राय में मोदी बनाम बाकी बन गया है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, अन्नाद्रमुक व आम आदमी पार्टी सभी नरेन्द्र मोदी से लड़ रहे हैं, और कोई मुद्दा ही नहीं नजर आ रहा इस चुनाव में। नरेन्द्र मोदी अपने मिशन 272+ पर दिन-रात लगे हुए हैं। पिछले कुछ दिनों से जो पो मोदी हवा देश में बनी थी उसकी तीव्रता कम हुई है। इसका सबसे बड़ा कारण खुद भारतीय जनता पार्टी ही है। पाटी में टिकटों को लेकर बंटवारे से पैदा हुए असंतोष, निष्ठावान बुजर्ग नेताओं की बेइज्जती इत्यादि के कोहराम से मोदी के मिशन 272+ के पन्चर होने का खतरा पैदा हो गया है। पाटी नेतृत्व खासकर अध्यक्ष राजनाथ सिंह के फैसलों ने भाजपा की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। पंजाब में गुब्बार फटने से लगी आग भाजपा की बढ़ती परेशानी का एक नमूना है। यूपी में सड़कों पर फट रहे कार्यकर्ताओं के गुब्बार की आंच मिशन मोदी के पसीने छुड़ाती दिख रही है। जिन्हें विरोधी सेनाओं से मोर्चा लेने के लिए समर भूमि पर दिखना चाहिए लेकिन वे नेतृत्व के फैसले से क्षुब्ध होकर घर बैठ गए हैं। सवाल उठ रहा है कि पार्टी अध्यक्ष ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्या भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह की नजर पधानमंत्री पद पर है? राजनाथ सिंह ने कई ऐसे कदम उठाए हैं इससे तो यही लगता है। हालांकि वह खुल कर तो कुछ नहीं बोल रहे पर उनके ट्वीट इत्यादि से कुछ अर्थ निकाले जा रहे हैं। मन की बात जुबां पर आ ही जाती है। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह के साथ सोमवार को ऐसा ही हुआ। देश भर में जो भाजपा के बैनर-पोस्टर लगे हैं उन पर केवल मोदी की तस्वीर है वहीं अलग-अलग मुद्दों पर एक ही नारा लिखा गया है ः अब की बार मोदी सरकार। राजनाथ के ट्विटर हैंडल से सोमवार को दोपहर 117 बजे एक पोस्टर पोस्ट किया गया। जिसमें लिखा था ः अबकी बार भाजपा सरकार। तस्वीर भी मोदी की जगह राजनाथ की लगी हुई थी। विश्लेषण जिस तरह के आ रहे हैं-लगता है कि भाजपा और उसके अध्यक्ष को कुछ ही देर में समझ में आ गई है कि बात और तस्वीर दोनों ही हजम नहीं हो रही है। 33 मिनट बाद ही 150 बजे ट्विटर से पहले वाला पोस्टर हटा दिया गया और पुराना मोदी की तस्वीर और वही नारे वाला पोस्टर आ गया ः अबकी बार मोदी सरकार। दरअसल राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि पार्टी ने मोदी को पधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया है लेकिन राजनाथ सिंह की नजरें भी पीएम की कुर्सी पर हैं। वैसे भी इन दिनों भाजपा में तीन पीएम पद के उम्मीदवार हैं ः एक घोषित (नरेन्द मोदी), एक वेटिंग (लाल कृष्ण आडवाणी) और एक हिडन (यानि राजनाथ सिंह)। राजनीतिक जानकारों की माने तो राजनाथ सिंह नरेन्द्र मोदी को आगे रखकर खुद को पीएम बनाने के लिए भी गुप्त मिशन चला रहे हैं। यदि पार्टी और गठबंधन को लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है और मोदी के नाम पर सहमति नहीं बन पाती है तो कोई आश्चर्य नहीं होगा कि राजनाथ सिंह सर्वसम्मत पीएम पद के उम्मीदवार के रूप में खुद को आगे कर दें। चर्चा यह भी है कि राजनाथ ने इस संबंध में कुछ दलों, कुछ नेताओं से बात भी कर रखी है। मानो या न मानो कहीं न कहीं राजनाथ सिंह के मन में पधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षाएं पल रही हैं। एक सन्त ने उन पर मोदी के खिलाफ साजिश रचने का आरोप भी लगाया था। श्री लाल कृष्ण आडवाणी राजनाथ सिंह की चाल को समझ गए कि कैसे उन्हें राजनीतिक दृश्य से हटाने की कोशिश की गई। कहीं मोदी के मिशन 272+ पर राजनाथ सिंह भारी न पड़ जाएं

Wednesday 26 March 2014

बिहार की सेलिबेटी सीट पटना साहिब में शत्रु की पतिष्ठा दांव पर

बिहार के पटना साहिब का नाम आते ही गुरु गोविंद सिंह की परम पावन नगरी की याद आ जाती है। परिसीमन के बाद बने इस नए संसदीय क्षेत्र में पटना का मुख्य शहरी क्षेत्र शामिल है। 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में शत्रुघ्न सिन्हा और शेखर सुमन जैसे सेलिबेटी उम्मीदवारों के बीच टक्कर से यह सीट चर्चित हुई थी। उस चुनाव में शत्रुघ्न ने जीत दर्ज की थी। लेकिन तब भाजपा और जद-यू का गठबंधन था। इस बार दोनों अलग हो चुके हैं। 17 अपैल को होने वाले चुनाव में दोनों दलों के उम्मीदवार एक-दूसरे को टक्कर देंगे। इस बार भी पटना साहिब से भाजपा के उम्मीदवार शत्रुघ्न सिन्हा ही हैं जबकि जद-यू से पख्यात चिकित्सक डॉ. गोपाल पसाद सिन्हा चुनाव लड़ रहे हैं। कांग्रेस-राजद गठबंधन की ओर से कांग्रेसी उम्मीदवार राज कुमार राजन को बदलकर भोजपुरी फिल्म अभिनेता कृणाल सिंह को मैदान में उतारा गया है। आम आदमी पाटी ने परवीन अमानुल्लाह को उतारा है। कृणाल सिंह ने कहा है कि यह मुकाबला दो सितारों का नहीं बल्कि राजा और रंक का है जिसमें जनता उसी को चुनेगी जो उनके बीच का है। चुनाव पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस बार शत्रुघ्न की पतिष्ठा दांव पर है। पटना पाचीन और मध्यकालीन भारत का पमुख नगर रहा है। न केवल व्यावसायिक, बल्कि ऐतिहासिक और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी इस नगर की चर्चा के बगैर भारत का इतिहास लिखना मुश्किल है। छोटी पटन देवी, पत्थर की मस्जिद और पादरी की हवेली, हिंदू, मुस्लिम और ईसाई धर्में के लोगों के आस्था के केन्द्र रहे हैं। तख्त श्री हरिमंदिर साहब के दर्शन के लिए पटना विश्वभर में पसिद्ध है जहां लाखों लोग माथा टेकने आते हैं। बौद्ध धर्म का भी यह केंद्र रहा है। पटना साहिब राज्य का पमुख व्यापारिक केन्द्र भी रहा है। 1857 के विद्रोह और स्वतंत्रता आंदोलन में भी पटना की पमुख भूमिका रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा-जद-यू गठबंधन ने इस लोकसभा क्षेत्र की छह में से चार सीटों पर कब्जा जमाया था। बख्तियारपुर और घतूहा में राजद का कब्जा था जबकि दीघा में जदöयू आगे रहा। बांकीपुर, कुम्हरार और पटना साहिब में भाजपा के उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है। इस बार गठबंधन टूटने का असर लोकसभा चुनाव पर पड़ सकता है और सारे समीकरण गड़बड़ा सकते हैं। शत्रुघ्न के विरोधियों का कहना है कि यह मुकाबला साम्पदायिक ताकतों और कांग्रेस-राजद और जद-यू जैसे धर्मनिरपेक्ष दलों के बीच है। सड़े हुए माल को बढ़िया पैकेजिंग करके टीवी पर दिखाने से लोग पभावित नहीं होंगे। भोजपुरी अभिनेता कृणाल सिंह ने कहा कि तथाकथित मोदी लहर का जनता पर असर नहीं होने वाला क्योंकि वह भी जानती है कि एक दिन में कोई जादू की छड़ी घुमाकर उनकी तकदीर नहीं बदल सकता। राहुल गांधी युवा हैं और आने वाले समय में बदलाव ला सकते हैं। याद रहे कि बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वर्षें पुराना भाजपा-जद-यू गठबंधन नरेन्द्र मोदी को लेकर ही तोड़ा था। शत्रुघ्न सिन्हा की पतिष्ठा के साथ-साथ नीतीश कुमार की पतिष्ठा भी इस लोकसभा चुनाव से जुड़ी है। पतिष्ठा तो लालू पसाद यादव की भी जुड़ी है। परन्तु पटना साहिब की इस बहुचर्चित सीट पर सभी की नजरें टिकीं हैं।

-अनिल नरेन्द्र

वकास की गिरफ्तारी दिल्ली व राजस्थान पुलिस की बड़ी कामयाबी

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल व राजस्थान पुलिस ने एक बड़ी आतंकी साजिश को नाकाम करते हुए इंडियन मुजाहिद्दीन के चार आतंकियों को गिरफ्तार किया है। अजमेर, जयपुर और जोधपुर में इंडियन मुजाहिद्दीन के चार आतंकियों की गिरफ्तारी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक बड़ी कामयाबी है। दुर्दांत पाकिस्तानी दहशतगर्द वकास की गिरफ्तारी के साथ देश में चार सालों से चल रहे आतंकी धमाकों के गुनहगारें में से एक महत्वपूर्ण कड़ी हाथ आ गई है। बम बनाने में माहिर इस आतंकी के वर्ष 2010 में यहां कदम रखते ही धमाकों का सिलसिला शुरू हो गया था जिसमें दिल्ली की जामा मस्जिद में विदेशी सैलानियों पर हमले के साथ, वाराणसी, बुंबई, पुणे, हैदराबाद में भीड़ वाले इलाकों में विस्फोट की वारदात शामिल होती गई। इस कामयाबी का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यही वकास जो कि पाकिस्तानी है इंडियन मुजाहिद्दीन के सरगना यासिन भटकल का दाहिना हाथ बताया जा रहा है। इस बात पर ज्यादा आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि पकड़े गए आतंकी पढ़े-लिखे हैं। जिया उर रहमान उर्फ वकास ः उम्र 25 वर्ष, शिक्षा ः फैसलाबाद स्थित कालेज से फूड टेक्नालाजी में डिप्लोमा। मोहम्मद महरुफ ः उम्र 21 वर्ष, शिक्षा ः जयपुर में जगतपुरा स्थित विवेकानंद इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालाजी से इंजीनियरिंग का छात्र। मोहम्मद वकार उर्फ हनीफ ः उम्र 21 वर्ष, शिक्षा ः जयपुर में सीतापुर स्थित ग्लोबल इंस्टीट्यूट आफ टेक्नालाजी से इंजीनियरिंग का छात्र। साबिर अंसारी उर्फ खालिद ः उम्र 21 वर्ष, शिक्षा ः कंप्यूटर कोर्स, कंप्यूटर डीटीपी तथा डिजाइनिंग का छात्र। सभी पढ़े-लिखे हैं। दिल्ली पुलिस के सूत्रों के अनुसार पूछताछ के दौरान वकास ने यह भी बता दिया है कि इस चुनावी दौर में उनके निशाने पर केवल नरेन्द्र मोदी ही नहीं थे बल्कि कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी भी रहे हैं। क्योंकि सीमा पार बैठे हुए आतंकी आका दबाब बनाए हुए हैं कि इस चुनावी दौर में कोई बड़ा चुनावी शिकार होना चाहिए। बड़े शिकार का मतलब नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी स्तर के राष्ट्रीय नेता। यह जानकारी मिली है कि वाराणसी में नरेन्द्र मोदी पर नामांकन के दौरान हमले की साजिश रची गई थी। इसके लिए तीन-चार लोकल मोड्यूल तैयार किए गए थे। तैयारी की गई थी कि इनके बालों का मुंडन करा कर मोदी भक्त के रूप में जुलूस में शामिल कर लिया जाए। यह लोग भीड़ के साथ हर-हर मोदी, घर-घर मोदी का नारा लगाते रहेंगे ताकि इन पर किसी को शक न हो। आतंकी आकाओं ने इनके मुंडे सिर पर मोदी के नारे लिखने की योजना बनाई थी ताकि यह साजिश कामयाब हो सके। इस माड्यूल को आत्मघाती दस्ते के रूप में तैयार किया जा रहा था। सुरक्षा एजेंसियों ने कईं कारणों से ज्यादा विस्तार से जानकारी फिलहाल देने से इंकार कर दिया है। बस इतना ही कहा गया है कि वाराणसी की साजिश विफल कर दी गई है। केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने इन चार आतंकियों की गिरफ्तारी को बड़ी सफलता बताया है। शिंदे ने कहा कि पाकिस्तानी आतंकी वकास देश में विभिन्न आतंकी हमलों में वांछित था। हम पिछले आठ-दस दिनें से उस पर नजर रखे हुए थे। हमने कहा था कि जब समय आएगा तब हम इसकी जानकारी देंगे। यह हमारे लिए बड़ी सफलता है। राजस्थान से इन चार आतंकियों को समय रहते पकड़े जाने से एक बड़ा हादसा टल गया है। दिल्ली और राजस्थान पुलिस बधाई की पात्र है।

Tuesday 25 March 2014

दो नायिकाएं और एक खलनायक चंडीगढ़ में दिलचस्प मुकाबला

लोकसभा चुनाव 2014 में जहां पूरे देश का ज्यादा ध्यान वाराणसी जैसी सीटों पर केंद्रित है वहीं कई दिलचस्प मुकाबले दूसरी सीटों पर भी हो रहे हैं। ऐसी ही एक सीट चंडीगढ़ की है जहां एक राजनीतिज्ञ की टक्कर दो सिनेमा की नायिकाओं से हो रही है। रेलवे रिश्वतखोरी मामले में रेल मंत्रालय की कुसी गंवाने वाले कांग्रेस पत्याशी पवन कुमार बंसल के लिए इस बार जीत की राह आसान नहीं है। चंडीगढ़ सीट से चार बार सांसद रह चुके बंसल का मुकाबला महिलाओं से है, जिनमें दो जानी-मानी अभिनेत्रियां हैं। दोनों से उन्हें कड़ी टक्कर मिल रही है। इसके अलावा उन्हें पाटी में भीतरघात से भी निपटना होगा। इस बार बंसल के खिलाफ भाजपा की टिकट पर अनुपम खेर की पत्नी किरण खेर और आप पत्याशी व पूर्व मिस इंडिया गुल पनाग मैदान में हैं। हालांकि पवन बंसल का पलड़ा इस बार भी भारी माना जा रहा है लेकिन जीत के लिए उन्हें कड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। हालांकि रेलवे घूसकांड में फंसने के बाद से उनकी छवि धूमिल हुई है। साथ-साथ  एंटी एनकंबेंसी फैक्मटर से भी उन्हें जूझना पड़ रहा है। मंत्री की कुसी गंवाने के बाद कार्यकर्ताओं से दूरी और तालमेल में कमी बड़ी, कमजोरी साबित हो सकती है। रिश्वत कांड में फंसने के बाद वोटरों में पवन बंसल की छवि खलनायक की बन गई है विपक्ष भी इसी मुद्दे को भुनाने की फिराक में है। दाग लगने के बाद पाटी के कुछ नेता उनकी उम्मीदवारी का विरोध कर रहे थे। सूचना एवं पसारण मंत्री मनीष तिवारी भी यहां से टिकट चाहते थे। किरण खेर और गुल पनाग बाहर से आई हैं लेकिन वह चंडीगढ़ में पली-बढ़ी हैं और उनकी बहन यहां रहती हैं। इसी आधार पर किरण खेर खुद को स्थानीय साबित करने में जुटी हैं। चंडीगढ़ भाजपा अध्यक्ष संजय टंडन, पूर्व सांसद सत्यपाल जैन और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरमोहन धवन टिकट न मिलने से नाराज हैं। राजनीति में नई और संगठन चलाने का उन्हें कोई अनुभव नहीं है। चुनावी तैयारियों के लिए भी उन्हें बस एक महीना ही मिला। बाहरी हाने के मुद्दे पर नाराजगी से निपटना होगा। गुल पनाग को टिकट सविता भट्टी द्वारा आप का टिकट मना करने के बाद मिला है। सर्वे में यहां से आप को आगे बताने के बाद उनके हौसले बुलंद हैं। उनके पिता चंडीगढ़ में रहते हैं, हालांकि खुद वे मुंबई में रहती हैं। इसलिए इस मुद्दे से पार पाना उनके लिए भी मुश्किल हो सकता है। 35 वर्ष की युवा अभिनेत्री के लिए पसिद्धी को वोट में बदलना आसान नहीं होगा। राजनीति में नई हैं और इनकी पूरी समझ भी नहीं है। चुनाव से ऐन पहले उम्मीदवार बदलने पर पाटी में उपजे हालात  और टिकट पाने में नाकाम लोगों से निपटने की चुनौती उनके सामने है। पैराशूट पत्याशी होने के चलते पाटी के भीतर और बाहर के विरोध का सामना करना पड़ रहा है। चंडीगढ़ की कुल आबादी 11.9 लाख है और 5.87 लाख कुल वोटर हैं। इनमें 2.65 लाख महिलाए हैं और 3.22 लाख पुरूष हैं। कुल मिलाकर चंडीगढ़ में दिलचस्प मुकाबला देखने को मिलेगा।

-अनिल नरेंद्र

श्रीपकाश जायसवाल और डा. मुरली मनोहर जोशी की भिड़ंत

उत्तर पदेश का सबसे बड़ा शहर है कानपुर। कानपुर इस बार वाराणसी, आजमगढ़ के बाद सबसे पतिष्ठित सियासी लड़ाई का चुनावी क्षेत्र बन गया है। वाराणसी से भाजपा के दिग्गज नेता डा. मुरली मनोहर जोशी के वाराणसी से अपनी पाटी के पीएम पत्याशी नरेंद्र मोदी के लिए हटने पर मजबूर होने के बाद कानपुर से चुनाव लड़ रहे हैं। राजनीति में कानपुर का अपना ही मिजाज है। कानपुर के मिजाज में है सांसदों की हैट्रिक बनाना और अब तक तीन सांसदों ने बनाई है तिकड़ी। चार बार निर्दलीय सांसद चुनने वाला कानपुर शायद पूरे देश में अकेला शहर होगा। उत्तर पदेश के सबसे बड़े शहर की तकलीफें भी ब़ढ़ी हैं। गंदगी, बदहाल सड़कें, उद्योग, ट्रैफिक जाम, रोजगार के कम होते अवसर और बिजली संकट। लेकिन इनसे जूझते हुए भी शहर बार-बार अपने नेताओं को मौका देता  रहा है। तीन बार से कानपुर कांग्रेस के श्रीपकाश जायसवाल को चुन रहा है। इस बार बीजेपी के डा. मुरली मनोहर जोशी के यहां से उतरने से मुकाबला दिलचस्प हो गया है। 1857 की आजादी की पहली लड़ाई के रणबांकुरे रानी झांसी, तात्या टोपे और पेशवा का यह शहर आजादी की लड़ाई के लिए पसिद्ध है। चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह जैसे कांतिकारियों ने कानपुर के डीएवी हास्टल में रह कर अपनी कांतिकारी गतिविधियां संचालित कीं। गणेश शंकर विद्याथी और हसरत मोहानी इस शहर की पखर पहचान रहे हैं। कभी एशिया के मैनचेस्टर कहे जाने वाले इस शहर के उद्योगें की दयनीय हालत हो गई है। 2009 के लोकसभा चुनाव में श्रीपकाश जायसवाल को 2,14,988 (41.92 फीसदी) वोट मिले और भाजपा के सतीश महाना को 1,96,082 (38.23 फीसदी) वोट ही मिल पाए। इस तरह कुल 18,906 वोटों से ही जायसवाल चुनाव जीत पाए थे जायसवाल लोकल हैं, इनका जन्म 25 सितंबर 1944 को कानपुर में ही हुआ। 2011 में केंद्र सरकार में कोयला विभाग के कैबिनेट मंत्री बनने के बाद वह कोयला ब्लाक आवंटन मामले में लगातार विवादों में रहे हैं। पत्याशी बनने के बाद पहली बार शहर आए डा. मुरली मनोहर जोशी ने पहली ही अपनी सभा में श्रीपकाश जायसवाल पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि लोक लेखा समिति का अध्यक्ष रहते जिनके घोटाले की जांच की, सोचा न था कि उसके खिलाफ चुनाव लड़ना पड़ेगा। नगर संसदीय सीट से पत्याशी बनने के बाद पहली बार शहर आए डा. जोशी का जाजमऊ, गंगापुल पर कार्यकर्ताओं ने जोरदार स्वागत किया। डा. जोशी ने स्थानीय दिग्गजों व भाजपा नेताओं से अपने मित्रवत रिश्तों का जिक करते हुए कहा कि वह सैकड़ों बार इस शहर में आए और इन्हीं लोगों के घर को अपना मान सकते थे। बसपा और सपा उम्मीदवारों के उतरने से चुनाव तकड़ा बन गया है। पर मुख्य मुकाबला डा. साहिब और जायसवाल के बीच है। डा. साहिब अपनी शख्सियत और मोदी लहर पर सवार हैं। दूसरी तरफ श्रीपकाश जायसवाल को एक तरफ कोयला घोटाले और कांग्रेस विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है। देखें, ऊंट किस करवट बैठता है

Sunday 23 March 2014

चांदनी चौक हॉट सीट बन गई है, रोमांचक मुकाबला है

राजधानी की चांदनी चौक लोकसभा सीट आगामी चुनाव में सबसे हॉट सीटों में से एक बन गई है, यह कहना गलत न होगा। वाराणसी की सीट के बाद सभी का ध्यान चांदनी चौक पर टिका हुआ है। कारण है यहां से खड़े कांग्रेस-भाजपा के उम्मीदवार। भारतीय जनता पाटी ने इस सीट पर अपने पदेश अध्यक्ष डॉ. हर्षवर्धन को उतारा है तो कांग्रेस ने अपने कद्दावर नेता व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल को उतारा है। कपिल सिब्बल ने 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में पाटी को इस क्षेत्र से जीत दिलाई है। आम आदमी पाटी ने आईबीएन7 के पूर्व पत्रकार आशुतोष को मैदान में उतारा है। चांदनी चौक सीट के कुछ जरूरी आंकड़े। 1956 में वजूद में आई चांदनी चौक संसदीय क्षेत्र के अधीन आती थीं 8 मेट्रोपॉलिटन काउंसिल सीटों पर 1993 में विधानसभा के गठन के बाद इस सीट के अंतर्गत 6 विधानसभा सीटें पहाड़गंज, मटिया महल, बल्लीमारान, चांदनी चौक, मिंटो रोड और राम नगर शामिल की गई। 2008 में परिसीमन के बाद इस संसदीय सीट में दस विधानसभा सीटें शामिल हो गईं। यहां पर कुल मतदाता हैं 14,13,535। इनमें 7,83,545 पुरुष हैं और 6,29,990 महिलाएं। इस सीट से अब तक चुने गए 14 सांसदों में 9 कांग्रेसी रहे हैं। इनमें सिब्बल 2004 और 2009 में चुने गए। पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष जेपी अग्रवाल 1984, 1989 और 1996 में इसी सीट से सांसद बने। विधानसभा सीटों में दस सीटों में चार पर आप पाटी, तीन पर भाजपा और दो पर कांग्रेस और एक सीट पर जदयू (शोएब इकबाल) विधायक हैं। इस बार बहुजन समाज पाटी ने नरेंद्र पांडेय को टिकट दिया है। चांदनी चौक संसदीय क्षेत्र में तीनों चेहरों के बीच जबरदस्त टक्कर देखने को मिलने की संभावना है। इस क्षेत्र में व्यापारी वर्ग की काफी संख्या है। पिछले दस सालों में इस वर्ग ने कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल को जिताकर संसद पहुंचाया है। कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के महासचिव पवीण खंडेलवाल का कहना है कि इस सीट पर कांग्रेसी उम्मीदवार कपिल सिब्बल और भाजपा पत्याशी डॉ. हर्षवर्धन के बीच सीधा मुकाबला है। वे कहते हैं कि आप के आशुतोष और बसपा के नरेंद्र पांडेय रेस में कहीं भी नहीं हैं। इस सीट पर 30 से 35 पतिशत व्यापारी वर्ग रहता है। किसी भी सांसद की जीत में इनकी निर्णायक भूमिका रहती है। खंडेलवाल ने कहा कि इस सीट पर वही उम्मीदवार जीत सकता है जो व्यापारियों के हित की बात करेगा। दिल्ली विधानसभा चुनाव में व्यापारियों ने कांग्रेस और भाजपा दोनों को ठेंगा दिखाते हुए आप का समर्थन किया था लेकिन अरविंद केजरीवाल के कारनामों से यहां के व्यापारी वर्ग का आप से मोहभंग हो गया है। कांग्रेस के महाघोटालों, महंगाई से कांग्रेस विरोधी हवा चल रही है। बेशक कपिल सिब्बल यहां से पहले दो बार सांसद रहे हैं पर उन्हें भी एंटी एनकंबेंसी फेक्टर से जूझना पड़ेगा। डॉ. हर्षवर्धन के पति लोगों में हमददी है। उनकी साफ छवि व व्यापारी वर्ग का समर्थन उनके फेवर में जाता है पर पूवी दिल्ली से विधानसभा सीट जीतने के बाद चांदनी चौक में शिफ्ट करने का नुकसान भी भुगतना पड़ सकता है। आशुतोष कोई गंभीर चुनौती नहीं बन पाए हैं। नमो फेक्टर की चांदनी चौक संसदीय क्षेत्र में कोई खास हवा देखने को नहीं मिल  रही। कुल मिलाकर यहां से सिब्बल और हर्षवर्धन में कड़ा मुकाबला होगा।

-अनिल नरेंद्र

मोदी-मुलायम के आने से रोचक हो गई है पूर्वांचल की सियासी जंग

भारतीय जनता पाटी ने नरेंद्र मोदी को वाराणसी सीट से उम्मीदवार बनाकर पूर्वांचल की माटी में गमी पैदा कर दी है और रही-सही कसर समाजवादी पाटी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने बनारस से ही सटी आजमगढ़ सीट से उम्मीदवार बन कर पूरी कर दी है। राजनीति के धुरंधर माने जाने वाले इन दोनों खिलाड़ियों के रणकौशल  की परख इस बार पूर्वांचल की धरती पर ही हो जाएगी। भाजपा के वरिष्ठ नेता डॉ. मुरली मनोहर जोशी पिछले चुनाव में बनारस से लगभग 17 हजार मतों के अंतर से जीते थे और उन्होंने पूर्वांचल के बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी को हराया था। मोदी का बनारस से लड़ने का भदौली, गाजीपुर, बलिया, आजमगढ़, जौनपुर, मिर्जापुर, भदोही सहित करीब आधा दर्जन से ज्यादा सीटों पर इसका पभाव पड़ेगा और कभी भाजपा को सबसे अधिक सीटें देने वाला पूर्वांचल एक बार फिर मोदी के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। मोदी और भाजपा की इस रणनीति को देखते हुए समाजवादी पाटी ने भी मुलायम सिंह को बनारस की बजाय आजमगढ़ लोकसभा सीट से चुनाव मैदान में उतारा है। आखिरकार आजमगढ़ से ही क्यों लड़ना चाहते हैं चुनाव मुलायम सिंह यादव? नरेंद्र मोदी का पभाव कम करने के लिए वह मैदान में उतर रहे हैं या इसके साथ-साथ पारिवारिक कारणों ने भी उन्हें पूर्वांचल जाने के लिए पेरित किया। क्या सपा मुखिया अपने छोटे बेटे पतीक यादव के लिए राजनीतिक जमीन तैयार कर रहे हैं? पूर्वांचल यदि राजनीति की उपजाऊ जमीन है तो मुलायम सिंह के आजमगढ़ से लड़ने के फैसले ने यहां उसकी फसल लहलहा दी है तो कई दिनों से चर्चाओं का जो बाजार गर्म था, मंगलवार को हुई घोषणाओं ने उस पर मुहर लगा दी। इलाहाबाद से पूर्वांचल  की ओर बढ़ने पर बनारस के बाद आजमगढ़ सदर वह अकेली सीट है जो भाजपा के कब्जे में है। वहां से सांसद रमाकांत यादव का अपना विशिष्ट आभामंडल है लेकिन कभी वह मुलायम के शिष्य रह चुके हैं और गुरू के सामने उनको कठिनाई तो होनी है। यादव-मुस्लिम बहुल आजमगढ़ के चयन के पीछे वहां के जातीय-धार्मिक समीकरण एक कारण हो सकता है लेकिन पाटी सूत्रों के मुताबिक पारिवारिक मतभेदें को कम करना भी  एक कारण है। मुस्लिम समाज हालांकि सपा से नाराज है लेकिन व्यक्तिगत तौर पर मुलायम की छवि मुसलमानों के बीच अच्छी है और इसी के फायदे की उम्मीद से वह यहां चुनावी दंगल में कूदे हैं। मुलायम के आजमगढ़ आने से सारे समीकरण बदल गए हैं। उधर हर-हर महादेव के जयघोष के साथ ही काशी में हर-हर मोदी, घर-घर मोदी का नारा जारी है। गुजरात के सोमनाथ से बाबा विश्वनाथ तक के पतीकात्मक कदम से भाजपा के पीएम पद के पत्याशी नरेंद्र मोदी ने अपनी खाटी हिंदुत्व की पहचान को ओर गाढ़ा किया है। हिंदू संस्कृति के उद्गम केंद्र  कहे जाने वाले बनारस से ताल ठोंक रहे संघ पोस्टर ब्वॉय से बनारस का मुस्लिम तबका आशंकित या भयभीत न हो, इसका भी इंतजाम मोदी कर रहे हैं। खासी तादाद में यहां मौजूद मुस्लिमों के बीच मोदी को लेकर फैली भ्रांतियों को दूर करने के लिए गुजरात के आम व रईस मुस्लिम बनारस से जुड़ने लगे हैं। वे बनारस के मुस्लिम तबके को गुजरात के मुसलमानों की अपनी आर्थिक, माली हालत और सामाजिक सुरक्षा की गाथा सुनाएंगे। गंगा के तट पर बसी देश की सांस्कृतिक राजधानी से भाजपा के पधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद मोदी को लड़ाने का फैसला बेहद सुविचारित रणनीति के तहत ही लिया गया है। संघ नेतृत्व का भी मानना है कि वाराणसी से नमो को उतारने से सिर्फ पूर्वांचल या उत्तर पदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में भाजपा अपनी विचार धारा के लोगों को संदेश देने में कामयाब रहेगी। अब मोदी इंडिया फर्स्ट और सभी तबकों के विकास जैसे नारों के साथ-साथ सीधे मुस्लिम तबके को भी संबोधित करेंगे। गुजरात के मुस्लिमों की दशा बाकी देश की तुलना में ज्यादा अच्छी बताने और उनके आंकड़े पेश करने का काम मोदी और भाजपा पेश कर रही है। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने मुस्लिमों के बीच जाकर मोदी के पति आशंकाओं को दूर करने की सियासी कोशिशें भी कीं। खासतौर से वाराणसी में मोदी की सर्वग्राही छवि को निखारने के लिए गुजराती मुसलमानों की फौज काशी पहुंचनी शुरू हो गई है। मोदी के कार्यकाल में गुजरात के मुस्लिमों की तरक्की की तस्वीरें और पिछले 12 सालों में कोई सांपदायिक दंगा न होने जैसे तथा बनारस के मुसलमानों को बताए जाएंगे। कुल मिलाकर नरेंद्र मोदी और मुलायम सिंह यादव के इलाके से चुनाव लड़ने से पूर्वांचल की सियासी जंग दिलचस्प हो गई है जिसके परिणाम देश की भावी राजनीति पर असर डाल सकते हैं।

Saturday 22 March 2014

विवादों में फंसे जी मीडिया के चैनल

आजकल पसिद्ध न्यूज चैनल विवादों में हैं। एक ही साथ जी न्यूज पर दो मुकदमा दायर हुए हैं। एक मुकदमा टीम इंडिया के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने किया है और दूसरा उद्योगपति नवीन जिंदल द्वारा चुनाव आयोग में न्यूज चैनल के खिलाफ शिकायत संबंधी है। पहले कैप्टन कूल महेन्द्र सिंह धोनी के मामले की बात करते हैं। भारतीय किकेट कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने मंगलवार को मद्रास हाई कोर्ट में दो समाचार चैनलों पर 100 करोड़ रुपए मानहानि का मुकदमा ठेंका। धोनी ने दो न्यूज चैनल जी न्यूज और न्यूज नेशन के खिलाफ मानहानि का केस किया है। आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले में इन दो चैनलों द्वारा उनका नाम घसीटने को लेकर उन्होंने यह कार्रवाई की। अपनी याचिका में धोनी ने कहा कि 11 फरवरी 2014 को मेरे खिलाफ इन चैनलों ने झूठी खबरें पसारित की थीं। इनमें कहा गया था कि मैं मैच सट्टेबाजी स्पॉट फिक्सिंग और मैच फिक्सिंग में शामिल हूं। इन खबरों से मेरी छवि को जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई संभव नहीं है। फिर भी मैं सिर्फ 100 करोड़ का मुकदमा कर रहा हूं। इसके बाद न्यायमूर्ति एस तसिलवनान ने धोनी की आईपीएल फिक्सिंग में कथित संलिप्तता से संबंधित किसी भी खबर के पसारण पर रोक लगा दी। यह  आदेश दो हफ्ते तक पभावी रहेगा। न्यायाधीश ने धोनी के हलफनामे के अवलोकन के बाद अपने आदेश में कहा, ``मेरा विचार है कि यह एक पथम दृष्टया मामला है और यह शिकायतकर्ता के पक्ष में है। अदालत ने दोनों न्यूज चैनलों, चैनल के संपादक और बिजनेस पमुख शुरू में आईपीएल फिक्सिंग पकरण की जांच करने वाले आईपीएस अधिकारी जी संपत कुमार को नोटिस जारी किए। उधर चैनल ने आरोपों का खंडन किया है। चैनल ने साफ किया कि उसने 24 और 28 फरवरी को पसारित स्टिंग ऑपरेशन के दौरान वह खबर पसारित की जो बिंदू दारा सिंह और आईपीएस अधिकारी संपत कुमार के खुलासे पर आधारित थी। चैनल ने दावा किया है कि उसने तथ्यों के आधार पर स्टिंग ऑपरेशन किया। साथ ही न्यायमूर्ति मुदगल द्वारा सुपीम कोर्ट में दायर रिपोर्ट के आधार पर स्टोरी तैयार की। दूसरा मामला उद्योगपति व कुरुक्षेत्र से कांग्रेस सांसद नवीन जिंदल से संबंधित है। नवीन जिंदल ने चुनाव आयोग में शिकायत की है कि जी मीडिया आधारहीन और झूठी खबरें उनके खिलाफ दिखा रहा है। जिंदल ने कहा कि जब से लोकसभा चुनावों की घोषणा हुई है तब से अब तक जी ग्रुप  के चैनल जी न्यूज, जी बिजनेस और जी यूपी उनके खिलाफ 85 ऐसी खबरें पसारित कर चुका है, जो न केवल तथ्य से परे हैं बल्कि पूरी तरह से झूठी और मनगढ़ंत हैं। मंगलवार को जिंदल ने निर्वाचन आयोग में मुख्य चुनाव आयुक्त वीएस संपत सहित तीनों चुनाव आयुक्तें से मुलाकात करके जी  मीडिया के तीनों चैनलों के खिलाफ खुद के विरुद्ध झूठी और आधारहीन खबरें पसारित करने की शिकायत की। उन्होंने जी मीडिया के खिलाफ सबूत भी पेश किए। साथ ही मांग की कि कायदे-कानून को ताक पर रखकर उनके खिलाफ एकतरफा, मनगढ़ंत, निराधार और जनता को गुमराह करने वाली खबरें पसारित किए जाने को लेकर चुनाव आयोग उचित कार्रवाई करे। बाद में जिंदल ने बताया कि जी न्यूज और जी बिजनेस ने मुझसे 100 करोड़ रुपए मांगे थे, जिसे न देने और इसकी शिकायत पुलिस में दर्ज कराने के बाद अब जी मीडिया मेरी छवि खराब करने के लिए दुष्पचार कर रहा है।

-अनिल नरेंद्र

लोकसभा 2014 चुनाव के पमुख मुद्दे

एक और ताजा सर्वेक्षण में एनडीए को सबसे बड़े गठबंधन के तौर पर दिखाया गया है। जी मीडिया और तालीम रिसर्च फाउंडेशन के इस सर्वे के मुताबिक एनडीए को 2014 लोकसभा चुनाव में 217 से 231 सीटें मिल सकती हैं। वहीं कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए को 120 से 133 सीटें मिल सकती हैं। थर्ड पंट को 85 से 115 सीटें मिलने की संभावना जताई गई है। वहीं पीएम पोस्ट के लिए नरेंद्र मोदी को सर्वे में शामिल 46 फीसदी लोगों की पहली पसंद बताया गया है। आगामी चुनाव में अगर मुद्दों की बात करें तो अधिकतर के लिए अहम चुनावी मुद्दे वही हैं जो उनकी रोजाना की जिंदगी पर असर डालते हैं। देश की जनता के लिए पमुख मुद्दे हैः अधिकतर लोगों की शिकायत है कि बीते सालों में जिस तेजी से महंगाई बढ़ी उसके मुताबिक कमाई बढ़ने की बजाय घटने लगी। हिंदी पट्टी के कई युवकों का कहना था कि पांच साल पहले उन्हें जितनी पगार मिलती थी आज भी उनका वेतन उतना ही या उससे भी कम हो गया है। हालांकि घर चलाने का खर्च तीन गुना बढ़ गया है। महंगाई की वजह से आम लोगों की केंद्र सरकार को लेकर नाराजगी काफी बढ़ गई है। पूरे देश में एंटी इनकम्बेंसी का जबरदस्त पभाव है और एंटी कांग्रेस फैक्टर में तब्दील होता नजर आ रहा है। पूरे देश में कांग्रेस के खिलाफ इस फैक्मटर का लाभ उन्हीं दलों को मिल रहा है जो कांग्रेस के खिलाफ हैं। जिस तेलंगाना के लिए कांग्रेस ने इतना जोर लगाया वहां भी उसे सपोर्ट मिलता नहीं दिख रहा। युवाओं के बीच रोजगार के घटते मौकों को लेकर काफी नाराजगी है। आम लोगें का मानना है कि पिछले पांच साल में नौकरी के मौके और घट गए हैं और उनको अपने भविष्य को ले कर चिंता सता रही है। उनका यह भी मानना है कि सरकार उनके लिए नए मौके उपलब्ध कराने में नाकाम रही है। लोगों का यह भी कहना है कि वे वोट देने से पहले बड़े राष्ट्रीय नेताओं के अलावा अपने इलाके के लोकल उम्मीदवारों को भी देखते हैं। बहुत सारे लोगों का कहना कि नरेंद्र मोदी हिंदुओं के नए उभरते नेता के तौर पर नजर आ रहे हैं और इसी आधार पर उन्हें वोट देने की बात कर रहे हैं। हालांकि मोदी की कट्टर छवि के कारण कुछ लोग खास तौर पर मुस्लिम उनका विरोध भी कर रहे हैं। माने या न माने आज पूरे देश में नरेंद्र मोदी की हवा चल रही है और उनका बढ़ता कद भी इस बार चुनावी मुद्दा बन गया है। उत्तर पदेश, बिहार, राजस्थान जैसे राज्यों में तो कई लोगों ने यह भी राय दी कि अगर नरेंद्र मोदी को हटा दिया जाए तो भाजपा 2009 के चुनाव से भी अधिक कमजोर नजर आती है। देश में कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक नरेंद्र मोदी की लोकपियता  हर जगह नजर आई। मोदी फैक्मटर चुनाव में भाजपा के लिए काम कर रहा है। इस आम चुनाव में क्षेत्रीय दलों की ताकत भी चुनावी मुद्दों के तौर पर सामने है। तमिलनाडु में जयललिता, पश्चिम बंगाल में ममता बनजी, यूपी में मायावती, उड़ीसा में नवीन पटनायक द्वारा जनता से अपील की गई कि उन्हें दिल्ली में मजबूत किया जाए, चुनावी मुद्दा बन सकता है और नमो को भारी चुनौती दे सकता है। स्थानीय लोगों को इससे अपने राज्य को फायदा होने का सपना दिखाया गया है। अंत में सोलहवीं लोकसभा के लिए होने जा रहे आम चुनाव दुनिया के सबसे खचीले चुनावों में से होंगे। उम्मीदवारों की ओर से इस बार चुनाव पचार में करीब 30500 करोड़ रुपए खर्च किए जाने का अनुमान है जो अमेरिका के बाद सबसे महंगा चुनाव होगा।

Friday 21 March 2014

72 लोकसभा सीटों पर निर्णायक होगा मुसलमान वोट

इस चुनाव में कांग्रेस से ज्यादा आम आदमी पाटी मुसलमानों से ज्यादा संवाद करने में जुटी हुई है। पाटी मुस्लिमों से अपनी बात यहां से शुरू कर रही है कि उनको नापसंद आने वाले नरेंद्र मोदी को उनके राज्य में चुनौती देने का काम सिर्फ और सिर्फ केजरीवाल ने किया है। आम आदमी पाटी देश के मुसलमानों को रिझाने के लिए नरेंद्र मोदी का हौवा दिखाकर एक दहशत का माहौल बनाने में जुटी हुई है। यह काम सिर्फ आम आदमी पाटी ही नहीं कर रही बल्कि कांग्रेस व समाजवादी पाटी भी पीछे नहीं हैं। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने तो मोदी का नाम लेकर उन पर करारा हमला करते हुए कहा कि 2002 के गुजरात दंगों के लिए मोदी को क्लीन चिट नहीं दी जा सकती है। इसकी बात करना अपरिपक्वता की निशानी है। दंगों के दौरान पशासन की स्पष्ट और अक्षम्य विफलता के लिए मोदी सरकार की न्यायिक जवाबदेही तय की जानी चाहिए। देश की कुल 543 लोकसभा सीटों में से 72 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका में है।  हालांकि मुस्लिम बहुल आबादी वाली इन सीटों पर जीत का इतिहास बताता है कि मुस्लिम वोटरों के मत बिखरने के चलते उन दलों को भी फायदा पहुंचा है जिन्हें ज्यादातर मुस्लिम मतदाता आम तौर पर पसंद नहीं करते। पिछले लोकसभा चुनाव में इन सीटों में से सिर्फ 19 पर मुस्लिम पत्याशियों ने जीत दर्ज की थी, जबकि 17 सीटें पर भारतीय जनता पाटी  और 25 पर कांग्रेस ने विजय हासिल की थी। देश की सर्वेच्च मुस्लिम आबादी दर वाली 22 सीटें हैः बारामूला (जम्मू-कश्मीर) 97 फीसदी मुस्लिम आबादीअनंतनाग (जम्मू-कश्मीर) 95.5 फीसदी मुस्लिम आबादी, लक्ष्यद्वीप 95 फीसदी, श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर) 90 फीसदी, किशनगंज (बिहार) 67 फीसदी, जंगीपुर (पं. बंगाल) 60 फीसदी, मुर्शिदाबाद ( पं. बंगाल) 59, रामगंज ( पं. बंगाल) 56,  धुबरी (असम) 56 फीसदी, मलप्पुरम (केरल) 50, रामपुर (उत्तर पदेश) 50 फीसदी, लद्दाख (जम्मू-कश्मीर) 46 फीसदी, करीमगंज (असम) 45, बरेहपुर (पं. बंगाल) 44, बशिरहट (पं. बंगाल) 44, मालदा (पं. बंगाल) 41, मुरादाबाद (यूपी) 41 फीसदी, भिवंडी (महाराष्ट्र) 40, सहारनपुर (यूपी)  39, बिजनौर (यूपी)  39, बारापेंटा (असम) 39 फीसदी। इन 22 सीटों में से 12 पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की, बाकी पर क्षेत्रीय दलों के पत्याशी जीते। 20 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम आबादी 25 फीसदी से ऊपर है और 39 फीसदी से कम है। 22 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम आबादी 20 फीसदी से अधिक और 25 फीसदी से कम है। देश की अल्पसंख्यक आबादी का एक मुश्त वोट पाने के लिए यूपीए सरकार ने पहले और दूसरे कार्यकाल में कांग्रेस ने यूपीए और यूपीए दो सरकार में कोई कसर नहीं छोड़ी। पिछले सात सालों में यूपीए सरकार ने अल्पसंख्यकों के विकास के लिए बुनियादी ढांचे तथा विभिन्न योजनाओं पर 11544 करोड़ रुपए खर्च करने का दावा किया है वैसे तो देश के हर हिस्से में अल्पसंख्यक मौजूद हैं लेकिन राजनेताओं के लिए अल्पसंख्यकों का अर्थ मुसलमानें से होता है और कांग्रेस पाटी का सारा फोकस मुस्लिमों पर है। सिखों, जैनियों, ईसाइयों की संख्या इतनी ज्यादा नहीं कि उन्हें वोट बैंक की तरह माना जाए। लेकिन मुसलमान करीब 14 पतिशत हैं। देश के 90 जिले मुस्लिम बहुल हैं जिनमें 72 लोकसभा सीटों पर मुस्लिम वोट हार-जीत पर असर डाल सकते हैं। भारतीय जनता पाटी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नकवी ने हाल ही में राजस्थान के तिजारा में शहीद हसन खां मेवाती के शहीदी दिवस पर आयोजित जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि खुद डरे हुए लोग (कांगेस-आप) मोदी के विकास एजेंडे पर डर का पलीता लगा रहे हैं जबकि आज भारतीय मुसलमानों के बीच नरेंद्र मोदी डर का नहीं विकास का चेहरा बनकर उभर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस और उनके कुछ सेक्यूलर सूरमाओं ने वर्षें तक साम्पदायिकता  एवं धर्म निरपेक्षता के नाम पर मुसलमानों के वोटों का जमकर शोषण किया और उनके आर्थिक सामाजिक शैक्षिक हितों को जानबूझकर अनदेखा किया है। नकवी ने कहा कि कांग्रेस ने मुसलमानों के साथ किमिनल काइम किया है और आज भी नरेंद्र मोदी और भाजपा का डर पैदा कर फिर उसी चाल को दोहराया जा रहा है जिससे भारतीय मुसलमानों को पगति की मुख्य धारा से कोसों दूर रखा जा सके।

-अनिल नरेंद्र

भाजपा की अंदरूनी चालबाजियां कहीं अंत में भारी न पड़ जाएं?

हमने हर चुनाव में टिकटों के बंटवारे को लेकर विवाद होते देखा है सो अगर इस बार भी लोकसभा टिकटों के बंटवारे पर हंगामा हो रहा हैं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं हैं। यह लगभग सभी सियासी दलों में हो रहा है पर सबसे ज्यादा मुखर भारतीय जनता पाटी में देखने को मिल रहा है। इसका एक पमुख कारण है कि देश में  नरेंद्र मोदी हवा चल रही है इसलिए सभी चाहते हैं कि उन्हें भाजपा की टिकट मिले और हंगामे का सबसे बड़ा कारण है बाहरी उम्मीदवार का थोपना। वैसे सैद्धांतिक रूप से मुझे आज तक यह समझ नहीं आया कि बाहरी उम्मीदवार कौन है? भारत एक लोकतांत्रिक देश है और कोई भी व्यक्ति देश के किसी कोने से चुनाव लड़ने के लिए आजाद है। संविधान में यह कहां लिखा हुआ है कि  व्यक्ति जिस राज्य में पैदा हुआ है वह केवल वहीं से चुनाव लड़ सकता है? एक व्यक्ति दिल्ली में पैदा हुआ है तो वह चेन्नई से, भोपाल से, जम्मू से कहीं से भी लड़ सकता है पर पार्टियों के कार्यकर्ताओं को यह बहाना मिल गया है। अगर हम भारतीय जनता पाटी में टिकट के बंटवारे के कारण अंसतोष की बात करें तो कुछ जायज है और कुछ बिना वजह। पहले बिना वजह की बात करते हैं। अगर जनरल वीके सिंह का गाजियाबाद में विरोध हो रहा है तो यह गलत है। जनरल सिंह पूर्व थलसेना अध्यक्ष हैं। गाजियाबाद राजनाथ सिंह की जीती हुई सीट है। वैसे तो यहीं से फिर उनके लड़ने की उम्मीद थी पर उन्होंने यह सीट छोड़ दी या भाग गए तो अगर इस सीट से जनरल सिंह लड़ रहे हैं तो गलत क्या है? डॉ. हर्षवर्धन पूवी दिल्ली से जीते थे अब वह  चांदनी चौक से लड़ रहे है तो क्या यह गलत है? पर इसके साथ-साथ यह भी कहना जरूरी है कि भाजपा में टिकट बंटवारे को ले कर सबसे ज्यादा गड़बड़ पाटी नेतृत्व और संसदीय बोर्ड ने की है। पाटी अध्यक्ष राजनाथ सिंह चूंकि गाजियाबाद से सीटें बदलना चाहते थे इसलिए इस कम को इन्हीं ने शुरू किया। वह लखनऊ से लड़ना चाहते थे। लखनऊ में सीटिंग एमपी लालजी टंडन इसके लिए तैयार नहीं थे। लखनऊ सीट अटल जी की सीट रही है इसलिए इसका विशेष महत्व है। एक समय यह भी बात उड़ी कि शायद नरेंद्र मोदी यहां से चुनाव लड़ें। दरअसल भाजपा पमुख ने एक तीर से कई निशाने साधने का पयास किया है। पहले तो उन्होंने पाटी में अपनी राजनीतिक पतिद्वंद्वियों को चित करने की नीयत से टिकट बंटवारे में या तो उनकी मनपसंद सीट से टिकट काटी। शत्रुघ्न सिन्हा, नवजोत सिंह सिद्धू, डॉ. मुरली मनोहर जोशी। फिर उनकी जगह अपने समर्थकों को फिट करने का पयास किया। उनके विरोधियों के समर्थकों का भी सफाया करने का पयास किया गया। एक टीवी चैनल पर एक राजनीतिक विश्लेषक का कहना था कि भारतीय जनता पाटी के अंदर एक वर्ग ऐसा है जो नरेंद्र मोदी को पधानमंत्री बनने से रोकने हेतु पाटी की जीती सीटों पर नियंत्रण लगाना चाहता है ताकि इतनी सीटें न आएं कि मोदी के पीएम बनने में कोई दिक्कत नहीं आए। अगर भाजपा की सीटें बहुत से कम रह जाती हैं तो इस वर्ग को लगता है कि नरेंद्र मोदी को दूसरे एनडीए घटक दल बतौर पीएम स्वीकार नहीं करेंगे। उस सूरत में भाजपा का कोई अन्य नेता जो सबको  एनडीए में शामिल कर सके और जिस पर सभी सहमत हो जाएं सर्वमान्य पीएम बन जाए। मुझे लगा कि इस बात में कुछ दम है। कभी-कभी पाटी नेतृत्व की यह मजबूरी होती है कि पदेशों से तीन नामों का जो पैनल आया है उस पर एक नाम पर सहमति नहीं बन पाती। इसलिए झगड़ा निपटाने के लिए किसी बाहरी नाम को घोषित कर दिया जाता है ताकि कार्यकर्ता आपस में न भिड़ें और मिलकर चुनाव में कार्य करें। पर इसका उल्टा पभाव भी पड़ सकता है। कार्यकर्ता निराश होकर घर बैठ जाते हैं और कहते हैं कि हर बार यही होता है। पांच साल तक तो हम मरते, करते रहते हैं और जब समय आता है तो टिकट किसी बाहरी व्यक्ति को दे दिया जाता है। फिर हर पाटी में खास तौर से इस बार भारतीय जनता पाटी में बहुत से लोग पाटी के बाहर से शामिल होते हैं। ऐसे लोगों को भी टिकट देना पड़ता है क्योंकि उन्हें इसी वादे पर लाया गया है। फिर हर पाटी चाहती है कि वह  हर सीट पर जीतने वाले उम्मीदवार को उतारे चाहे वह बाहरी हो, दागी हो, कुछ भी हो बस सीट निकाल सके। बाहरी उम्मीदवारों को थोपने का लाभ भी है, नुकसान भी है। सिवाय आम आदमी पाटी के जो पहली बार चुनाव लड़ रही है, बाकी सभी दलों में यह असंतोष है, कुछ में कम, कांग्रेस और भाजपा में ज्यादा।

Thursday 20 March 2014

देवयानी पर आरोप खारिज ः अमेरिकी दादागीरी को करारा जवाब

भारतीय महिला राजनयिक देवयानी खोबरगड़े के खिलाफ लगाए गए आरोप बृहस्पतिवार को अमेरिकी अदालत द्वारा खारिज किया जाना खुद देवयानी और भारत के लिए खुशी का बड़ा मौका है। अमेरिकी अदालत ने नौकरानी संगीता रिचर्ड की ओर से लगाए गए वीजा धोखाधड़ी संबंधी सभी आरोप खारिज कर दिए हैं। न्यूयार्क के दक्षिणी जिले की अदालत ने 12 मार्च को सुनाए अपने फैसले में कहा कि जिस वक्त देवयानी खोबरगड़े पर वीजा धोखाधड़ी और अपनी नौकरानी की तनख्वाह को लेकर गलत बयानी के आरोप पर अभियोग दर्ज किए गए तब उन्हें राजनयिक संरक्षण पाप्त था। इस फैसले ने 9 जनवरी को देवयानी के खिलाफ अभियोजन पक्ष की ओर से लगाए गए सभी आरोपों को नकार fिदया है। उल्लेखनीय है कि देवयानी को वीजा धोखाधड़ी और अपनी नौकरानी को कम वेतन देने के आरोप में न्यूयार्क में 12 दिसंबर 2013 को गिरफ्तार किया गया था उस वक्त न्यूयार्क में भारतीय वाणिज्य दूतावास में बतौर उप-पमुख तैनात देवयानी की गिरफ्तारी हुई और बाद में निर्वस्त्र कर ली गई तलाशी पर भारत ने तीखा पतिकार किया था। मामले को लेकर चली कूटनीतिक कवायद के बाद देवयानी को इंडिया यूएस हैडक्वाटर्स एग्रीमेंट के तहत 8 जनवरी 2014 को पूर्ण राजनयिक छूट दी गई थी। इस फैसले से यह तो तय हो गया कि गिरफ्तारी के समय भी देवयानी के पास राजनयिक विशेषाधिकार थे। इसके बावजूद अगर उनकी गिरफ्तारी की गई तो साफ है कि अमेरिका ने उनके साथ नाइंसाफी की। इससे यह भी साबित हुआ कि देवयानी पर अमेरिकी पशासन द्वारा लगाए गए आरोप गलत और बेबुनियाद थे। अमेरिकी दादागीरी को अगर इस फैसले से करारा जवाब मिला है तो वहीं भारत सरकार के कड़े स्टैंड की भी जीत हुई है। अमेरिकी अदालत द्वारा देवयानी पर लगे सभी आरोप खारिज होना भारत की बड़ी कूटनीतिक जीत है। उनकी गिरफ्तारी के बाद से भारत ने पहली बार सख्त रुख अपनाया और एक के बाद एक पतिकियात्मक कदम उठाए। इस मामले में भारतीय तंत्र अंत तक अपनी बात पर अड़ा रहा। इसके बाद दोनों देशों के रिश्ते बेहद तल्खी के हो गए। भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए विशेष श्रेणी के अमेरिकी राजनयिकों को मिलने वाले विशेषाधिकार कम करने समेत कई कदम उठाए। अमेरिकी राजदूत नेन्सी पॉवेल ने पहली जनवरी 2014 को इस मामले पर खेद जताया। दरअसल यह सर्वविदित है कि अमेरिका अपने राजनयिकों के लिए अलग मापदंड रखता है तो दूसरे देशों के राजनयिकों के लिए अलग। देवयानी से पहले भी अमेरिका द्वारा अन्य राजनयिकों के साथ इस तरह का अमानवीय व्यवहार किया गया। अमेरिकी फितरत में बन चुका है कि दूसरों का अपमान करना, नीचा दिखाना और अपने आपको सर्वोपरि साबित करना। लब्ध पतिष्ठित नेताओं से लेकर दुनिया के चर्चित कलाकारों तक के साथ अमेरिका अपमानजनक व्यवहार करता रहा है। लेकिन यह पहला मामला था जब अमेरिका को उसी की अदालत में मुंह की खानी पड़ी है। उम्मीद करते हैं कि अब देवयानी के मामले को यहीं दफन कर दिया जाएगा ताकि भारत-अमेरिकी रिश्तों में आया तनाव समाप्त हो और आपसी रिश्ते लाइन पर आएं। खबर तो यह भी है कि देवयानी के खिलाफ अमेरिकी अदालत में एक और मामला दर्ज किया गया है। उम्मीद की जाती है कि इसका हश्र भी पहले की तरह होगा।

      öअनिल नरेन्द्र

काशी में गूंजा नारा ः हर-हर मोदी, घर-घर मोदी

नरेन्द्र मोदी ने अपनी वाराणसी रैली में संबोधन की शुरुआत ही की थी कि सोमनाथ से विश्वनाथ का लम्बा सफर उन्होंने तय किया है। उस समय यह बात किसी को समझ नहीं आई थी कि मोदी की नजर बनारस की सीट पर है। उन्हेंने काशी को केंद्र में रखकर उसके गोलार्द्ध में उत्तर पदेश और बिहार की कई रैलियां कीं इसी में लगा कि उनका मंस्ttबा और पक्का इरादा है कि लड़ना है तो शिव की इस नगरी से। भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के लिए संघ परिवार आखिर बनारस को क्यों मुफीद मान रहा था इसके पीछे कई कारण हैं। बनारस में हालांकि 18 फीसदी मुसलमान वोट हैं पर संघ को उम्मीद है कि शेष 82 फीसदी वोट का ध्रुवीकरण हो जाएगा और वह एक मुश्त वोट मोदी को मिलेंगे। दरअसल वाराणसी भाजपा के लिए हमेशा एक अच्छा दुर्ग रहा है, लेकिन समय-समय पर यहां से खतरे की घंटी भी सुनाई देती रही है। इस चुनाव में भी संघ को कुछ खतरा दिख रहा है। चूंकि मिशन 2014 फतह करने के लिए वह वाराणसी समेत पूर्वांचल की 24 तथा बिहार  व मध्य पदेश की एक दर्जन सीटों पर अपनी नजर गढ़ाए हुए हैं और वह मोदी को यहां से लड़ाकर पूरे क्षेत्र में भगवा पभाव बनाना चाहती है। नरेन्द्र मोदी के वाराणसी से चुनाव लड़ने की सार्वजनिक घोषणा होने के बाद निसंदेह यह देश की सबसे हॉट सीट बन गई है। भाजपा का मानना है कि केजरीवाल अगर उम्मीदवार बनते भी हैं तो वाराणसी से मोदी की जीत पक्की है ही साथ ही पूर्वांचल की 30 सीटों पर भी फायदा हो सकता है। मोदी के लिए सिर्फ एक खतरा था कि अगर मौजूदा सांसद डॉ. मुरली मनोहर जोशी नाराज होते तो इसका गलत संदर्भ जाता पर जोशी जी को मना लिया गया है और वाराणसी के कार्यकर्ता उत्साह से भरे हुए यह नारा लगा रहे हैं। हर-हर मोदी, घर-घर मोदी। वाराणसी सीट पर मुस्लिम मतदाता अच्छी खासी संख्या में हैं लेकिन मुस्लिम वोटों का अगर धुवीकरण हुआ तो हिंदू वोटों के धुवीकरण से मोदी को फायदा होगा। ओबीसी के वोटों पर भी मोदी कैम्प की नजर रहेगी। पिछले चुनाव में डॉ. मुरली मनोहर जोशी की जीत महज सत्तर हजार वोटों के अंतर से हुई थी जो किसी भी संसदीय क्षेत्र के लिए हाशिए वाली विजय ही मानी जाएगी। लेकिन मोदी के खड़े होने से यहां के हालात यकीनन भाजपा के पक्ष में झुकने वाले बनते नजर आएंगे। सर्वाधिक अस्सी सांसदों को चुनने वाला उत्तर पदेश अगर दिल्ली की सत्ता की चाबी है तो गंगा तट पर बसी शिव की नगरी वाराणसी पाचीन काल से पवित्रतम तीर्थस्थल के रूप में करोड़ों की आस्थाओं का केंद्र है। हिंदुत्व की लहर पर बहने वाले नरेन्द्र मोदी अब जबान चलाए बिना भी इसका साफ संकेत देश भर में भेजने में सफल रहेंगे। पाटी के पधानमंत्री पद के पत्याशी के रूप में मोदी पहली बार गुजरात के दायरे से बाहर निकल कर देश के सबसे बड़े पांत उत्तर पदेश के साथ सांकेतिक नहीं बल्कि भौतिक रूप से भी जुड़ रहे हैं जिसका बड़ा फायदा भाजपा को मिल सकता है। आम आदमी पाटी के संयोजक अरविंद केजरीवाल अपनी चुनावी सभाओं में अकसर कहते आए हैं कि जहां कहीं से भी मोदी खड़े होंगे वहीं से मैं भी खड़ा  होऊंगा और उन्हें हराकर दिखाऊंगा। केजरीवाल जी मोदी तो खड़े हो गए हैं। अब आपकी बारी है।हमें लगता है कि एक बार फिर केजरीवाल थूक के चाटेंगे। वह अपनी बात से फिरने में माहिर हो चुके हैं। सुनिए अब केजरीवाल क्या कहते हैं बैंगलुरू में रविवार को एक रैली को संबोधित करते हुए केजरीवाल ने कहा कि उनकी पाटी चाहती है कि वह मोदी के खिलाफ लड़ें। मैं इस चुनौती को स्वीकार करने को तैयार हूं लेकिन इस चुनाव को मैं अभी स्वीकार नहीं करता हूं। मैं वाराणसी जाऊंगा। 23 मार्च को हम वाराणसी में रैली करेंगे और लोगों की पतिकिया देखेंगे। वाराणसी के लोग जो कहेंगे, वहीं अंतिम फैसला होगा। अगर वाराणसी के लोग मुझे यह जिम्मेदारी देने का फैसला करते हैं तो मैं तहे दिल से इसे स्वीकार करूंगा। मैं देश के लोगों से अपील करता हूं कि वे 23 मार्च को वाराणसी आएं। केजरीवाल ने कहा कि दोस्तों व पाटी की बैठक हुई। पाटी नेताओं ने मुझे नरेन्द्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने को कहा। उन्होंने कहाः मैं जानता हूं कि यह बड़ी चुनौती है। हम सत्ता या धन के लिए नहीं आए हैं। हम देश के लिए कुर्बानी देने आए हैं। भगत सिंह की तरह मैं देश के लिए कुर्बानी दे पाया तो यह मेरा सौभाग्य होगा। दिलचस्प होगा अगर केजरीवाल मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने का अंतत फैसला करते हैं। वैसे हमें नहीं लगता कि वह यह हिम्मत जुटा पाएंगे और अंत में यही कहेंगे कि जनता चाहती है कि मैं एक सीट तक सीमित न रहूं और पूरे देश में पचार करूं। इसलिए मैं वाराणसी से चुनाव नहीं लड़ूंगा। पर अगर वह लड़ते हैं तो देखना यह होगा कि जिस मुस्लिम वोट पर वह इतनी उम्मीदें लगाए बैठे हैं वह किस ओर जाएगा? पिछले चुनाव में जोशी से मात खा चुके माफिया राजनेता के रूप में कुख्यात मुख्तार अंसारी इस बार भी यहां से किस्मत आजमाने की तैयारी में हें क्या उन्हें अपने समुदाय का समर्थन मिलेगा या कथित रणनीतिक वोटिंग के नाम पर केजरीवाल मुस्लिम वोट बटोर ले जाएंगे। अल्पसंख्यक वोटों के लिए आप भी तमाम तरह की बाजीगरी में जुटे हैं। वाराणसी के नतीजे उसके लिए भी भविष्य का सबब बनेंगे। मोदी बनाम केजरीवाल की जंग में सपा या बसपा या कांग्रेस यहां कितनी टिक पाती है यह देखना भी दिलचस्प होगा।

Wednesday 19 March 2014

क्या सेबी ने पूर्वाग्रह से उलझाया सहाराश्री का पूरा मामला?

गुरुवार को सुपीम कोर्ट द्वारा जमानत अजी खारिज होने से अहत जेल में बंद सहारा पमुख सुब्रत राय की बढ़ती मायूसी और दुश्वारियां हम समझ सकते हैं और कुछ हद तक यह कहने में भी हमें संकोच नहीं कि जिस ढंग से सेबी ने सहाराश्री के खिलाफ कार्रवाई की है वह कहां तक जायज और तर्कसंगत है? इसमें बदले की और सबक सिखाने की बू आती है। यह ठीक है कि कुछ सहारा कंपनियों पर वित्तीय अनियमितता के आरोप हैं पर जिस पकार उन्हें सजा दी जा रही है उस पर सवाल जरूर उठते हैं। क्या उन पर इसलिए बदले की कार्यवाही की जा रही है कि उन्होंने कई साल पहले एक पेस कांपेंस में यह कह दिया था कि  विदेशी मूल की महिला को देश का पधानमंत्री नहीं बनना चाहिए? ठीक उसी समय नरेंद्र मोदी ने भी यह आवाज उठाई थी। तभी से सोनिया गांधी की फायरिंग लाइन पर सुब्रत राय और नरेंद्र मोदी आ गए। नरेंद्र मोदी को लपेटने के बहुत पयास हुए पर वह बचते चले गए और अब तो कांग्रेस और उसके कंट्रोल वाली एजेंसियां उन पर हाथ ही नहीं डाल सकती। पर सहाराश्री सेबी के काबू में आ गए और सेबी ने एक सोची-समझी रणनीति के तहत सुब्रत राय को सपीम कोर्ट से भिड़ा दिया। बेशक इसमें कोई संदेह नहीं कि सुबत राय ने सुपीम कोर्ट को पहले गंभीरता से नहीं लिया और जब लिया तो बहुत देर हो चुकी थी पर हम केस के मेरिट पर नहीं जाना चाहते, यह मामला सुपीम कोर्ट और सहारा के बीच है। पर यह जरूर कहना चाहेंगे कि सुब्रत राय से थोड़ी ज्यादती हो रही है। वह कोई कामन किमिनल नहीं हैं जिन्हें इतने दिनों तक तिहाड़ में बंद रखा जाए। यहां तो लाखों करोड़ डकारने वाले राजनेता खुलेआम घूम रहे हैं। उन्हें तो कोई पूछने वाला नहीं। मान लीजिए सुपीम कोर्ट राय को जमानत दे देता है तो वह सब कुछ छोड़-छाड़ के भागने वालों में से नहीं हैं? अगर उनकी वित्तीय डीलिंग्ज पर सवालिया निशान लगते हैं तो उनके अच्छे, समाजिक, खेलों के लिए कामों को भी देखना चाहिए। राष्ट्रीय सहारा में एक रिपोर्ट छपी है। सहारा-सेबी विवाद पर न्यूज चैनल सहारा समय द्वारा एक टॉक शो गत शनिवार को आयोजित किया गया था। पस्तुत है रिपोर्ट के कुछ अंश टॉक शो में शामिल सुपीम कोर्ट के वक्ताओं ने अपने विचार रखे। सुपीम कोर्ट के अधिवक्ता केशव मोहन ने कहा कि इस पूरे विवाद की शुरुआत एक झूठी शिकायत से हुई थी जिसे सेबी के तत्कालीन अधिकारियों ने पूर्वाग्रह के कारण उलझा दिया। यह मामला कोई वित्तीय धांधली का नहीं है। हालांकि पतिभूमि अपीलीय ट्रिब्यूनल (सैट) ने इस मामले की सुनवाई के दौरान यह आदेश पारित किया था कि सहारा समूह को निवेशकों को भुगतान करने के लिए अवसर देना चाहिए लेकिन सेबी ने मनमाने ढंग से काम किया और असली तस्वीर सामने आने नहीं दी। केशव मोहन ने कहा कि सुपीम कोर्ट में सहारा समूह इसलिए गया था कि मामला सेबी के अधिकार क्षेत्र में आता ही नहीं हैं। सुपीम कोर्ट के निर्देश पर सहारा समूह ने निवेशकों से संबंधित सभी दस्तावेजों को सेबी को उपलब्ध करवा दिए और 5 दिसंबर 2012 को 5120 करोड़ रुपए जमा भी करा दिए। सेबी दो साल से ज्यादा समय में इन दस्तावेजों की सिर्फ स्कैनिंग कर पाया, जांच नहीं कर पाया है। सेबी ने ढंग से काम नहीं किया और मीडिया के जरिए भ्रामक खबरें आम जनमानस में पहुंचाईं। सहाराश्री सुपीम कोर्ट के आदेश पर अमल करते हुए हाजिर हुए और जिस तरीके से न्यायिक हिरासत में भेजा गया वह मानवाधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने देश के विकास तथा कारगिल के शहीदों के परिवारों, भूकंप पीड़ितों, खेल आदि, गरीब लड़कियों की शादियां कराना आदि बहुत काम किए हैं। एक विधि विशेषज्ञ ने कहा कि इस विवाद की शुरुआत सेबी के क्षेत्र अधिकार के सवाल को लेकर हुई थी, देनदारी से नहीं। देनदारी का मामला तो सुपीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान आया था। आम निवेशकों का धन वापस करना है तो सहारा समूह ने तो बैंक गारंटी देने की बात की है और वह उपयुक्त है। सहाराश्री को न्यायिक हिरासत में रखने से समस्या का निदान नहीं होगा। भारत सरकार के पूर्व अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विकास सिंह से अपने पुराने अनुभवों का हवाला देते हुए कहा कि कई मौके आए जब कोर्ट के मामलों की मीडिया ने तोड़ मरोड़ कर रिपोर्टिंग की। इस मामले में भी कुछ ऐसा ही हुआ। उन्होंने कहा कि सुपीम कोर्ट को यह देखना चाहिए कि यह मामला सेबी के क्षेत्राधिकार में आता है या नहीं? क्योंकि सहाराश्री को जिस तरह से न्यायायिक हिरासत में रखा गया है यह मानवाधिकारों का उल्लंघन है क्योंकि उनके खिलाफ कोई आपराधिक मामला नहीं हैं। सेबी-सहाराश्री के बीच लड़ाई अधिकार क्षेत्र को लेकर थी। तीन साल से केस को गलत तरीके से ऐसे पेश किया गया जैसे यह 20 हजार करोड़ रुपए का वित्तीय फॉड हो। अगर ऐसा है तो दुनिया का यह पहला वित्तीय फॉड है जहां कोई भुक्तभोगी निवेशक है ही नहीं।
-अनिल नरेन्द्र


पूरा मीडिया बिका हुआ है, केजरीवाल भेजेंगे जेल



खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की कहावत तो आपने सुनी ही होगी। आजकल आम आदमी पाटी के पमुख व दिल्ली के 49 दिन के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर यह फिट बैठती है। आए दिन वह उस बंदर की तरह बन गए हैं जिसके हाथ में उस्तरा दे दो तो वह सबका गला काटता फिरेगा। अब बौखलाए केजरीवाल के निशाने पर है मीडिया। सुनिए नेता जी क्या कहिन नागपुर के एक फाइव स्टार होटल में चुनावी फंड इकट्ठा करने के लिए केजरीवाल के लिए डिनर का आयोजन किया गया था। इसमें केजरीवाल के साथ डिनर करने वाले मेहमानों के लिए एक डिनर शुल्क (दस हजार रुपए) पति व्यक्ति निर्धारित किया गया था। इस चंदा उगाही में रात्रि भोज में मीडिया के लिए नो इंट्री थी। लेकिन केजरीवाल ने यह कभी नहीं सोचा होगा कि मीडिया वाले रिपोर्टर दस हजार रुपए की एंट्री पास लेकर भी आ सकते हैं, हुआ भी यही। कुछ टीवी चैनलों ने अपने रिपोर्टरों को उक्त राशि का भुगतान करके मेहमान के रूप में इस भोज में दाखिल करा दिया। अंदर अरविंद केजरीवाल इस बात के लिए बेखबर थे कि मेहमानों में कुछ रिपोर्टर अपने मोबाइल फोन से उनका भाषण रिकार्ड कर सकते हैं। अपने चिर-परिचित फी स्टाइल में मीडिया को धमकी दे रहे थे। केजरीवाल ने कुछ यूं कहाः ``पिछले एक साल में आप लोगों के दिमाग में मोदी-मोदी भर दिया गया है। कुछ चैनल वाले कह रहे हैं कि करप्शन खत्म हो गया है। राम राज आ गया है। गुजरात में यह हुआ, वह हुआ। जानते हैं क्यों? पैसे दिए गए हैं। मीडिया घरानों और इनके पत्रकारों को बहुत मोटी रकम दी गई है। इसी वजह से तमाम बड़े मीडिया घराने भी मोदी की हवा बनाने में लगे हैं। तरह-तरह के चुनावी सर्वेक्षणों से भी वह  जताने की कोशिश कर रहे हैं कि जैसे पूरे देश में मोदी के पक्ष में चुनावी आंधी चलने लगी है, जबकि हकीकत यह नहीं है। पिछले दस साल में गुजरात में 800 किसानें ने आत्महत्या कर ली पर इसे कोई नहीं बताएगा। अडाणी को एक रुपए में जमीन दे दी गई, ये भी किसी चैनल ने नहीं दिखाया गया। अरविंद ने सिक्यूरिटी ले ली है। उसने सिक्यूरिटी नहीं ली है। जेड सिक्यूरिटी ले ली........ वाई सिवयूरिटी ले ली। अरे भाई भाड़ में गई तेरी सिक्यूरिटी, मोदी के बारे में कोई सच नहीं बताएगा। इस बार पूरा मीडिया बिक गया है। यह बहुत बड़ी साजिश है। अगर हमारी सरकार बनी तो हम इसकी जांच कराएंगे। मीडिया वालों के साथ सभी दोषियों को जेल भेजेंगे। आज वही केजरीवाल मीडिया को बिकाऊ कह रहे हैं जिस मीडिया ने उन्हें पिछले दो सालों में सर पर बिठा रखा है। नवंबर-दिसंबर के वह दिन भूल गए जब वह मीडिया चाहे इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो, चाहे पिंट मीडिया हो, वह छाए रहे थे। आज चूंकि मीडिया आपके दोहरे चरित्र थूक कर चाटने की आदत को एक्सपोज करता है तो आप उन्हें बिकाऊ कह देते हैं। आज भी बनिस्पत इसके कि आप एक भगोड़े-असफल मुख्यमंत्री हैं, आपको पधानमंत्री पद के उम्मीदवार की रेस में तीसरे नंबर पर  दिखा रहा है और आप कहते हैं कि मीडिया बिका हुआ है। अरविंदर साहब आप सिर्फ आरोप लगाते हैं। आज तक आपने और किया ही क्या है? अगर मीडिया या कुछ मीडिया हाउस पत्रकार बिके हुए हैं तो आप उनका ठोस सबूत दें ताकि देश को भी पता चले कि कौन-कौन से मीडिया हाउस व पत्रकार बिके हुए हैं? क्या इस श्रेणी में आप आईबीएन-7 में हाल तक काम करने वाले पत्रकार और अब आपके सिपहसालार आशुतोष को भी शामिल करते हैं? आप कहते हैं कि हमने अगर सरकार बनाई तो हम जांच कराएंगे। बड़े शौक से जांच कराएं। यह मीडिया वाले किसी भी तरह की, किसी भी एजेंसी से जांच कराने के लिए तैयार हैं, पर साथ-साथ यह भी तय करे लें कि अगर आप सबूत न दे पाएं तो आप को क्या सजा मिलेगी? टाइम्स नाऊ, इंडिया टीवी, जी न्यूज व इंडिया न्यूज के नाम आपके सिपहसालारों ने गिनाए हैं। अर्णव गोस्वामी, रजत शर्मा, दीपक चौरसिया पर आज तक किसी ने इस पकार के घिनौने आरोप नहीं लगाए। उनको आप बोल्ड अड़ने वाले संपादक तो कह सकते हैं पर वह भ्रष्ट कतई नहीं, पर आपका कोई दोष नहीं, यह आपकी आदत में शामिल हो गई है। ऐसे दर्जनों उदाहरण हैं जब आपने आरोप लगाए, किसी का कोई सबूत नहीं दिया और बाद में माफी मांगी। आप हमेशा मीडिया में छाए रहने की कोशिश करते हैं। संविधान का मजाक उड़ाते हैं। पुलिस से टकराते हैं, कानून और परंपराओं को तोड़ते हैं और किसलिए? सिर्फ मीडिया में बने रहने के लिए। मीडिया वालों के लिए बेहतर होगा कि ऐसे नेता को दिखाना बंद कर दे, छापना बंद कर दे। अरविंद केजरीवाल और उनकी आम आदमी पाटी को सही जवाब यही होगा कि उनको यह बिका हुआ मीडिया बनके आउट कर दे। केजरीवाल को दिन में तारे नजर आ जाएंगे। अंत में केजरीवाल आप जब डिनर के लिए दस हजार रुपए पति व्यक्ति की टिकट बेचते हैं तो यह भ्रष्टाचार नहीं

Sunday 16 March 2014

भाजपा-कांग्रेस दोनों के लिए इन सूबेदारों से निपटना बड़ी चुनौती है

कुछ राजनीतिज्ञों का मानना है कि भारतीय जनता पाटी नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बेशक आगामी लोकसभा चुनाव में सबसे ब़ड़ा दल बन कर उभरे पर सरकार वह तभी बना सकेगी जब दूसरे छोटे दल एनडीए का समर्थन करने को तैयार हों। उनका कहना है कि एनडीए अपने बूते पर 272 + सीटें नहीं ला सकती। हालांकि अन्य विश्लेषकों का दावा है कि देश में मोदी की लहर है और एनडीए अपने बूत पर सरकार बना लेगा। लगता तो यही है कि पेंद्र की सत्ता की दौड़ में शामिल दोनों बड़े सियासी दल भाजपा और कांग्रेस को आगामी लोकसभा चुनाव में क्षेत्रीय सूबेदारों से बड़ी चुनौती मिलेगी। अगली सरकार के गठन की राह में जहां यही दल उनके रास्ते की बाधा साबित हो सकते हैं, वहीं इनके समर्थन से ही नए पधानमंत्री की ताजपोशी हो सकती है। इन सबके बीच अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पाटी भी दोनों बड़े दलों के लिए वोट कटवा साबित हो सकती है। उत्तर पदेश और बिहार की सियासी तस्वीर मैं पहले बता चुका हूं। आज बात करेंगे और अन्य राज्यों की। पिछले चुनाव को देखें तो कांग्रेस को केंद्र की सत्ता तक पहुंचाने में दक्षिण के दो राज्यों आंध्र पदेश और तमिलनाडु का बड़ा योगदान रहा था, तो भाजपा के लचर पदर्शन के लिए उत्तर पदेश में बड़ी भूमिका रही थी। वहां कांग्रेस के लिए आंध्र पदेश और तमिलनाडु वाटरलू साबित हो सकते हैं। वहीं भाजपा मोदी लहर में अपने लिए दोनों राज्यों में संभावनाएं तलाशने में जुटी है। आंध्र पदेश जहां लोकसभा की 42 सीटें हैं वहां कांग्रेस के लिए तेलगूदेशम पाटी और जगन के नेतृत्व वाली वाईएसआर कांग्रेस उसकी राह में रोड़ा बन सकती है। राज्य को बांटने का टोटका कांग्रेस के लिए कितने फायदे का रहेगा यह तो समय ही बताएगा लेकिन इस निर्णय से उत्पन्न सीमांध्र में स्थिति का तेलंगाना से भरपाई पर कांग्रेस की उम्मीदें टिकी हुई हैं। तमिलनाडु में जयललिता के अन्ना द्रमुक ने राज्य की सभी 39 सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित करके स्पष्ट संकेत दे दिया है कि वह चुनाव से पहले किसी से भी गठबंधन शायद न करें। 2009 के चुनावों में कांगेस-डीएमके की अगुवाई वाले लोकतांत्रिक डीपीए के साथ गठबंधन बना कर 16 सीटों पर चुनाव लड़ी थी जिसमें से 9 सीटों पर उसे जीत मिली थी। इस बार डीएमके ने अब तक यही स्टैंड ले रखा है कि वह कांग्रेस से गठबंधन नहीं करेगा। केंद्रीय वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि अगर गठबंधन नहीं होता है तो वह सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ा करेंगे। यहां कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। जहां तक भाजपा का सवाल है उसके लिए तमिलनाडु में एक भी सीट जीतना मुश्किल दिख रहा है। पश्चिम बंगाल जहां पिछले चुनाव में कांग्रेस ने तृणमूल  कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ा था इस बार अलग-अलग चुनाव मैदान में होंगे। राज्य की 42 संसदीय सीटों के लिए मैदान में उतरने वाले चारों पमुख राजनीतिक दलों ने लोकसभा चुनावों में पहली बार कवि गुरू रविंद्रनाथ टैगोर की एकला-चलो गीत को आत्मसात कर लिया है। यह पहली बार है कि जब तृणमूल कांग्रेस, कांग्रेस, वाम मोर्चा और भाजपा बिना किसी तालमेल या गठजोड़ के मैदान में उतरे हैं, तृणमूल कांग्रेस की सभी सर्वेक्षणों में मजबूत स्थिति दिखाई गई है। ममता की सुनामी में अन्य गठबंधन या दल पता नहीं कितना टिक पाएंगे। पिछले चुनाव में ममता के खाते में 18 सीटें आई थीं। राज्य में भाजपा मोदी लहर पर बैठकर अपना खाता खोलने की जुगत में है। उड़ीसा जहां 21 सीटें हैं। बीजू जनता दल भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए बड़ी चुनौती पेश करेगा। पिछले चुनाव में उसके खाते में 14 सीटें आई थीं। महाराष्ट्र में क्षेत्रीय क्षत्रपों में जहां शिवसेना और मनसे भाजपा के साथ है वहीं राकांपा-कांग्रेस मिलकर चुनाव मैदान में उतरेंगे। आम आदमी पाटी भी अपना खाता खोलने के लिए हाथ-पांव मार रही है। कुल मिलाकर उत्तर पदेश, बिहारतमिलनाडु, आंध्र पदेश, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा ऐसे राज्य हैं जहां भाजपा और कांग्रेस दोनों को क्षेत्रीय क्षत्रपों से पार पाना आसान नहीं होगा। देश के इन छह राज्यों की 264 सीटों पर भाजपा और कांग्रेस का सीधा मुकाबला इन सूबेदारों से होगा। भाजपा और मोदी को अपने 272+ मिशन पर कामयाब होना है तो इन राज्यों में अच्छा-ठोस पदर्शन करके कुछ सीटें लानी हेंगी। अब बात करते हैं पूर्वेत्तर राज्यों की। भाजपा के लिए अच्छी खबर सामने आई है जब उसका असम गण परिषद (अगप) के दो वरिष्ठ नेता भाजपा में शामिल हो गए। अगप के पूर्व अध्यक्ष चंद मोहन पटवारी और वरिष्ठ नेता एवं पूर्व मंत्री हितेंद्र नाथ गोस्वामी बड़ी संख्या में अपने समर्थकों के साथ भाजपा में शामिल हो गए। एक अन्य घटनाकम में गोरखा मुक्ति मोर्चा(जीजेएम) अध्यक्ष विमल गुरूंग ने घोषणा की कि उनका संगठन पश्चिम बंगाल में भाजपा का दार्जिलिंग की सीट पर समर्थन करेगा। गौरतबल है कि 2009 में जीजेएम ने दाजीलिंग सीट पर भाजपा का समर्थन किया था और वह विजयी रहे थे। असम में भाजपा पहले ही तीन वर्तमान सांसदों समेत पांच उम्मीदवारों के नाम की घोषणा कर चुकी है। असम में गगन गोगाई के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार है और कांग्रेस को यहां से बहुत उम्मीदें हैं। अन्य राज्यों में भी कांग्रेस की स्थिति मजबूत है। केरल की 20 सीटों को लेकर डेमोकेटिक पंट और सत्तारूढ़ कांग्रेस के नेतृत्व वाली सत्तारूढ़ यूडीएफ के बीच कड़ा मुकाबला है। राज्य में और राष्ट्रीय स्तर पर लंबे समय तक वाममोर्चा के पमुख सहयोगी दल आरएसपी ने गठजोड़ से अलग होने की घोषणा से वामामोर्चा कमजोर हुआ है। पंजाब में पमुख मुकाबला भाजपा-अकाली गठबंधन और कांग्रेस-पीपीपी (पीपुल्स पाटी) है। मनपीत सिंह बादल की पाटी का हाल ही में कांग्रेस के साथ गठबंधन हुआ है। अब बात करते हैं जम्मू-कश्मीर की। जम्मू कश्मीर में एक ओर जम्मू क्षेत्र है और दूसरी ओर घाटी है। राज्य में जम्मू-कश्मीर, श्रीनगर, अनंतनाग, बारामूला और लद्दाख छह सीटें हैं। फिलहाल पांच सीटें कांग्रेस-नेशनल कांफेंस गठबंधन के पास है, जबकि एक सीट पर निर्दलीय काबिज है। जम्मू में एक भाजपा समर्थक सुकुमार शाह कहते है ``कश्मीर इस बार इतिहास रचेगा। बदलाव की आंधी है, मोदी ही मोदी है'' पर घाटी में न तो भाजपा कहीं है और न ही मोदी। यहां कांग्रेस-नेकां गठबंधन का बोलबाला है। भाजपा जम्मू और उधमपुर सीटें जीत सकती है। नरेंद्र मोदी के कारण हिंदू वोट एकजुट हो कर वोट करेगा, ऐसी उम्मीद भाजपा लगाए हुए है। मैंने देश के कुछ पमुख  राज्यों के बारे में संक्षिप्त में आपको जानकारी देने का पयास किया है। यह राज्य नरेंद्र मोदी के मिशन 272+ में अहम  भूमिका निभा सकते हैं। अन्य उत्तर भारत और मध्य भारत में तो भाजपा मजबूत स्थिति में है। असल चुनौती भाजपा के लिए इन राज्यों में है। देखें, यहां भाजपा का पदर्शन कैसा रहता है

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