Thursday 18 April 2024

क्षत्रियों ने बढ़ाई भाजपा की धड़कने


लोकसभा चुनाव जीतने के लिए एक-एक वोट पाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे भाजपा के नेताओं के सामने क्षत्रिय संगठनों ने परेशानी खड़ी कर दी है। गुजरात और पश्चिम उत्तर प्रदेश में क्षत्रिय संगठन आंदोलन कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लिए थोड़ी परेशानी खड़ी हो सकती है। दरअसल केन्द्राrय मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ने क्षत्रियों को लेकर ऐसी टिप्पणी कर दी जिससे क्षत्रिय समाज के लोग आंदोलन पर उतर आएं हैं। गाजियाबाद के सांसद बीके सिंह का टिकट कटने से क्षत्रिय पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में आंदोलन कर रहे हैं। रूपाला 22 साल के बाद चुनावी राजनीति में उतरे हैं। वह गुजरात दंगों के बाद चुनाव हार गए थे। तब से वह राज्यसभा में ही रहे हैं। इस बार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्यसभा कोटे से मंत्री बने नेताओं को चुनाव में उतारा है। पुरुषोत्तम रुपाला को राजकोट से चुनावी मैदान में उतारा गया है। रुपाला ने एक सभा में कहा कि आजादी के आंदोलन में दलित मोर्चे पर डटे रहे लेकिन क्षत्रियों ने घुटने टेक दिए थे। वह यहीं नहीं रुके उन्होंने आगे कहा कि क्षत्रियों का मुगलों के साथ रोटी-बेटी का भी रिश्ता था। रुपाला के इस बयान से बवाल मच गया। राज्य के अनेक संगठन ने रुपाला के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। राजपूत के संगठन करणी से ना भी राजकोट में प्रदर्शन कर रही है। पुलिस और करणी सेना के बीच झड़प भी हुई है। रुपाला ने माफी मांग ली है लेकिन राजपूत संगठन उनका टिकट बदलने की मांग कर रहे हैं। रुपाला के बयान को कांग्रेस खूब भुना रही है। पार्टी के नेता जगह-जगह घूमकर रुपाला के बयान को हवा दे रहे हैं। गुजरात में लगभग सभी सीटों पर पांच से आठ प्रतिशत ठाकुर हैं। कुछ सीटों पर उनकी संख्या ज्यादा है। अब भाजपा नेताओं को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गुजरात दौरे से विवाद पर विराम लगेगा और क्षत्रियों की नाराजगी दूर होगी। क्योंकि सभी गुजराती प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को गुजरात गौरव मानते हैं। इसलिए प्रधानमंत्री के कहने पर सभी की नाराजगी दूर हो जाएगी। ऐसी उम्मीद की जा रही है। उत्तर प्रदेश में भी जनरल बीके सिंह के टिकट कटने से क्षत्रिय आंदोलन कर रहे हैं। क्षत्रिय पश्चिमी उत्तर प्रदेश में क्षत्रिय सम्मेलन कर भाजपा को हराने का आह्वान कर रहे हैं। उनकी नाराजगी दूर करने की तरकीब तलाशी जा रही है। क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुसलमान, दलित और जाट अधिक संख्या में हैं। भाजपा के साथ अगड़ा वोट पक्की तरह से जुड़ा है। भाजपा नहीं चाहती कि अगड़ी जाति का एक भी वोट उनके कोटे से दूसरी जगह जाए। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को क्षत्रिय समाज को समझाने की जिम्मेदारी दी गई है। भाजपा ने अभी तक ब्रजभूषण शरण सिंह का टिकट फाइनल नहीं किया है। कैसरगंज सांसद का आजकल जबरदस्त प्रभाव है। महिला पहलवानों के आरोपों के कारण भाजपा हरियाणा में रिस्क नहीं लेना चाहती है। भाजपा उनके बदले उनकी पत्नी या बेटे को टिकट देने को तैयार है। लेकिन ब्रजभूषण शरण सिंह इसके लिए तैयार नहीं हैं। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि भाजपा के लिए एक-एक सीट का प्रश्न बना हुआ है। इसलिए वह सिर्फ किसी प्रकार का जोखिम नहीं उठाना चाहती। आश्चर्य नहीं होगा कि अंत में ब्रजभूषण शरण सिंह को ही टिकट दे दिया जाए। हरियाणा में 20 मई को और कैसरगंज में 25 मई का चुनाव है। मामला फंसा है लेकिन पार्टी राजपूतों को खुश करने के लिए ब्रजभूषण पर दांव लगा सकती है?

- अनिल नरेन्द्र

बहन जी ने एकला चलो की ठानी


बसपा सुप्रीमो मायावती जो कहती हैं वो करती हैं, करके दिखाती हैं, लगातार कई चुनावों में बेहतर परिणाम न आने के बाद भी उनके तेवर में कोई कमी नहीं आई है। जहां देशभर में छोटी से लेकर बड़ी पार्टियां एनडीए या इंडिया गठबंधन में जाने को आतुर हैं, वहीं बसपा सुप्रीमों ने यूपी में आम चुनाव अपने दम-खम पर लड़ने का फैसला किया है। हालांकि इस फैसले ने सबको चौंका जरूर दिया। उनको आज भी अपने कैडर पर पूरा विश्वास है कि वह उनके साथ है। यही कैडर उनका गुमान और अभिमान भी है। बसपा का नारा है - सर्वजन हिताय व सर्वजन सुखाय। वह दबे, कुचले, शोषित, वंचितों के लिए राजनीति करती हैं। वह अपने भाषण की शुरुआत भी इनको लेकर ही करती हैं। देशभर की पार्टियों पर आरोप लगाती हैं कि चुनाव के समय दलित, शोषित और वंचित याद आते हैं। मायावती चुनाव नजदीक आते ही भाजपा, कांग्रेsस, सपा व अन्य विपक्षी पार्टियों पर डॉ. भीमराव अंबेडकर, कांशीराम, संत रविदास की याद आने का ढोंग करने का भी आरोप लगाती हैं। मायावती ने इंडिया गठबंधन से दूर रहकर अपने कैडर के भरोसे चुनाव में उतरने का फैसला किया है। भतीजे आकाश के जरिए प्रचार की रणनीति अपनाई है और सोशल मीडिया पर प्रचार को प्राथमिकता दी जा रही है। टिकटों के वितरण में मायावती ने मुस्लिम के साथ ब्राह्मण, क्षत्रिय और ओबीसी को टिकट देकर वर्ष 2007 की तरह सोशल इंजीनियरिंग का दांव चला है। इसके जरिए वह कांग्रेस-सपा और भाजपा दोनों को चुनौती देने की कोशिश कर रही हैं। मायावती सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी बात कैडर के लोगों तक पहुंचा रही हैं। बसपा ने सबसे पहला गठबंधन 1993 में यूपी में सपा के साथ विधानसभा चुनाव में किया था। दोनों पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ीं और सत्ता में आईं। लेकिन वह गठबंधन टूट गया। मायावती भाजपा संग गठबंधन कर 1995 में यूपी में पहली बार सीएम बनीं, लेकिन यह साथ भी अधिक दिनों तक नहीं चला। उन्होंने 2019 में लोकसभा चुनाव में सपा से गठबंधन तो किया लेकिन मुफीद नतीजे न आने पर सपा को कैडर विहीन पार्टी बताकर तुरन्त गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया। दलितों की पार्टी बसपा को 40 साल होने जा रहे हैं। रविवार को बसपा का 40वां स्थापना दिवस है। पिछले 24 साल से बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष गौतमबुद्ध नगर जिले के गांव बादलपुर में जन्मी मायावती हैं। पार्टी के नए उत्तराधिकारी आकाश आनंद का जन्म भी नोएडा में ही हुआ है और वह वहीं पर पढ़े-लिखे हैं। मायावती 2001 से पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। बीते 40 सालों में बसपा ने अधिक उतार-चढ़ाव देखे। इन दिनों बसपा अपने बुरे दौर से गुजर रही है। जिसके पास पूरे प्रदेश में सिर्फ एक विधायक है। पार्टी सुप्रीमों के गृह नगर गौतमबुद्ध नगर में ही बसपा का कोई जनप्रतिनिधि नहीं है, जबकि दस साल पहले तक यहां पर बसपा का वर्चस्व हुआ करता था। 14 अप्रैल 1984 को कांशीराम द्वारा बसपा का गठन किया गया था। उन्होंने बसपा को स्थापित करने के लिए कड़ा संघर्ष किया। बसपा का गठन होने के बाद पहले उन्हें चुनाव चिह्न के रूप में चिड़ियां मिली थी, लेकिन इस चिह्न पर कोई जीत हासिल नहीं हो सकी। अगर हम आंकड़ों पर नजर डालें तो पिछले कुछ सालों में बसपा का जनाधार लगातार घट रहा है। देखना अब यह है कि बहन जी की एकला चलो की रणनीति 2024 में क्या रंग लाती है?

Tuesday 16 April 2024

2019 का प्रदर्शन भाजपा दोहरा पाएगी?


भय, कोलाहल, गड़बड़ी....महाराष्ट्र में शिव सेना और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में टूट के बाद कई लोगों में यही शब्द सुनाई पड़े। महाराष्ट्र में 2024 लोकसभा चुनाव राज्य की दो प्रमुख पार्टियों में टूट के साए में हो रहे हैं। भाजपा, कांग्रेस के अलावा अब यहां दो सेना और पवार वाली पार्टियां हैं। पुणे के सम्पन्न नादेड़ सिटी इलाके के एक वोटर कहते हैं, जहां पैसा होता है, नेता वहीं जाते हैं। लोग इतने परेशान हैं कि उनका वोटिंग के लिए जाने का मन नहीं है। इसी शहर में एक अन्य वोटर ने कहा, घोटाले वालों को तुम क्यों ले रहे हो? घोटाले वाले उधर गए और सब मंत्री बन गए। ये कैसे चलता है, लोग सब समझ रहे हैं। मुंबई के मशहूर शिवाजी पार्क के बाहर अपने दोस्तों के साथ बैठे रिटायर्ड एक एसपी के मुताबिक लोग पार्टियां तोड़ने के खिलाफ हैं। उनके नजदीक ही खड़े एक आदमी ने पलटवार कर कहा, भाजपा तोड़ रही है, इसका मतलब तुम में कुछ तो कमियां हैं, इस वजह से वो लोग तोड़ रहे हैं। लोकतंत्र खतरे में है, के विपक्षी दावों पर वह पूछते हैं किसका लोकतंत्र खतरे में हैं? हिन्दू का लोकतंत्र खतरे में हैं? आम आदमी का लोकतंत्र खतरे में है? साल 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने कुल 48 सीटों में से 23 तो वहीं शिव सेना ने 18 सीटें जीती थीं। साल 2024 के चुनाव में एनडीए के लिए 400 पार का लक्ष्य रखने वाली भाजपा क्या महाराष्ट्र में इस बार भी 2019 जैसी सफलता दोहरा पाएगी? 2019 में शिव सेना की पूरी ताकत भाजपा के साथ थी। आज शिव सेना और एनसीपी के एक हिस्से उसके साथ हैं और राज्य में शरद पवार और उद्धव ठाकरे के प्रति सहानुभूति की लहर की बात कही जा रही है। महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में आरक्षण आंदोलन भी चल रहा है। देश के दूसरे हिस्सों की तरह भाजपा शासित महाराष्ट्र में भी बेरोजगारी, महंगाई, किसानों की समस्या आदि चुनौतियों मुंह बाए खड़ी हैं। लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का जोर उनकी नाव पार लगा देगा। महाराष्ट्र में 48 लोकसभा सीटें दांव पर हैं। विश्लेषकों का कहना है कि विभिन्न कारणों से भाजपा गठबंधन की सीटें इस बार घट सकती हैं। एक ओपिनियन पोल ने इस गठबंधन को 37-41 सीटें जीतने की बात कही है जबकि एक अन्य पोल ने महाविकास अघाड़ी (एमबीए) गठबंधन के 28 सीटों पर जीतने की उम्मीद जताई है। महाराष्ट्र कांग्रेस का गढ़ रहा था लेकिन आपसी कलह कांग्रेस के लिए चुनौती रही है। एनडीए के लिए 2019 की सफलता दोहराना मुश्किल हैं। लोग भाजपा से ज्यादा एकनाथ शिंदे और अजीत पवार से नाराज हैं कि उन्होंने टूट में हिस्सा लिया। उनके मुताबिक घटनाक्रम ने भाजपा को लंबे समय के लिए नुकसान पहुंचाया है। विश्लेषक के मुताबिक एनसीपी और शिव सेना के कई वोटर असमंजस में है कि किसको वोट करें। वो मानते हैं कि एक तरफ जहां भाजपा पीएम मोदी के नाम पर निर्भर होगी। वहीं शरद पवार और उद्धव ठाकरे को लेकर सहानुभूति है। ये सहानुभूति कितनी गहरी है, ये साफ नहीं है लेकिन एकनाथ शिंदे का हाथ थामने वाले इससे इंकार करते हैं। विश्लेषकों के अनुसार पार्टियों में टूट के कारण कई लोगों में छवि बनी है कि भाजपा पार्टी और परिवार तोड़ने वाली है और ये छवि भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है। कुछ लोग इसे महाराष्ट्र बनाम गुजरात के रूप में भी देख रहे हैं और मराठा अस्मिता का प्रश्न भी बना रहे हैं।

-अनिल नरेन्द्र

मतदाताओं के लिए बड़े चुनावी मुद्दे


स्टेट फॉर द स्टडी ऑफ डेवलEिपग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के लोकनीति कार्यक्रम के तहत मतदान से पहले सर्वेक्षण में मतदाताओं के मन को समझने की कोशिश की गई। सर्वेक्षण में लोगों ने माना की बीते पांच सालों में रोजगार के अवसरों में गिरावट आई है। जरूरी वस्तुओं की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हुई है। इनकी वजह से लोगों को जीवन स्तर संतुलित रखने में परेशानी हो रही है। सर्वेक्षण में शामिल 62 फीसदी मानते हैं कि आज के दौर में नौकरी पाना सबसे कठिन है। शहर से लेकर गांव तक लोगों के पास रोजगार का संकट है। महिलाओं के लिए तो मौके और भी कम हो गए हैं। बेरोजगारी के मुद्दे पर कुल 62ज्ञ् लोगों का मानना है कि लोकसभा 2024 चुनाव में जनता की नजरों में यह सबसे बड़ा मुद्दा है। 62ज्ञ् गांव में, 65ज्ञ् शहरों में और कस्बों में 59ज्ञ् का मानना है कि बेरोजगारी सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है। वहीं 65ज्ञ् पुरुष और 59ज्ञ् महिलाएं यह मानती हैं। सर्वेक्षण में लोगों ने माना कि बेरोजगारी और महंगाई के लिए केन्द्र और राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं। उनका मानना था कि सभी वर्गों की बेहतरी के लिए राज्य सरकारों को देश की आर्थिक स्थिति संतुलित रखने के लिए आगे आना चाहिए। जहां तक महंगाई का सवाल है 76ज्ञ् जनता इससे बुरी तरह प्रभावित है। गरीब वर्ग के 76ज्ञ् लोग, कमजोर वर्ग 70ज्ञ्, मध्य 66ज्ञ्, उच्च मध्यम 68ज्ञ् ऐसा मानते हैं। जहां तक क्षेत्रों का सवाल है 72ज्ञ् गांव, शहर 66ज्ञ्, कस्बा 69ज्ञ् यह मानते हैं। दलित, आदिवासी और मुस्लिम समुदाय के लोग बेरोजगारी और महंगाई के मुद्दे पर ज्यादा आक्रामक हैं। 67 फीसदी मुस्लिम लोग मानते हैं कि उनके लिए नौकरी खोजना दूर की कौड़ी है। इसी तरह मुस्लिम समुदाय के 76ज्ञ् लोग महंगाई को लेकर ज्यादा गंभीर हैं। सर्वेक्षण में विकास के मुद्दे पर मतदाता भाजपा के साथ दिखते हैं। हालांकि बेरोजगारी और महंगाई को लेकर भाजपा के सामने चुनौती है। सर्वेक्षण में शामिल 50 फीसदी लोगों का मानना है कि भाजपा के लिए ये दोनों मुद्दे गंभीर हो सकते हैं। उच्च वर्ग इन मुद्दों में ज्यादा रूचि नहीं दिखाते पर ग्रामीण बेरोजगारी और कीमतों में बढ़ोत्तरी को लेकर ज्यादा आक्रामक हैं। कम पढ़े-]िलखे लोग महंगाई तो अधिक पढ़े-लिखे युवा बेरोजगारी के मुद्देs को लेकर सजग हैं। चुनाव में जो मुद्दे हावी रहे ः बेरोजगारी 27ज्ञ्, महंगाई 23ज्ञ्, विकास 13ज्ञ्, भ्रष्टाचार 8ज्ञ्, राम मंदिर 8ज्ञ्, हिन्दुत्व 2ज्ञ्, भारत की छवि 2ज्ञ्, आरक्षण 2ज्ञ्, अन्य जवाब 9ज्ञ्, और 6ज्ञ् को पता नहीं है। सर्वेक्षण में शामिल सिर्फ आठ फीसदी लोगों ने भ्रष्टाचार और राम मंदिर पर खुद से जोर दिया। अधिकांश मुद्दे चुनावी प्रचार व रैलियों के जरिए ही लोगों में जगह बना रहे हैं। लोकनीति सीएसडीएस ने दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, हरियाणा, राजस्थान समेत कुल 19 राज्यों की 100 संसदीय सीटों के 400 पोलिंग बूथों पर ये सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण 28 मार्च से आठ अप्रैल के बीच हुआ। इसमें कुल 19019 लोगों ने भाग लिया। जिनमें अलग-अलग मुद्दे से जुड़े सवालों पर लोगों की राय जानी गई है। सर्वेक्षण से इतना तो तय हुआ ]िक जनता इस बार न तो मंदिर-मस्जिद, राम मंदिर इत्यादि मुद्दे पर अपना वोट देगी वे आर्थिक मुद्दों पर ज्यादा ध्यान देगी बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार यह सब बड़े मुद्दे होंगे।

Saturday 13 April 2024

बिहार की अतिप्रतिष्ठित लोकसभा सीट


बिहार की सारण लोकसभा सीट पर न केवल बिहार की बल्कि पूरे देश की नजरें टिकी हुई हैं। कारण है यहां के दो बने उम्मीदवार। बिहार की सारण लोकसभा सीट पर आरजेडी ने लालू प्रसाद यादव की बेटी रोहिणी आचार्य को चुनाव मैदान में उतारा है। करीब डेढ़ साल पहले पिता लालू प्रसाद यादव को अपनी किडनी दान देने के बाद रोहिणी आचार्य सुर्खियों में आई थीं। अब रोहिणी के सामने सारण की उस सीट को जीतने की चुनौती है जहां से लालू पहली बार सांसद बने थे। लेकिन पिछले दो चुनावों में इस सीट पर भाजपा का कब्जा है। रोहिणी का इस सीट पर सीधा मुकाबला भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्राrय मंत्री राजीव प्रताप रुडी से माना जा रहा है। रुडी साल 2014 से ही लगातार इस सीट से सांसद हैं। खास बात यह है कि सारण सीट को लालू प्रसाद यादव का गढ़ माना जाता है। वो 4 बार इस सीट से सांसद रहे हैं। सारण सीट से लालू की पत्नी राबड़ी देवी और समधि चंद्रिका राय भी रुडी के खिलाफ चुनाव मैदान में उतर चुके हैं। लेकिन दोनों ही चुनाव हार गए थे। इस लिहाज से सारण सीट पर रुडी का मुकाबला लगातार लालू या उनके परिवार के किसी सदस्य से चल रहा है। इसी सिलसिले में अब लालू की बेटी रोहिणी आचार्य पहली बार चुनाव मैदान में हैं। रोहिणी आचार्य ने बातचीत में कहा है, राजनीति मेरे लिए नई चीज नहीं है। मैं बचपन से यह सब देखती आई हूं। मैं राजनीतिक परिवार से हूं। मां-पिताजी और भाई राजनीति में पहले से हैं। मुझे सारण की जनता से जो प्यार मिला है, उससे मैं हैरान हूं। इस तेज धूप में इतने लोग स्वागत में आए हैं। इस सीट पर ग्रामीण इलाको में लालू लालू प्रसाद यादव का समर्थन स्पष्ट तौर पर दिखता है। यहां रोहिणी आचार्य को देखने के लिए सड़कों पर लोगों की भीड़ भी नजर आती है। रोहिणी को लेकर महिला वोटरों के बीच खासा उत्साह दिखता है। साल 1977 में पहली बार लालू प्रसाद यादव इसी इलाके से लोकसभा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। उस समय यह सीट छपरा लोकसभा सीट कहलाती थी। साल 2004 में छपरा लोकसभा सीट से लालू प्रसाद यादव ने भाजपा के राजीव प्रताप रुडी को हराकर जीत दर्ज की थी। साल 2008 में परिसीमन के बाद इस सीट का नाम सारण लोकसभा सीट हो गया था। सारण लोकसभा क्षेत्र में 6 विधानसभा सीट हैं। पिछले चुनाव में 4 सीटों पर आरजेडी ने जीत दर्ज की थी और दो भाजपा के खाते में गई थी। रोहिणी की शादी 24 मई 2002 को समरेश सिंह से हुई थी। समरेश सिंह सिंगापुर में ही आईटी सेक्टर में नौकरी करते हैं। शादी के कुछ समय बाद से ही रोहिणी अपने पति के साथ सिंगापुर में रह रही थीं। सारण लोकसभा क्षेत्र के सोनपुर इलाके में रोहिणी का भव्य स्वागत हुआ। यहां गंगा के किनारे यादवों के बड़े गांवों का इलाका है। रोहिणी को देखने के लिए यहां महिलाओं की बड़ी संख्या सड़कों, छतों, गलियों में नजर आती है। माना जाता है कि लालू को किडनी दान देने के बाद रोहिणी आचार्य के प्रति लोगों की सांत्वना हो सकती है। राजीव प्रताप रुडी भी रोहिणी आचार्य के लिए काफी सधे हुए शब्दों का इस्तेमाल करते हैं। रुडी कहते हैं जो दो-तीन दिन चुनाव मैदान में आया हो उसके बारे में मुझे बहुत जानकारी नहीं है। हर पिता को ऐसी बेटी (रोहिणी) मिलनी चाहिए। बेटियां सबसे खूबसूरत और प्यारी होती हैं।

-अनिल नरेन्द्र

फिर तो कितनों को जेल भेजते रहेंगे


संवाद और संचार के संस्थानों के रूप में उभरते सोशल मीडिया मंचों के विस्तार के साथ एक समस्या यह भी उभरती है कि उस पर अभिव्यक्तियों को किस रूप में देखा जाए। ऐसा देखा गया है कि कई बार यूट्यूब, फेसबुक, एक्स जैसे सोशल मीडिया मंचों पर किसी मसले को लेकर जाहिर राय को कुछ लोगों ने आपत्तिजनक सामग्री के तौर पर देखा और उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की गई। मगर फिर सवाल उठता है कि अगर स्वतंत्र मंचों पर जाहिर किए गए विचारों को इस तरह बाधित किया जाएगा तो अभिव्यक्ति के अधिकार का क्या मतलब रह जाएगा। फिर ऐसे आरोपों में लोगों को गिरफ्तार करने की प्रक्रिया एक चलन बनी तो यह कहां जाकर थमेगा? सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने के आरोप से जुड़े मामले में यूट्यूबर दुरईमुरुगन सत्ताई को दी गई जमानत बहाल कर दी। सुप्रीम कोर्ट ने यूट्यूबर दुरईमुरुगन की जमानत बहाल करते हुए कहा कि सोशल मीडिया पर आरोप लगाने वाले हर व्यक्ति को जेल में नहीं डाला जा सकता है। यूट्यूबर पर 2021 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने का आरोप है। जस्टिस अभय एस. ओझा और जस्टिस उज्जवल भुइंया की बेंच ने तमिलनाडु सरकार की ओर पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी से कहा कि अगर चुनाव से पहले हम यूट्यूब पर आरोप लगाने वाले हर व्यक्ति को सलाखों के पीछे डालना शुरू कर देंगे, तो कल्पना कीजिए कि कितने लोग जेल में होंगे? अदालत ने आरोपी दुरईमुरुगन की जमानत रद्द करने के आदेश को निरस्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने विरोध और अपने विचार व्यक्त करके अपनी अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग नहीं किया। अदालत ने राज्य सरकार के उस अनुरोध को भी खारिज कर दिया। जिसमें सत्ताई पर जमानत के दौरान निंदनीय टिप्पणी करने से परहेज की शर्त लगाने की मांग की गई थी। अदालत मद्रास हाईकोर्ट के एक आदेश को चुनौती देने वाली सत्ताई की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उनकी जमानत रद्द कर दी थी क्योंकि उन्होंने अदालत में दिए गए हल्फनामे का उल्लंघन करते हुए स्टालिन के खिलाफ कुछ अपमानजनक टिप्पणी की थीं। तमिलनाडु पुलिस ने कारोबार के नियमों का उल्लंघन करके विरोध प्रदर्शन में भाग लिया था। नाम तमिल काची (एनटीके) पार्टी के सदस्यों ने प्रदर्शन किया था। प्रदर्शन के दौरान सत्ताई पर मुख्यमंत्री के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करने का आरोप लगाया गया था। डीएमके की शिकायत पर पुलिस ने शांति भंग करने की एफआईआर दर्ज की और अक्तूबर 2021 में उसे गिरफ्तार कर लिया गया। मद्रास हाईकोर्ट ने नवम्बर 2021 में सतई को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया लेकिन खंडपीठ ने जमानत रद्द कर दी। सच है कि आज सोशल मीडिया पर कई बार कुछ लोग अमर्यादित, आपत्तिजनक शब्दों का प्रयोग करते हैं, जिससे किसी की गरिमा का हनन हो सकता है, मगर एक लोकतांत्रिक समाज और शासन में खासकर सरकारों को भी अपना रुख सुधारने का मौका मिलता है। जबकि हर व्यक्ति को लोकतंत्र में अपने विचार रखने का संवैधानिक हक मिला हुआ है।

Thursday 11 April 2024

दो निषाद चेहरे अब महागठबंधन में


मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी के इंडिया गठबंधन में आ जाने से इस गठबंधन का आकार बड़ा हो गया है। अब एनडीए तथा इंडिया दोनों ही गठबंधनों में छह-छह दल हो गए हैं। हालांकि एनडीए गठबंधन में पांच दल जदयू, भाजपा, लोजपा (रामविलास), हम, और रालोसपा ही चुनाव लड़ रहे हैं। पशुपति पारस की रालोजपा समर्थन में खड़ी है। वहीं बिहार के महागठबंधन में पांच दलों के बीच सीटों का बंटवारा हुआ। राजद, कांग्रेस, भाकपा, माकपा और भाकपा माले। अब राजद ने अपने कोटे से तीन सीट देकर वीआईपी को भी इसमें जोड़ लिया है। मुकेश सहनी शनिवार को अपनी पार्टी के साथ महागठबंधन में शामिल हुए तो इसी दिन मुजफ्फरपुर के भाजपा सांसद अजय निषाद ने विधिवत कांग्रेस की सदस्यता ले ली। बिहार के दो बड़े निषाद चेहरे अब महागठबंधन में शामिल हो गए हैं। गौर हो कि निषाद आरक्षण को लेकर पिछले कई वर्षों से संघर्ष कर रहे मुकेश सहनी सन आफ मल्लाह के रूप में भी पहचाने जाते हैं। वहीं अजय निषाद पूर्व सांसद स्व. जयनारायण निषाद के पुत्र हैं। जयनारायण निषाद समाज के एक बड़ा चेहरा रहे। बीच के 2004-2009 में जार्ज के कार्यकाल को छोड़ दें तो सन 1996 से 2024 तक मुजफ्फरपुर सीट पर पिता-पुत्र का कब्जा रहा है। फिर से उनके इस सीट पर कांग्रेस के सिम्बल पर उतरने की चर्चा है। मुकेश और अजय के महागठबंधन में आने से उत्तर बिहार की कई सीटों पर लाभ मिल सकता है। वैसे एनडीए के पास भी बड़े निषादें की जोड़ी है। भाजपा के पास हरि सहनी हैं तो जदयू के पास मदन सहनी। दोनों ही राज्य सरकार में अभी मंत्री हैं और उत्तर बिहार से आते हैं। आबादी में मल्लाहों का हिस्सा 2.60 प्रतिशत है और यह निर्णायक साबित हो सकता है। खासकर उत्तर बिहार की एक दर्जन सीटों पर। 11 वर्षें के सफर में दूसरी बार महागठबंधन में आए मुकेश सहनी बिहार की सियासत में 2013 में आए। वे कभी एनडीए का तो कभी गठबंधन का हिस्सा होने के बाद भी बिहार की राजनीति में अहम किरदार बनकर उभरे हैं। मुकेश सहनी ने 2013 में सिने वर्ल्ड में सेट डिजाइनर से बिहार की राजनीति में कदम रखा और 2015 में उन्होंने निषाद विकास संघ का गठन कर मल्लाहों को एकजुट करना प्रारंभ किया। 2014 के लोकसभा चुनाव और 2015 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा का साथ दिया, लोकसभा चुनाव में भाजपा को सफलता मिली, लेकिन विधानसभा चुनाव में एनडीए को करारी हार। इसके बाद मुकेश सहनी से भाजपा की दूरी बढ़ने लगी। 2018 में मुकेश सहनी ने विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) का गठन किया और महागठबंधन में शामिल हो गए, पर खटपट शुरू हो गई। अब चार साल बाद महागठबंधन में फिर उनकी वापसी हुई है। महागठबंधन का हिस्सा बनी वीआईपी राजद कोटे की तीन सीटों गोपालगंज, मोतिहारी और झांझारपुर में प्रत्याशी उतारेगी। शुक्रवार को राजद कार्यालय में नेता विपक्ष तेजस्वी यादव ने इसकी घोषणा की। इस मौके पर मुकेश सहनी ने भाजपा पर आरोप लगाया कि जब उनकी मजबूरी होती है तब वे निषाद समाज का साथ चाहते हैं, बाद में भूल जाते हैं। उन्होंने गठबंधन के घटक दलों का आभार भी जताया।

-अनिल नरेन्द्र